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थाप  : स्त्री० [सं० स्थापन] १. थापने की क्रिया या भाव। २. ढोल, तबल, मृदंग आदि के बजाने के समय उन पर हथेली से किया जानेवाला विशिष्ट प्रकार का आघात। क्रि० प्र०—पड़ना।—लगाना। ३. किसी चीज पर दूसरी चीज के भर-पूर बैठने के कारण बननेवाला चिह्न। जैसे—बालू पर पड़ी हुई पैरों की थाप। ४.थप्पड़। तमाचा। ५. कसम। शपथ। सौगंध। जैसे—तुम्हें देवी का थाप है, वहाँ मत जाना। ६. जमाव। स्थिति। ७. मान-मर्यादा आदि का दूसरों पर पड़ने वाला प्रभाव। धाक। ८. पंचायत। (क्व०)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
थापन  : पुं० [सं० स्थापन] १. स्थापित करने की क्रिया या भाव। स्थापन।
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थापना  : स० [सं० स्थापन] १. स्थापित करना। २. कोई चीज कहीं बैठाना, लगाना या स्थित करना। ३. हाथ के पंजे की मुद्रा अंकित करना या छापना। थापा लगाना। स्त्री० १. स्थापित करने या होने की क्रिया या भाव। स्थापना। प्रतिष्ठा। २. नव-रात्र में देवी के पूजन के लिए किया जानेवाला घटस्थापन।
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थापर  : पुं०=थप्पड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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थापरा  : पुं० [देश०] छोटी नाव। डोंगी। (लश०)
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थापा  : पुं० [हिं० थाप] १. थापने की क्रिया या भाव। २. हाथ के पंजे का वह चिन्ह जो गीली पिसी हुई मेंहदी, हलदी आदि मांगलिक द्रव्यों से शुभ अवसरों पर दीवारों आदि पर लगाया जाता है। हाथ के पंजे का छापा। क्रि० प्र०—देना।—लगाना। ३. खलिहान में अनाज की राशि पर गोबर, मिट्टी आदि से लगाया जानेवाला हाथ के पंजे का चिह्न या किसी प्रकार की लकीर। ४. वह ठप्पा जिससे चिन्ह आदि अंकित किये जाते हैं। छापा। ५. वह साँचा जिसमें कोई गीली सामग्री दबाकर या डालकर कोई वस्तु बनाई जाय। जैसे—ईंट का थापा, सुनारों का थापा। ६. ढेर। राशि। ७. देहातों में देवी-देवता आदि की पूजा के लिए लिया जानेवाला चंदा। पुजौरा। पुं० [?] नेपाली क्षत्रियों की एक जाति या वर्ग।
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थापिया  : स्त्री०=थापी।
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थापी  : स्त्री० [हिं० थापना] १. थापने की क्रिया या भाव। २. काठ का वह उपकरण जो चिपटे सिरेवाले लंबे छोटे डंडे के रूप में होता है और कुम्हार मिट्टी के घड़े पीटकर बनाते हैं। ३. उक्त आकार का वह डंडा जिससे राज या मजदूर छत पीटकर उसमें का मसाला जमाते हैं। ४. आशीर्वाद, शाबाशी आदि देने के लिए धीरे-धीरे किसी की पीठ ठोंकने या थपथपाने की क्रिया। क्रि० प्र०—देना।
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