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थिरकना  : अ० [सं० अस्थिर+करण] [भाव० थिरक] १. शरीर के किसी अंग का रह-रहकर और धीरे-धीरे किसी आधार या जमीन से कुछ ऊपर उठना और फिर जमीन पर आना। जैसे—नाचने में पैर (या मृदंग बजाने में हाथ) थिरकना। २. व्यक्ति का ऐसी स्थिति में होना कि उसका सारा शरीर, मुख्यत
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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