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थी  : विभ० [सं० तः, पु० हिं० ते] से। (राज०) उदा०—जब थी हम तुम बीछुड़े...।—ढोलामारू। सर्व० पु० हिं० में ‘तू’ या ‘तुझ’ का एक रूप। उदा०—जो मैं थी कौ साँचा व्यास।—कबीर। अ० हिं० भूतकालिक क्रिया ‘था’ का स्त्री०। वि०=स्थित।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
थीकरा  : पुं० [सं० स्थिति+कर] किसी स्थिति को सँभालने का भार अथवा कोई कार्य करने का (अपने ऊपर) लिया जाने वाला दायित्व या भार। विशेष—मध्ययुग में किसी गाँव या बस्ती में किसी प्रकार की विपत्ति की सम्भावना होने पर वहाँ के रहनेवाले लोग बारी-बारी से रक्षा या सहायता का जो भार अपने ऊपर लेते थे, वह ‘थीकरा’ कहलाता था।
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थीता  : पुं० [सं० स्थित; हिं० थित] १. स्थिरता। २. शांति। ३. कल। चैन। वि० १.=स्थित। २.=स्थिर।
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थीति  : स्त्री०=स्थिति।
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थीथी  : स्त्री० [सं० स्थिति] १. स्थिति। २. शांति। ३. धैर्य। धीरज। ४. चैन। सुख।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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थीर (ा)  : वि०=थिर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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