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दृश्य  : वि० [सं०√दृश्+क्यप्] १. जो देखने में आ सके या दिखाई दे सके। जिसे देख सकते हों। चाक्षुस। (विजुअल ) जैसे—दृश्य जगत् या पदार्थ। २. जो दिखाई देता हो। ३. जो ठीक तरह से जाना जाता या समझ में आता हो। ज्ञेय और स्पष्ट। ४. जो देखे जाने के योग्य हो। ५. दर्शनीय। मनोरम। सुंदर। पुं० १. वह घटना, पदार्थ या स्थल जो आँखों से दिखाई दोता हो। दिखाई दोनोवाली चीज या बात। विशेष—भारतीय श्रौत दर्शनों में दो तत्व माने गये हैं—दृष्टा और दृश्य। ज्ञान स्वरूप चैतन्य को दृष्टा और अचेतन अनात्मभूत जड़ को दृश्य कहा गया है। यह दृश्य तीन प्रकार का माना गया है।—अव्याक्रत, मूर्त और अमूर्त। २. दिखई देनेवाली घटना, वस्तु या स्थल। (व्यू) ३. ऐसी प्राकृतिक, कृत्रिम अथवा अंकित घटना या स्थल जो विशेष रूप से देखे जाने के योग्य हो। दर्शनीय स्थान।(सीनरी) ४. साहित्य में, ऐसा काव्य या रचना जिसका अभिनय हो सकता या होता हो। नाटक। ५. नाटक के किसी अंक का वह स्वतंत्र विभाग जिसमें कोई अंक घटना दिखाई जाती है। (सीन) ६. कोई ऐसा तमाशा या मनोंरंजक व्यापार जो आँखों के सामने हो रहा हो या होता हो। ७. गणित में वह ज्ञात संख्या जो अंकों के रूप दी गई हो। ८. दे० ‘दश्य जगत्’।
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दृश्य-जगत्  : पुं० [कर्म० स०] वह जगत् या संसार जो हमें अपने सामने प्रत्यक्ष दिखाई देता है। वास्तविक जगत्। (फिनामेनल वर्ल्ड)
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दृश्यमान  : वि० [सं० दृश्य+तल्—टाप्] १. दृश्य होने या दिखाई देने की अवस्था या भाव। २. वह स्थित जिसमें देखने की शक्ति अपना काम करती है। (विजिबिलिटी)
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दृश्यमान  : वि० [सं०√दृश्+शान्च्, यक, मुक्] १. जो दिखाई पड़ रहा हो। २. प्रत्यक्ष या स्पष्ट रूप में दिखाई देनेवाला। ३. मनोहर। सुन्दर।
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