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द्वय  : वि० [सं० द्वि+तपप्] दो। पुं० जोड़ा। युग। (समस्त पदों के अन्त में) जैसे—देवता द्वय।
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द्वयवादी (दिन्)  : वि० [सं० द्वय√वद् (बोलना)+णिनि] दो तरह की या दोरंगी बातें कहनेवाला। पुं० गणेश।
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द्वय-हीन  : वि० [सं० तृ० त०] जो पुल्लिंग हो और न स्त्रीलिंग अर्थात् नपुंसक (शब्द)।
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द्वयाग्नि  : पुं० [सं० द्वय अग्नि ब० स०] लाल चीता।
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द्वयाहिग  : वि० [सं०] (सिद्ध पुरुष) जिसके सत्त्वगुण ने शेष दोनों गुणों (रजः और तम) को दबा लिया हो।
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द्वयक्ष  : वि० [सं० द्वि-अक्ष ब० स०] दो नेत्रोंवाला। द्विनेत्र।
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द्वयणुक  : वि० [सं० द्वि-अणु ब० स० कप्] जिसमें दो अणु हों। दो अणुओंवाला। पुं० वह द्रव्य जो दो अणुओं के संयोग से उत्पन्न हो। वह मात्रा, जो दो अणुओं की हो।
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द्वयर्थ, द्वयर्थक  : वि० [सं० द्वि-अर्थ ब० स०] कप् विकल्प से जिसमें से दोया दो प्रकार के अर्थ निकलते हों।
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द्वयशीति  : वि० [सं० द्वि-अशीति मध्य० स०] जो गिनती में अस्सी से दो अधिक हो। बयासी। स्त्री० उक्त की सूचक संख्या—८२
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द्वयष्ट  : पुं० [सं० द्वि√अश् (व्याप्ति)+क्त] ताम्र। ताँबा।
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द्वयाक्षायण  : पुं० [सं०] एक ऋषि का नाम।
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द्वयाग्नि  : पुं० [सं०] लालचीता (वृक्ष)।
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द्वयातिग  : वि० [सं० द्वि-आ-अति√गम् (जाना)=+ड] जो रजोगुण तथा तमोगुण से रहित; परन्तु सत्त्वगुण से युक्त हो।
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द्वयात्मक  : पुं० [सं० द्वि आत्मन् ब० स०, कप्] दो स्वभाव की राशियाँ जो, जो ये हैं—मिथुन, कन्या, धनु और मीन।
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द्वयामुष्यायण  : पुं० [सं० अमुष्य+फक्-आयन, द्वि-आमुष्यायण, ष० त०] किसी व्यक्ति का वह पुत्र, जो दूसरे के द्वारा दत्तक के रूप में ग्रहण किया गया हो और जिसे दोनों पिता अपना, अपना पुत्र मानते हों।
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