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नक  : पुं० [?] १. आकाश। नभ। २. स्वर्ग। स्त्री० हिं० ‘नाक’ का वह संक्षिप्त रूप जो उसे यौ० पदों के आरंभ में लगने पर प्राप्त होता है। जैसे—नक-कटा, नक चढ़ा, नक-छिकनी, नक-बेसर आदि। स्त्री०=नख (नाखून)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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नक-कटा  : वि० [हिं० नाक+कटना] [स्त्री० नक-कटी] १. जिसकी नाक कटी हुई हो। २. दूसरों द्वारा विदित होने पर भी जो लज्जा का अनुभव न करे। बहुत बड़ा निर्लज्ज।
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नक-कटी  : स्त्री० [हिं० नाक+कटना] १. नाक कटने की अवस्था या भाव। २. दुर्दशापूर्ण अपमान।
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नक घिसनी  : स्त्री० [हि० नाक+घिसना] १. जमीन पर नाक घिसने अर्थात् रगड़ने की क्रिया या भाव। २. बहुत अधिक दीनतापूर्वक की जानेवाली क्षमायाचना, प्रतिज्ञा अथवा प्रार्थना।
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नक-चढ़ा  : वि० [हिं० नाक+चढ़ना] १. जिसकी नाक हर समय चढ़ी रहती हो या बात-बात में चढ़ जाती हो। २. जो जल्दी अप्रसन्न या रुष्ट हो जाता हो। चिड़चिड़ा। बद-मिजाज।
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नक-चोटी  : स्त्री०=नख-चोटी।
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नक-छिकनी  : स्त्री० [हि० नाक+छींकना] एक पौधा जिसके घुंडी के आकार के फूलों के सूँघने से छींके आती हैं।
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नकटा  : वि० [हिं० नाक+कटना] [स्त्री० नकटी] १. जिसकी नाक कट गई हो। २. निर्लज्ज। बेशरम। ३. अपमानित और दुर्दशाग्रस्त। उदा०—नकटा जीया, बुरे हवाल। कहा०—। पुं० [हिं० नकटा से व० वि० ] १. मंगल तथा शुभ अवसरों पर गाये जानेवाले एक तरह के गीत। २. बत्तख की जाति का एक तरह का पक्षी जिसके नर की चोंच पर काला दाना या मांस-खंड उभरा रहता है।
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नकटेसर  : पुं० [?] एक प्रकार का पौधा जिसमें सुगंधित सुन्दर फूल लगते हैं।
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नकड़ा  : पुं० [हिं० नाक] बैलों का एक रोग जिसमें उनकी नाक में सूजन आने के फल-स्वरूप उन्हें साँस लेने में कष्ट होता है।
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नक-तोड़ा  : पुं० [हिं० नाक+तोड़ना] ऐसा अभिमान या नखरा जो दूसरों का नाक तोड़नेवाला अर्थात् बहुत ही कष्टप्रद अथवा असह्य जान पड़े। मुहा०—(किसी के) नक-तोड़े उठाना बहुत ही अनुचित और अप्रिय जान पड़नेवाले नखरे भी बरदाश्त करना या सहना।
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नकद  : पुं० [?]एक प्रकार का बढ़िया चावल जो काँगड़े में होता है।
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नकद  : वि० , पुं० =नगद।
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नकदावा  : पुं० [?] ऐसी पकी हुई दाल जिसमें बड़ियाँ भी पड़ी हों।
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नकदी  : वि० , स्त्री०=नगदी।
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नकना  : सं० [सं० लंघन, हिं० नाकना] १. उल्लंघन करना। डाकना। लाँघना। २. छोड़ना। त्यागना। अ० गमन करना। चलना। अ० [हिं० नाक] इतना दुःखी और परेशान होना कि मानों नाक में दम आ गया या हो रहा हो।
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नकन्याना  : अं० [हिं० नाक] नाक में दम होना। तंग या परेशान होना। उदा०—हाय बुढ़ापा तुम्हरे मारे हम तो अब नकन्याय गयन।—प्रतापनारायण मिश्र। सं० नाक में दम करना। तंग या परेशान करना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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नकपोड़ा  : पुं० [हिं० नाक+पकौड़ा] बहुत बड़ी तथा फूली हुई नाक। (परिहास या व्यंग्य)
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नकफूल  : पुं० [हिं० नाक+फूल] नाक में पहनने का एक प्रकार का फूल। लौंग।
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नकब  : स्त्री० [अ० नक्ब] चोरी करने के उद्देश्य से दीवार में किया हुआ बड़ा छेद जिसमें से होकर मकान में घुसा जाता है। सेंध। क्रि० प्र०—देना।—लगाना।
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नकबजनी  : स्त्री० [अ० नक्ब+फा० जनी] चोरी करने के लिए किसी के घर में नकब या सेंध लगाने की क्रिया।
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नकबेसर  : स्त्री० [हिं० नाक+बेसर] नाक में पहनने की छोटी नथ। बेसर।
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नकमोती  : पुं० [हिं० नाक+मोती] नाक में पहनने का मोती जिसे लटकन भी कहते हैं।
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नकल  : स्त्री० [अ० नक्ल] १. किसी को कुछ करते हुए देखकर उसी के अनुसार कुछ करने की क्रिया या भाव। अनुकरण। जैसे—अब तुम भी उनकी नकल करने लगे। क्रि० प्र०—उतारना। २. परीक्षा में, एक परिक्षार्थी का दूसरे परीक्षार्थी द्वारा लिखी हुई बात छल से देखकर अपनी पुस्तिका में लिखना। क्रि० प्र०—मारना। ३. ऐसी कृति जो किसी दूसरी कृति को देखकर उसी के ढंग पर या उसी की तरह बनाई गई हो। अनुकृति। जैसे—यह खिलौना उसी विलायती खिलौने की नकल है। क्रि० प्र०—उतारना।—बनाना। ४. किसी की रहन-सहन, वेश-भूषा, हाव-भाव आदि का ज्यों का त्यों किया जानेवाला अभिनयात्मक अनुकरण जो उसे उपहासास्पद सिद्ध करने अथवा लोगों का मनोरंजन करने के लिए किया जाय। स्वाँग। जैसे—अफीमची की नकल, गुंडे-बदमाशों की नकल। क्रि० प्र०—उतारना। ५. किसी प्रकार की विलक्षण और हास्यास्पद कृति, रूप—रंग, व्यवहार आदि। जैसे—जब देखो तब आप एक नई नकल बनाकर आ पहुंचते हैं। ६. हास्यरस का कोई छोटा अभिनय, कथा कहानी, चुटकुला आदि। ७. किसी प्रकार के अंकन, चित्र, लेख, लेख्य, साहित्यिक कृति आदि की ज्यों की त्यों की हुई प्रतिलिपि। जैसे—इस पत्र की एक नकल अपने पास रख लो। विशेष—नकल में मुख्य भाव यही होता है कि इसमें नवीतना, मौलिकता, वास्तविकता, सजीवता आदि का अभाव है। केवल बाहरी रुप-रंग किसी के अनुकरण पर या उसे देखकर बनाया गया होता है।
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नकलची  : वि० [हिं० नकल+ची (प्रत्य०)] १. जो तुच्छतापुर्वक दूसरों का अनुकरण करता हो। नकल करनेवाला। २. (वह विद्यार्थी) जो अपने सहपाठी की पुस्तिका में लिखे हुए लेख आदि की नकल करता हो।
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नकल-नवीस  : पुं० [अ० नक्ल+फा० नवीस] [भाव० नकलनवीसी] कार्यालय आदि का वह लिपिक जो दस्तावेजों आदि की नकल तैयार करता हो।
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नकलनोर  : पुं० [?] मुनिया। (चिड़िया)।
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नकलपरवाना  : पुं० [अ०+फा०] पत्नी का भाई। साला। विशेष—इस पद का प्रयोग केवल परिहास और व्यंग्य के रूप में यह सूचित करने के लिए होता है, कि अमुक की पत्नी का जो रूप-रंग है, उसी की अनुकृति का परिचायक या सूचक उसका भाई है।
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नकल बही  : स्त्री० [हिं०] १. वह बही जिसमें भेजे जानेवाले पत्रों की नकल या प्रतिलिपि रखी जाती थी। २. वह पंजिका या फाइल जिसमें पत्रों की प्रतियाँ रखी जाती हैं।
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नकली  : वि० [अ० नक्ली] १. जो किसी की नकल भर हो। किसी के अनुकरण पर बना हुआ। २. उक्त के आधार पर जो मौलिक न हो। कृत्रिम। ३. (पदार्थ) जो महत्त्व, मान, मूल्य आदि के विचार से घटकर हो और प्रायः दूसरों को धोखा देने के उद्देश्य से बनाया गया हो। ४. काल्पनिक। ५. झूठ। मिथ्या।
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नकलोल  : वि० [हिं० नाक+लोल (प्रत्य०)] १. (ऐसा व्यक्ति) जिसकी जिधर चाहे नाक घुमाई जा सके। २. निर्बुद्धि। मूर्ख। पु०=नकलनोर।
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नकवा  : पुं० [हिं० नाक ?] नया निकला हुआ अंकुर। कल्ला। पुं० १.=नाक। २. नाका (तराजू, सूई आदि का छेद)।
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नकश  : पुं० १. दे० ‘नक्श’। २. दे० ‘नकश-मार’।
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नकश-मार  : स्त्री० [अ० नक्शः+हिं० मारना] ताश के पत्तों का एक प्रकार का खेल जिसकी गिनती जूए में होती है।
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नकशा  : पुं [अ० नक्शः] १. रेखाओं आदि के द्वारा किसी वस्तु की अंकित की हुई वह आकृति या प्रतिकृति जो उस वस्तु के स्वरूप का सामान्य परिचय कराती हो। क्रि० प्र०—उतारना।—खींचना।—बनाना। मुहा०—(किसी चीज या बात का) नकशा खींचना=ऐसा यथातथ्य और सविस्तार वर्णन करना कि सारा रूप या स्थिति स्पष्ट हो जाय। २. किसी आकृति, वस्तु आदि का परिचय या बोध करानेवाले चिह्न, रेखाएँ आदि जो उसके उतार-चढ़ाव, स्वरूप आदि का ज्ञान कराती हों। आकृति या ढाँचा। रूप-रेखा। जैसे—तोड़-फोड़ और नई बस्तियों से तो सारे शहर का नकशा ही बदल गया है। पद—नाक-नकशा—किसी व्यक्ति के चेहरे की गठन। जैसे—भले ही उनका रूप साँवला हो, पर नाक-नकशा बहुत अच्छा है, अर्थात् रूप देखने में सुन्दर है। ३. पृथ्वी अथवा उसके किसी विशिष्ट अंश और उस पर स्थित मुख्य-मुख्य वस्तुओं आदि का परचायक चित्र। मानचित्र। (मैप)। क्रि० प्र०—खींचना।—बनाना। विशेष—ऐसे नकशों में जलाशय, नगर, नदियाँ, पहाड़, अनेक प्रकार के विभाजन (जैसे—खेती, जमीन, बाग, सड़कें आदि) सभी मुख्य बातें अंकित होती हैं। (ख) नकशे किसी जिले, तहसील, नगर, बस्ती, भवन आदि के भी बनते हैं। (ग) किसी देश के भिन्न-भिन्न भागों की आबादी, पैदावार, वर्ष-मान आदि के भी सूचक नकशे बनते हैं। (घ) पृथ्वी के सिवा समूचे आकाश या उसके किसी अंश के भी ऐसे नकशे बनते हैं, जिनमें भिन्न-भिन्न ग्रहों, तारों, नक्षत्रों आदि की स्थितियाँ दिखायी जाती हैं। ४. कोई ऐसा अंकन जो किसी प्रकार की स्थिति बतलाने या स्पष्ट करने में सहायक होता हो। जैसे—शतरंज के अच्छे खिलाड़ी शतरंज के ऐसे नये-नये नकशे बनाकर लोगों के सामने रखते हैं कि उनकी शर्तों के अनुसार चलकर विपक्षी को मात करना बहुत ही कठिन होता है। विशेष—ऐसे नकशों में दोनों पक्षों के भिन्न-भिन्न मोहरे कुछ विशिष्ट घरों में रखे हुए दिखाए जाते हैं। ५. किसी चीज का आकार-प्रकार, रूप-रेखा आदि बतलानेवाला वह रेखा-चित्र जो वह चीज बनाने से पहले यह सूचित करने के लिए बनाया जाता है कि बनकर तैयार होने पर वह चीज कैसी होगी अथवा उसका रूप क्या होगा। जैसे—(क) जब तक कारखाने (या मकान) का नकशा अधिकारी मंजूर न कर लें, तब तक कारखाना (या मकान) बनाने का काम शुरू नहीं हो सकता। (ख) अच्छे कारीगर कोई चीज बनाने से पहले उसका नक्शा तैयार करते हैं। ६. कोई ऐसी आकृति या क्रिया, घटना या स्थिति जिसका स्वरूप प्रत्यक्ष और स्पष्ट दिखाई देता हो। जैसे—उस दिन जलसे का नकशा अभी तक हमारी आँखों के सामने है। मुहा०—नकश जमाना=ऐसे अच्छे ढंग से कोई काम कर दिखाना कि सब लोग उससे प्रभावित और मुग्ध होकर उसकी प्रशंसा करने लगें। जैसे—उस संगीत सम्मेलन में कई गवैयों ने अच्छा नकशा जमाया था। ७. किसी व्यक्ति के आचार-व्यवहार, चाल-चलन, रहन-सहन आदि का बाह्य रूप जो उसकी प्रवृत्ति, मनोवृत्ति, स्थिति आदि के सिवा उसके भविष्य का भी परिचायक होता है। जैसे—(क) आज-कल इस लड़के का नकशा अच्छा नहीं दिखाई देता। (ख) अब तो धीरे-धीरे आपके भाई साहब का नक्शा भी बदलने लगा है। 8. दे० ‘सारिणी’।
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नकशानवीस  : पुं० [अ० नक्शः+नवीस] वह व्यक्ति जो चीजों (देशों, घरों, कारखानों) आदि के नकशे बनाता हो।
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नकशी  : वि० [अ० नक्शी] जिस पर नक्श अर्थात् बेल-बूटे अंकित हों अथवा खुदे या बने हों।
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नकशीदार  : वि० =नकशी।
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नकशीमैना  : स्त्री० [अ०+हिं०] तेलिया नामक मैना।
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नकस  : पु०=नकशा।
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नकसमार  : स्त्री०=नकश-मार।
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नकसा  : पुं० =नकशा।
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नकसीर  : स्त्री० [हिं० नाक+सं० क्षीर=जल] १. एक प्रकार का क्षुद्र रोग जिसमें गरमी आदि के कारण नाक में से खून बहता है। २. उक्त रोग के कारण नाक में से बहनेवाला खून। क्रि० प्र०—फूटना।—बहना।
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नका  : पुं० =निकाह (विवाह)। उदा०—घण पड़ियाँ साँकड़िया घड़ियाँ ना धीहड़ियाँ पढ़ी नका।—दुरसाज़ी।
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नकाना  : अ० [हिं० नाक] नाक में दम होना। बहुत परेशान होना। सं० नाक में दम करना। तंग या परेशान करना। सं०=नकियाना।
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नकाब  : स्त्री० [अ० निक़ाब] १. अपने को छिपाये रखने के लिए चेहरे पर डाला जानेवाला जालीदार रंगीन कपड़ा। मुखावरण। क्रि० प्र०—उठाना।—डालना। विशेष—इसका प्रयोग प्रायः स्त्रियाँ अपना रूप दूसरों की दृष्टि में पड़ने से बचाने के लिए और चोर, डाकू आदि अपनी आकृति छिपाये रखने के लिए करते हैं। २. स्त्रियों की साड़ी या चादर का वह भाग जिससे उनका मुख ढका रहता है। घूँघट। मुहा०—नकाब उलटना=नकाब ऊपर उठाकर इस प्रकार पीछे उलटना या हटाना कि लोग आकृति देख सकें। ३. लोहे की वह जाली जो झिलम में नाक की रक्षा के लिए लगी रहती है।
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नकाबपोश  : वि० [अ० निक़ाब+फा. पोश] (व्यक्ति) जिसने अपने चेहरे पर नकाब अर्थात् जालीदार कपडा़ डाल रखा हो।
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नकार  : पुं० [सं० न+कार] १. ‘न’ अक्षर या वर्ण। २. न या नहीं का बोधक शब्द या वाक्य। स्त्री० [हिं० नकारना] किसी काम या बात के लिए नहीं करने या कहने की क्रिया या भाव। इन्कार।
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नकारची  : पुं० =नक्कारची।
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नकारना  : अ० [हिं० न+कारना (प्रत्य०)] १. असहमति प्रकट करते हुए ‘न’ या ‘नहीं’ कहना। २. न मानना। अस्वीकृत करना।
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नकारा  : वि० [फा० नाकारः] [स्त्री० नकारी] १. जिसे कोई काम न हो। निष्कर्म। २. जो किसी काम का न हो। निकम्मा। ३. खराब। निष्प्रयोजन। व्यर्थ। ४. खराब। बुरा। पुं० =नक्कारा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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नकारात्मक  : वि० [सं० नकार-आत्मन्, ब० स०, कप्] १. (उत्तर या कथन) जिसमें कोई बात न मानी गई हो या कुछ करने से इन्कार किया गया हो। ‘सकारात्मक’ का विपर्याय। २. दे० ‘नहिक’।
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नकाश  : पुं० =नक्काश।
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नकाशना  : सं० [अ० नक्श] किसी चीज पर नक्श करना या बनाना अर्थात् उस पर बेल-बूटे आदि खोदकर अंकित करना या उकेरना। नक्काशी करना।
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नकाशी  : स्त्री०=नक्काशी।
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नकाशीदार  : वि० =नकशी।
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नकास  : पुं० १.=नक्काश। २.=नखास।
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नकासना  : स०=नकाशना। स०=निकासना (निकालना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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नकासी  : स्त्री०=नक्काशी। स्त्री०=निकासी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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नकासीदार  : वि० दे० ‘नकशी’।
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नकियाना  : अ० [हिं० नाक] १. नाक से कुछ श्वास निकालते हुए शब्दों का इस प्रकार उच्चारण करना या बोलना कि मात्राएँ, वर्ण, आदि अनुनासिक से जान पड़ें। २. नाक में दम होना। बहुत ही तंग या परेशान होना। सं० किसी की नाक में दम करना। बहुत ही तंग या परेशान करना।
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नकीब  : पुं० [अ० नक्कीब] १. प्राचीन काल में राजा-महाराजा की सवारी के आगे-आगे चलनेवाला। और उनके आगमन की उच्चर स्वर में घोषणा करनेवाला चोबदार। २. भाट। चारण। ३. कड़खा गानेवाला व्यक्ति। कड़खैत।
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नकुच  : पुं० [?] मदार (पेड़)। पुं० =लकुच (वृक्ष और फल)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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नकुट  : पुं० [सं० न√कुट् (कुटिल होना)+क]=नाक।
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नकुड़ा  : पुं० [सं० नकुल] नेवला (जन्तु)। पुं० [हिं० नाक] १. नाक विशेषतः उसका अग्र भाग। २. नथना।
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नकुल  : पुं [सं० ब० स०] १. नेवला। २. माद्री के गर्भ से उत्पन्न युधिष्ठिर, अर्जुन, और भीम के सौतेले भाई। ३. पुत्र। बेटा। ४. शिव। ५. एक प्रकार का पुराना बाजा। पुं० =दे० ‘नुकल।’(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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नकुल-कंद  : पुं० [मध्य० स०] गंधनाकुली या रास्ता (कंद)।
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नकुलक  : पुं० [सं० नकुल-कन्] १. प्राचीन काल का एक प्रकार का गहना। २. रुपए आदि रखने की एक प्रकार की थैली।
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नकुल-तैल  : पुं० [मध्य० स०] वैद्यक में, एक प्रकार का तैल जो नेवले के मांस में बहुत सी दूसरी औषधियाँ मिलाकर बनाया जाता है। इसका उपयोग आमवात, अंगों का कंप और कमर, पीठ, जाँघ आदि के दर्द में होता है।
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नकुलांध  : पुं० [नकुल-अंध, उपमित स०] सुश्रुत के अनुसार आँख का एक रोग जिसमें आँखें नेवले की आँखों की तरह चमकने लगती हैं और चीजें रंग-बिरंगी दिखाई देने लगती हैं। वि० जिसे उक्त प्रकार का रोग हो।
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नकुलांधता  : स्त्री० [सं० नकुलांध+तल्—टाप्] नकुलांध रोग होने की अवस्था या भाव।
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नकुला  : स्त्री० [सं० नकुल+टाप्] पार्वती। वि० स० ‘नकुल’ का स्त्री०। पुं० =नाक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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नकुलाढ्या  : स्त्री० [सं० नकुल-आढ्या, तृ० त०] गंधनाकुली। नकुलकंद।
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नकुली  : स्त्री० [सं० नकुल+ङीष्] १. जटामासी। २. केसर। ३. शंखिनी। ४. नेवले की मादा।
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नकुलीश  : पुं० [सं०] नकुलेश।
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नकुलेश  : पुं० [सं०] तांत्रिकों के एक भैरव का नाम।
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नकुलेष्टा  : स्त्री० [सं० नकुल-इष्टा, ष० त०] रास्ना। रायसन।
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नकुलौष्ठी  : स्त्री० [सं०] प्राचीन काल का एक प्रकार का बाजा, जिसमें बजाने के लिए तार लगे हुए होते थे।
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नकुवा  : पुं० १.=नाक। २.=नाका।
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नकेल  : स्त्री० [हिं० नाक+एल (प्रत्य०)] १. ऊँट, बैल आदि के नथने में से आर-पार निकाली हुई वह रस्सी जो लगाम का काम देती है, और जिसके सहारे वह चलाया जाता है। मुहार। २. किसी को अपने अधिकार या वश में रखने की युक्ति या शक्ति। मुहा०—(किसी की) नकेल हाथ में होना=किसी पर सब प्रकार का अधिकार होना। किसी से बलपूर्वक मनमाना काम करा लेना की शक्ति होना। जैसे—उनकी नकेल तो हमारे हाथ में है।
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नक्कना  : सं० [सं० लंघन] लाँघना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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नक्कल  : पुं० [अ० नुक्ल=गजक] जल-पान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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नक्का  : पुं० [हिं० नाक] १. सूई का वह छेद जिसमें डोरा डाला जाता है। २. कौड़ी। ३. दे० ‘नाका’। ४. दे० ‘नक्कीमूठ’।
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नक्कादूआ  : पुं० =नकारा।
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नक्कारखाना  : पुं० [अ० नक्कार+फा० खानः] वह स्थान जहाँ नक्कारा या नौबत बजती है। नौबतखाना। पद—नक्कारखाने में तूती की आवाज= (क) बहुत भीड़-भाड़ या शोर-गुल में कही गई कोई सामान्य-सी बात जो सुनाई नहीं पड़ती। (ख) बड़े-बड़े लोगों के सामने छोटे आदमियों की बात।
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नक्कारची  : पुं० [अ० नक्कारः+फा० ची (प्रत्य०)] नगाड़ा बजानेवाला। वह जो नक्कारा बजाता हो।
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नक्कारा  : पुं० [अ० नक्कारः] नगाड़ा नाम का बाजा। (दे० ‘नगाड़ा’)
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नक्काल  : पुं० [अ०] १. वह जो केवल नकल या अनुकरण करता हो। अथवा जिसने किसी की नकल या अनुकरण मात्र किया हो। २. वह जो केवल दूसरों का मनोरंजन करने अथवा दूसरों को उपहासास्पद सिद्ध करने के लिए तरह-तरह की नकलें करता हो। जैसे—बहुरुपिये, भाँड़ आदि।
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नक्काली  : स्त्री० [अ०] १. नकल या अनुकरण करने की क्रिया या भाव। २. दूसरों की नकल उतारने की कला या विद्या। ३. भाँड़पन।
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नक्काश  : पुं० [अ०] नक्काशी का काम करनेवाला कारीगर। वह जो धातुओं आदि पर खोदकर बेल-बूटे बनाता हो।
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नक्काशी  : स्त्री० [अ०] १. धातु, पत्थर, लकड़ी आदि पर खोदकर बेल-बूटे आदि बनाने का काम या कला। २. उक्त प्रकार से बनाये हुए बेल-बूटे आदि।
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नक्की  : स्त्री० [हिं० नक्का=कौड़ी या एक ?] १. जूए के खेल में वह दाँव जिसके लिए ‘एक’ का चिह्न नियत हो अथवा जिसकी जीत किसी प्रकार के ‘एक’ चिह्न से संबद्ध हो। २. दे० ‘नक्की मूठ’। स्त्री० [हिं० नाक] मनुष्य के गले से होनेवाला ऐसा उच्चारण जिसमें श्वास का कुछ अंश नाक से भी निकलता हो और जिसका उच्चारण अनुनासिक-सा होता है। जैसे—यह लड़का इतना बड़ा हो गया; पर अभी तक नक्की बोलता है। क्रि० प्र०—बोलना। वि० [हिं० एक ?] १. (काम) जो हर तक से ठीक और पूरा हो चुका हो। २. (बात) जिसका दृढ़ निश्चय हो चुका हो। ३. (ऋण या देन) जो अदा या चुकता हो गया हो। जैसे—किसी का हिसाब नक्की करना।
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नक्कीपूर  : पुं० =नक्कीमूठ।
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नक्कीमूठ  : स्त्री० [हिं०] जूए का एक प्रकार का खेल जो प्रायः स्त्रियाँ और बालक कौड़ियों से खेलते हैं। इसमें एक दूसरे को काटती हुई दो सीधी लकीरें खींची जाती हैं। एक खिलाड़ी अपनी मुट्ठी में कुछ कौड़ियाँ लेकर अपने दाँव पर रख देता है। तब बाकी खिलाड़ी अपने अपने दाँव पर कौड़ियाँ लगाकर हार-जीत करते हैं।
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नक्कू  : वि० [हिं० नाक] १. बड़ी नाकवाला। जिसकी नाक बड़ी हो। २. अपने आपको बहुत प्रतिष्ठित या औरों से बढ़कर समझनेवाला। ३. जिसका कोई आचरण या कृत्य औरों से बिलकुल भिन्न और असाधारण हो; और इसीलिए जिसकी ओर लगो उपेक्षापूर्वक उँगलियाँ उठाते हों। जैसे—हम तुम्हारी सलाह मानकर नक्कू नहीं बनना चाहते।
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नक्ख़य  : पुं० =नक्षत्र।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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नक्तंदिन, नक्तंदिव  : अव्य० [सं० नक्तम्-दिन, द्व० स०, नक्तम्दिवा, द्व० स०] रात-दिन।
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नक्त  : वि० [सं०√नज् (लजाना)+क्त] जो शरमा गया हो। लज्जित। पुं० [सं०] १. वह समय जब दिन का केवल एक मुहूर्त बाकी रह गया हो। बिलकुल संध्या का समय। २. रात। रात्रि। ३. शिव। ४. राजा पृथु के एक पुत्र का नाम। ५. दे० ‘नक्त व्रत’। स्त्री० रात।
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नक्तक  : पुं० [सं० नक्त+कन्] फटा-पुराना और मैला कपड़ा।
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नक्तचर  : वि० [सं० नक्त√चर् (गति)+ट] १. रात को घूमने, चलने या विचरण करनेवाला। पुं० १. शिव। २. राक्षस। ३. उल्लू। ४. बिल्ली।
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नक्तचारी (रिन्)  : वि० , पुं० [सं० नक्त√चर्+णिनि]=नक्तचर।
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नक्तमाल  : पुं० [सं० नक्तम्-आ√अल् (पर्याप्ति)+अच्] करज वृक्ष। कंजे का पेड़।
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नक्त-मुखा  : स्त्री० [सं० ब० स०, टाप्] रात।
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नक्त-व्रत  : पुं० [सं० मध्य० स०] एक प्रकार का व्रत जो अगहन के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को किया जाता है। इसमें दिन के समय बिलकुल भोजन नहीं करते केवल रात को तारे देखकर और विष्णु की पूजा करके भोजन करते हैं।
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नक्तांध  : वि० [सं० नक्त-अंध, स० त०] जिसे रात को न दिखाई देता हो। जिसे रतौंधी हो। पुं० नक्तांध्य।
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नक्तांधता  : स्त्री० [सं० नक्तांध+तल—टाप्]=नक्तांध्य।
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नक्तांध्य  : पुं० [सं० नक्त-अंध्य, स० त०] आँख का रतौंधी नामक रोग।
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नक्ता  : स्त्री० [सं० नक्त+टाप्] १. कलियारी नामक विषैला पौधा। २. हलदी। ३. रात। रात्रि।
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नक्ताह  : पुं० [सं०] करंज वृक्ष। कंजा।
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नक्ति  : स्त्री० [सं०√नज्+क्तिन्] रात।
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नक्द  : वि० , पुं० =नगद।
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नक्दी  : स्त्री० दे० ‘नगदी’।
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नक्र  : पुं० [सं० न√क्रम् (गति)+ड] १. नाक नामक जल-जन्तु। मगर। २. कुंभीर या घड़ियाल नामक जल-जंतु।
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नक्र-राज  : पुं० [ष० त०] १. घड़ियाल। २. मगर (जलजंतु)।
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नक्रा  : स्त्री० [सं० नक्र+टाप्] नाक।
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नक्ल  : स्त्री०=नकल। विशेष—‘नक्ल’ के यौं पदों के लिए दे० ‘नकल’ के यौ० पद।
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नक्श  : वि० [अ० नक्श] जिस पर नक्काशी का काम हुआ हो। पुं० १. वे चिह्न बेल-बूटे आदि जो पत्थर लकड़ी आदि पर खोदकर बनाये गये हों। २. छाप या मोहर जिस पर कोई अंक, चित्र नाम आदि खुदा रहता है। ३. विभिन्न शारीरिक अंगों मुख्यतः चेहरे की सामूहिक गठन और उनसे अभिव्यक्त होनेवाला सौन्दर्य। जैसे—लड़की का रंग तो साँवला है परन्तु नक्श ठीक है। ४. कागज भोज-पत्र आदि पर सारिणी या कोष्ठक के रूप में लिखा हुआ एक तरह का यंत्र। विशेष—यह अनेक रोगों का नाशक माना जाता है और इसे बाँह पर या गले में पहना जाता है। ५. जादू। टोना ६. एक तरह के गीत। ७. ‘ताश’ से खेला जानेवाला एक तरह का खेल। नकश-मार।
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नक्श-निगार  : पुं० [अ० नक्श+फा० निगार] खोदकर बनाया हुआ चित्र या बेल-बूटा।
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नक्शमार  : पुं० =नकशमार।
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नक्शा  : पुं० =नकशा।
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नक्शानवीस  : पुं० =नकशानवीस।
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नक्शानवीसी  : स्त्री०=नकशानवीसी।
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नक्शी  : वि० =नकशी।
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नक्षत्र  : वि० [सं०√नक्ष् (गति)+अत्रन्] जो क्षत न हो। पुं० १. रात के समय आकाश में दिखाई पड़नेवाले सभी चमकते हुए पिंड या तारे अथवा उनमें से प्रत्येक तारा या सितारा। २. विशिष्ट रूप से, वे २७ तारक पुंज जो पृथ्वी की परिक्रमा करते समय चंद्रमा के भ्रमण-मार्ग में पड़ते हैं; और जिनके रूप-रेखाओं के आधार पर कुछ विशिष्ट आकृतियाँ मानकर ये सत्ताइस नाम रखे गये हैं।—अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वा-फाल्गुनी, उत्तरा-फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती, विशाषा अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वभाद्रपद, उत्तर भाद्रपद और रेवती। विशेष—आधुनिक ज्योतिषयों का मत है कि इन २७ तारकपुंजों में सब मिलाकर लगभग सवा दौ सौ तारे हैं जो वास्तव में हैं तो बहुत बड़े-बड़े, परन्तु वे हमारे सौर जगत् से बहुत दूर पर स्थिति होने के कारण हमें बहुत ही छोटे तारों के रूप में और बिलकुल स्थिर दिखाई देते हैं। इन्हीं नक्षत्रों में से कुछ नक्षत्रों के नाम पर हमारे यहाँ के १२ महीनों के नाम रखे गए हैं। पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा जिस नक्षत्र पर रहता है, उसी नक्षत्र के नाम पर उस महीने का नाम रखा गया है। यथा—महीने का चैत्र नाम इसलिए पड़ा है कि उसकी पूर्णिमा को चंद्रमा प्रायः चित्रा नक्षत्र पर रहता है। इसी प्रकार पूर्णिमा के दिन उसके विशाखा, ज्येष्ठा आदि नक्षत्रों पर रहने के कारण वैशाख, ज्येष्ठ आदि नाम पड़े हैं। नक्षत्रों के संबंध में ध्यान रखने की एक और बात है। जिन उक्त तारों के बीच से होकर चलता हुआ सूर्य भी दिखाई देता है। सूर्य का भ्रमणमार्ग जिन १२ राशियों में विभक्त है, वे भी वस्तुतः उक्त तारों के ही वर्गीकरण हैं। अन्तर यही है कि नक्षत्र उन तारों के अपेक्षया छोटे वर्ग है; और राशियाँ उनके बड़े वर्गों के रूप में हैं, इसी-लिए राशियों में दो-दो, तीन-तीन नक्षत्र आ जाते हैं। ३. सत्ताइस मोतियों की माला। ४. मोती।
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नक्षत्र-कल्प  : पुं० [ष० त०] अर्थर्ववेद का एक परिशिष्ट जिसमें चंद्रमा की स्थिति आदि का वर्णन है।
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नक्षत्र-कांति-विस्तार  : पुं० [सं० नक्षत्र-कांति, ष० त० नक्षत्रकांति, विस्तार, ब० स०] सफेद ज्वार।
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नक्षत्र-गण  : पुं० [ष० त०] कुछ विशिष्ट नक्षत्रों के अलग-अलग समूह या गण। (फलित ज्योतिष)
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नक्षत्र-चक्र  : पुं० [ष० त०] १. सत्ताइस नक्षत्रों का वह चक्र जिसमें से होकर चंद्रमा २७-२८ दिनों में पृथ्वी की परिक्रमा करता है। २. राशिचक्र। ३. तांत्रिकों का एक प्रकार का चक्र जिसके अनुसार दीक्षा के समय नक्षत्रों आदि के विचार से गुरु यह निश्चय करता है कि शिष्य को कौन सा मंत्र दिया जाय।
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नक्षत्र-चिंतामणि  : पुं० [उपमि० स०] एक प्रकार का कल्पित रत्न जिसके संबंध में यह प्रसिद्ध है कि उससे माँगी हुई चीजें प्राप्त हो जाती हैं।
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नक्षत्र-दर्श  : पुं० [सं० नक्षत्र√दृश् (देखना)+अण्] १. वह जो नक्षत्र देखता हो। २. ज्योतिषी।
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नक्षत्र-दान  : पुं० [सं० त०] पुराणानुसार भिन्न-भिन्न नक्षत्रों के उद्देश्य से किया जानेवाला भिन्न-भिन्न पदार्थों का दान।
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नक्षत्र-नाथ  : पुं० [ष० त०] चन्द्रमा।
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नक्षत्र-पति  : पुं० [ष० त०] चंद्रमा।
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नक्षत्र-पत्र  : पुं० [सं० नक्षत्र√पा (रक्षा)+क] चंद्रमा।
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नक्षत्र-पथ  : पुं० [ष० त०] नक्षत्रों के चलने का मार्ग।
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नक्षत्र-पद-योग  : पुं० [ष० त०] जन्मकुंडली का वह योग जब सूर्य जन्म राशि से छठे स्थान पर या मेष राशि में होता है और चंद्रमा वृष राशि में।
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नक्षत्र-पुरुष  : पुं० [सुप्सुपा० स०] विभिन्न नक्षत्रों को विभिन्न शारीरिक अंगों के रूप में मानकर उनके आधार पर बननेवाला कल्पित पुरुष।
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नक्षत्र-माला  : स्त्री० [मध्य० स०] वह हार जिसमें सत्ताइस मोती हों।
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नक्षत्र-याजक  : पुं० [ष० त०] ग्रहों और नक्षत्रों आदि के दोषों की मंत्र-जाप आदि की सहायता से शांति करानेवाला ब्राह्मण।
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नक्षत्र-योग  : पुं० [ष० त०] नक्षत्र के साथ ग्रहों का योग।
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नक्षत्र-योनि  : स्त्री० [ष० त०] वह नक्षत्र जो विवाह के लिए निषिद्ध हो।
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नक्षत्र-राज  : पुं० [ष० त०] नक्षत्रों के स्वामी, चंद्रमा।
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नक्षत्र-लोक  : पुं० [ष० त०] १. सितारों की दुनिया। २. पुराणानुसार एक लोक जो चंद्रलोक के ऊपर स्थित माना गया है।
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नक्षत्र-वीथि  : स्त्री० [ष० त०] नक्षत्रों में गति के अनुसार तीन-तीन नक्षत्रों के बीच का कल्पित मार्ग।
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नक्षत्र-वृष्टि  : स्त्री० [ष० त०] तारे का टूटना। उल्कापात।
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नक्षत्र-व्यूह  : पुं० [ष० त०] फलित ज्योतिष में वह चक्र जिसमें यह दिखलाया जाता है कि किन-किन पदार्थों, जातियों आदि का कौन-कौन नक्षत्र स्वामी है।
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नक्षत्र-व्रत  : पुं० [मध्य० स०] पुराणानुसार किसी विशिष्ट नक्षत्र के उद्देश्य से किया जानेवाला ऐसा व्रत जिसमें उसके स्वामी की आराधना की जाती है।
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नक्षत्र-शूल  : पुं० [उपमि० स०] कुछ विशिष्ट नक्षत्रों का किसी विशिष्ट दिशा में रहने का ऐसा काल या समय जिसमें यात्रा आदि निषिद्ध हो।
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नक्षत्र-संधि  : स्त्री० [ष० त०] ग्रहों का नक्षत्र के पूर्व से उत्तर पक्ष में प्रविष्ट होने की संधि या समय।
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नक्षत्र-सत्र  : पुं० [मध्य० स०] वह यज्ञ जो नक्षत्रों के उद्देश्य से विशेषतः दुष्ट ग्रहों की शांति के लिए किया जाय।
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नक्षत्र-साधन  : पुं० [ष० त०] किसी नक्षत्र में किसी ग्रह के रहने का समय जानने के लिए की जानेवाली गणना।
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नक्षत्र-सूचक  : पुं० [ष० त०] ऐसा व्यक्ति जो बिना शास्त्रों का अध्ययन किये ही ज्योतिषी बन बैठा हो।
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नक्षत्र-सूची (चिन्)  : पुं० [सं० नक्षत्र√सूच् (बताना)+णिनि] =नक्षत्र-सूचक।
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नक्षत्रामृत  : पुं० [नक्षत्र-अमृत, स० त०] किसी विशिष्ट दिन में किसी विशिष्ट नक्षत्र का होनेवाला उत्तम योग जो यात्रा आदि के लिए शुभ माना जाता है।
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नक्षत्रिय  : वि० [सं० नक्षत्र+घ+इय] १. नक्षत्र-संबंधी। २. सत्ताइस (नक्षत्रों की संख्या के आधार पर)।
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नक्षत्री  : वि० [सं० नक्षत्र+हिं० ई (प्रत्य०)] १. जिसकी जन्मकुंडली में अच्छे नक्षत्र हों। अच्छे नक्षत्रों में जन्म लेनेवाला। २. बहुत बड़ा भाग्यवान्। पुं० [सं० नक्षत्रिन्] १. चंद्रमा। २. विष्णु।
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नक्षत्रेश  : पुं० [नक्षत्र-ईश, ष० त०] १. चंद्रमा। २. कपूर।
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नक्षत्रेश्वर  : पुं० [नक्षत्र-ईश्वर, ष० त०] नक्षत्रों का स्वामी, चंद्रमा।
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नक्षत्रेष्टि  : पुं० [नक्षत्र-इष्टि, मध्य० स०] नक्षत्रों की तुष्टि के निमित किया जानेवाला यज्ञ।
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