शब्द का अर्थ
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नकल :
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स्त्री० [अ० नक्ल] १. किसी को कुछ करते हुए देखकर उसी के अनुसार कुछ करने की क्रिया या भाव। अनुकरण। जैसे—अब तुम भी उनकी नकल करने लगे। क्रि० प्र०—उतारना। २. परीक्षा में, एक परिक्षार्थी का दूसरे परीक्षार्थी द्वारा लिखी हुई बात छल से देखकर अपनी पुस्तिका में लिखना। क्रि० प्र०—मारना। ३. ऐसी कृति जो किसी दूसरी कृति को देखकर उसी के ढंग पर या उसी की तरह बनाई गई हो। अनुकृति। जैसे—यह खिलौना उसी विलायती खिलौने की नकल है। क्रि० प्र०—उतारना।—बनाना। ४. किसी की रहन-सहन, वेश-भूषा, हाव-भाव आदि का ज्यों का त्यों किया जानेवाला अभिनयात्मक अनुकरण जो उसे उपहासास्पद सिद्ध करने अथवा लोगों का मनोरंजन करने के लिए किया जाय। स्वाँग। जैसे—अफीमची की नकल, गुंडे-बदमाशों की नकल। क्रि० प्र०—उतारना। ५. किसी प्रकार की विलक्षण और हास्यास्पद कृति, रूप—रंग, व्यवहार आदि। जैसे—जब देखो तब आप एक नई नकल बनाकर आ पहुंचते हैं। ६. हास्यरस का कोई छोटा अभिनय, कथा कहानी, चुटकुला आदि। ७. किसी प्रकार के अंकन, चित्र, लेख, लेख्य, साहित्यिक कृति आदि की ज्यों की त्यों की हुई प्रतिलिपि। जैसे—इस पत्र की एक नकल अपने पास रख लो। विशेष—नकल में मुख्य भाव यही होता है कि इसमें नवीतना, मौलिकता, वास्तविकता, सजीवता आदि का अभाव है। केवल बाहरी रुप-रंग किसी के अनुकरण पर या उसे देखकर बनाया गया होता है। |
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समानार्थी शब्द-
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नकलची :
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वि० [हिं० नकल+ची (प्रत्य०)] १. जो तुच्छतापुर्वक दूसरों का अनुकरण करता हो। नकल करनेवाला। २. (वह विद्यार्थी) जो अपने सहपाठी की पुस्तिका में लिखे हुए लेख आदि की नकल करता हो। |
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नकल-नवीस :
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पुं० [अ० नक्ल+फा० नवीस] [भाव० नकलनवीसी] कार्यालय आदि का वह लिपिक जो दस्तावेजों आदि की नकल तैयार करता हो। |
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नकलनोर :
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पुं० [?] मुनिया। (चिड़िया)। |
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नकलपरवाना :
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पुं० [अ०+फा०] पत्नी का भाई। साला। विशेष—इस पद का प्रयोग केवल परिहास और व्यंग्य के रूप में यह सूचित करने के लिए होता है, कि अमुक की पत्नी का जो रूप-रंग है, उसी की अनुकृति का परिचायक या सूचक उसका भाई है। |
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नकल बही :
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स्त्री० [हिं०] १. वह बही जिसमें भेजे जानेवाले पत्रों की नकल या प्रतिलिपि रखी जाती थी। २. वह पंजिका या फाइल जिसमें पत्रों की प्रतियाँ रखी जाती हैं। |
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नकली :
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वि० [अ० नक्ली] १. जो किसी की नकल भर हो। किसी के अनुकरण पर बना हुआ। २. उक्त के आधार पर जो मौलिक न हो। कृत्रिम। ३. (पदार्थ) जो महत्त्व, मान, मूल्य आदि के विचार से घटकर हो और प्रायः दूसरों को धोखा देने के उद्देश्य से बनाया गया हो। ४. काल्पनिक। ५. झूठ। मिथ्या। |
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नकलोल :
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वि० [हिं० नाक+लोल (प्रत्य०)] १. (ऐसा व्यक्ति) जिसकी जिधर चाहे नाक घुमाई जा सके। २. निर्बुद्धि। मूर्ख। पु०=नकलनोर। |
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