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नष्टा  : स्त्री० [सं० नष्ट+टाप्] (स्त्री) जिसका चरित्र या सतीत्व नष्ट हो चुका हो। स्त्री० १. कुलटा। दुराचारिणी। २. रंडी। वेश्या।
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नष्टाग्नि  : पुं० [नष्ट-अग्नि, ब० स०] वह साग्निक ब्राह्मण या द्विज जिसके यहाँ की अग्नि आलस्य,प्रमाद आदि के कारण बुझ चुकी हो।
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नष्टात्मा (त्मन्)  : वि० [नष्ट-आत्मन्, ब० स०] १. जिसकी आत्मा नष्ट हो चुकी हो। २. बहुत बड़ा दुष्ट तथा नीच।
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नष्टाप्तिसूत्र  : पुं० [नष्ट-आप्ति, ष० त०, नष्टाप्ति-सूत्र, ष० त०] वह सूत्र या सुराग जिससे खोई या चोरी गई हुई चीज की खोज की जाती है।
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नष्टार्तव  : पुं० [सं० नष्ट-आर्तव, ब० स०] एक रोग जिसमें स्त्री का मासिक धर्म-बन्द हो जाता है। वि० [स्त्री०] जिसे मासिक धर्म न होता हो या जिसका मासिक धर्म होना बंद हो चुका हो।
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नष्टार्थ  : वि० [नष्ट-अर्थ, ब० स०] १. (व्यक्ति) जिसका धन नष्ट हो चुका हो। २. (शब्द) जिसका कोई अर्थ उससे बिलकुल छूट चुका हो।
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नष्टाश्वदग्धरथन्याय  : पुं० [नष्ट-अश्व, ब० स० दग्ध, रथ, ब० स० नष्टाश्व-दग्धरथ, द्व० स०, रथ-न्याय, ष० त०] घोड़ों के खोने और रथ के जलने की एक कथा पर आधारित एक न्याय जिसका आशय यह है कि दो व्यक्ति आपसी सहयोग से किसी काम में सफल हो सकते हैं। विशेष–दो व्यक्ति अपने-अपने रथों पर कहीं जा रहे थे। किसी पड़ाव पर एक व्यक्ति के घोड़े खो गये और दूसरे का रथ जल गया। तब एक के रथ में दूसरे के घोड़े जोतकर वे दोनों गंतव्य स्थान पर पहुँचने में समर्थ हुए थे।
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