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नाचना  : अ० [सं० नर्तन, हिं० नाच] १. उमंग में आकर और विशुद्ध हार्दिक प्रसन्नता प्रकट करने के लिए पैरों को थिरकाते हुए और अनेक प्रकार से शरीर के भिन्न-भिन्न अंग हिलाते हुए मनमाने ढंग से उछलना-कूदना। जैसे–सरदार को सकुशल लौटते देखकर सब भील नाचने लगे। मुहा०–नाच उठना=बहुत अधिक प्रसन्नता के आवेग में उछल पड़ना। जैसे–पिताजी के हाथ में खिलौने और मिठाइयाँ देखकर बच्चे नाच उठे। २. उक्त प्रकार के अंग-संचालन और शारीरिक गतियों का वह कलात्मक विकसित रूप, जो आज-कल शिक्षित और सभ्य समाजों में प्रचलित है, और जिसके साथ ताल और लय का मेल तथा गाना-बजाना भी सम्मिलित हो गया है। ३. किसी पदार्थ का बहुत-कुछ उसी प्रकार की चक्राकार गति में आना या होना, जैसे चक्राकार गति नाच के समय मनुष्य की होती है। जैसे–आतिशबाजी की चरखी या लट्टू का नाचना। ४. किसी वस्तु या व्यक्ति का रह-रहकर जल्दी-जल्दी इधर-उधर आना-जाना, हिलना-डुलना या किसी प्रकार की गति में होना। जैसे–(क) यह लड़का दिन भर इधर-उधर नाचता रहता है; कहीं स्थिर होकर नहीं बैठता। (ख) जब हवा चलती है, तब दीए की लौ नाचती रहती है। (ग) शिकारी का तीर नाचता हुआ सामने से निकल गया। मुहा०–(किसी अशुभ बात का) सिर पर नाचना=इतना पास आ पहुँचना कि तुरन्त कोई बुरा परिणाम दिखाई पड़ सकता हो। जैसे–(क) ऐसा जान पड़ता है कि उसके सिर पर मौत नाच रही है। (ख) अब तुम्हारा पाप तुम्हारे सिर पर नाचने लगा है। आँखों के सामने नाचना=उपस्थित या प्रस्तुत न होने पर भी रह-रहकर सामने आता या होता हुआ दिखाई देना। जैसे–वह भीषण दृश्य अब तक मेरी आँखों के सामने नाच रहा है। ५. किसी प्रकार के तीव्र मनोवेग के फलस्वरूप उग्र या विकट रूप से इधर-उधर होना। जैसे–क्रोध से नाच उठना। ६. अनेक प्रकार के ऐसे सांसारिक प्रपंचों और प्रयत्नों में लगे रहना जिनका कोई विशेष सुखद परिणाम न हो। उदा०–अब मैं नाच्यौं बहुत गोपाल।–सूर। ७. दूसरों के कहने पर चलना अथवा उनके इंगितों का अनुसरण करते चलना। जैसे–तुम जिस तरह नचाते हो, मैं उसी तरह नाचता हूँ।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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