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नाटक  : पुं० [सं०√नट्+ण्वुल–अक] १. नाट्य या अभिनय करनेवाला। नट। २. नटों या अभिनेताओं के द्वारा रंगमंच पर होनेवाला ऐसा अभिनय, जिसमें दूसरे पात्रों का रूप धरकर उनके आचरणों, कार्यों, चरित्रों, हाव-भावों, आदि का प्रदर्शन करते हैं। अभिनय। (ड्रामा) ३. वह साहित्यिक रचना, जिसमें किसी कक्ष या घटना का ऐसे ढंग से निरूपण हुआ हो कि रंग-मंच पर सहज में उसका अभिनय हो सके। ४. कोई ऐसा आचरण या व्यवहार जो शुद्ध हृदय से नहीं, बल्कि केवल दूसरों को दिखलाने या धोखे में रखने के उद्देश्य से किया जाय। जैसे–यह पंचायत क्या हुई है, उसका नाटक भर हुआ है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
नाटक-शाला  : स्त्री०=नाट्यशाला।
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नाटका-देवदारु  : पुं० [नाटक+देवदारु] दक्षिण भारत में होनेवाला एक प्रकार का छोटा पेड़, जिसकी लकड़ी से एक प्रकार का तेल निकलता है। इसकी फलियों का साग बनता है और फल गरीब लोग दुर्भिक्ष के समय खाते हैं।
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नाटकावतार  : पुं० [सं० नाटक-अवतार, ष० त०] किसी नाटक में अभिनय के अंतर्गत होनेवाला दूसरे नाटक का अभिनय।
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नाटकिया  : पुं० [सं० नाटक+हिं० ईया (प्रत्य०)] १. नाटक में अभिनय करनेवाला। २. बहुरूपिया।
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नाटकी  : स्त्री० [सं०] इंद्रसभा। पुं० [सं० नाटक] नाटक करके जीविका उपार्जन करनेवाला व्यक्ति। नाटकिया। वि०=नाटकीय।
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नाटकीय  : वि० [सं० नाटक+छ–ईय] १. नाटक-संबंध। नाटक का। २. बहुत ही आकस्मिक रूप से, परन्तु कुशलता और चतुरता पूर्वक किया जानेवाला।
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