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नाडा़  : पुं० [सं० नाड़] १. सूत की वह मोटी डोरी, जिससे स्त्रियाँ घाघरा बाँधती हैं। इजारबंद। नीबी। मुहा०–नाड़ा खोलना=किसी के साथ संभोग करने के लिए उद्यत होना। (बाजारू) २. वह पीला या लाल रँगा हुआ गंडेदार सूत जिसका उपयोग देव-पूजन आदि में होता है। मौली। मुहा०–नाड़ा बाँधना=किसी को कोई कला या विद्या सिखलाने के लिए अपना शिष्य बनाना। ३. पेट की अंदर की वह नली जिससे होकर मल आँतों की ओर आता है। मुहा०–नाड़ा उखड़ना उक्त नली का अपने स्थान से कुछ खिसक जाना, जिसके फलस्वरूप दस्त आने लगते हैं। नाड़ा बैठाना=झटके आदि से उस नली को फिर से अपने स्थान पर लाना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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