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नारी  : स्त्री० [सं० नृ.+अञ्–ङीन्] [भाव० नारीत्व] १. सं० ‘नर’ का स्त्री० रूप। मनुष्य जति का लिंग के विचार से वह वर्ग जो गर्भाधारण करके प्राणियों को जन्म देता है। २. विशेषतः वह स्त्री जिसमें लज्जा, सेवा, श्रद्धा आदि गुणों की प्रधानता हो। ३. युवती तथा वयस्क स्त्रियों की सामूहिक संज्ञा। ४. धार्मिक क्षेत्र में तथा साधकों की परिभाषा में (क) प्रकृति और (ख) माया। ५. तीन गुरु वर्णों की एक वृत्ति। स्त्री० [हिं० नार] वह रस्सी जिससे जुए में हल बाँधा जाता है। स्त्री० [सं० नारीष्टा] चमेली। मल्लिका।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० [?] जलाशयों के किनारे रहनेवाली एक तरह की भूरे रंग की चिड़िया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० १.=नाड़ी। २.=थाली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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नारी-कवच  : पुं० [ब० स०] एक सूर्यवंशी राजा जिसे स्त्रियों ने अपने बीच में घेर कर परशुराम से वध किये जाने से बचा लिया था। क्षत्रियों का वंश विस्तार इन्हीं से माना जाता है।
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नारीकेल  : पुं०=नारिकेल (नारियल)।
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नारीच  : पुं० [सं० नाडीच, ड=र] नालिता नाम का शाक।
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नारी-तरंगक  : पुं० [ष० त०] १. वह व्यक्ति जो नारी का हृदय तरंगित करे। २. प्रेमी। ३. व्यभिचारी व्यक्ति।
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नारी-तीर्थ  : पुं० [मध्य० स०] एक तीर्थ जहाँ अर्जुन ने ब्राह्मण के शाप से ग्राह बनी हुई पाँच अप्सराओं का उद्धार किया था।
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नारी-मुख  : पुं० [ब० स०] पुराणानुसार कूर्म विभाग से नैर्ऋत् की ओर का एक देश।
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नारीष्टा  : स्त्री० [नारी-इष्टा, ष० त०] चमेली। मल्लिका।
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