शब्द का अर्थ
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नालंदा :
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पुं० [सं०] मगध में स्थित एक जगत्-विख्यात् प्राचीन विश्व-विद्यालय जो पाटिलपुत्र से 30 कोस दक्षिण में था। |
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नालंब :
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वि० [स्त्री० नालंबा] निरवलंब। उदा०–पर हाय आज वह हुई निपट नालंबा।–मैथिलीशरण गुप्त।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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नालंबी :
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स्त्री० [सं०] शिव की वीणा। |
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नाल :
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स्त्री० [सं०√नल् (बंधन)+ण] १. कमल, कुमुद आदि फूलों की पोली डंडी। डाँडी। २. पौधों में डंठल। कांड। ३. गेहूँ, जौ आदि की वह डंडी जिसमें बालें निकलती हैं। ४. नल या नली। २. बंदूक के आगे निकला हुआ पोला लंबा अंश जिसमें से गोली निकलती है। ७. जुलाहों की नली जिसमें वे सूत लपेटकर रखते हैं। छूँछा। कैंडा। छुज्जा। ८. वह रेशा जो कलम बनाते समय छीलने पर निकलता है। ९. रस्सी के आकार की वह नली जो एक ओर गर्भ के बच्चे की नाभि और दूसरी ओर गर्भाशय से मिली होती है। आँवला। मुहा०–नाल काटना=बच्चे का जन्म होने पर नाल काटकर उसे माता के शरीर से अलग करना। (किसी की कहीं) नाल गड़ी होना=(क) किसी स्थान से अति घनिष्ठ प्रेम या संबंध होना। (ख) किसी स्थान पर कोई स्वत्व होना। १॰. बाँस या मोटे कागज की वह नली जो आतिशबाजी की चरखियों में लगी रहती है और जिसमें विस्फोटक मसाले भरे रहते हैं। ११. छोटा नाला या पनाला। स्त्री० [अ० नअल] १. लोहे का वह अर्द्ध-चंद्राकार टुकड़ा जो घोड़ों की टाप में नीचे की ओर जड़ा जाता है। क्रि० प्र०–जड़ना। २. उक्त आकार का लोहे का पतला टुकड़ा जो जूतों के नीचे उनकी एड़ी घिसने से बचाने के लिए लगाया जाता है। ३. पत्थर का वह भारी कुंडलाकार टुकड़ा जिसे कसरत करनेवाले अभ्यास के लिए उठाते हैं। ४. लकड़ी का वह कुंडलाकार घेरा या चक्कर जिसके ऊपर कूएँ की जोड़ाई की जाती है। ५. वह धन जो जूआ खेलनेवाला व्यक्ति हर बार जीतनेवाले व्यक्ति से वसूल करता है। क्रि० वि० [?] संग या साथ में। (पश्चिम) |
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नालक :
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पुं० [देश०] १. पीतल की एक किस्म। २. उक्त किस्म के पीतल का बना हुआ पात्र। ३. एक प्रकार का बाँस। |
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नाल-कटाई :
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स्त्री० [हिं०] तुरन्त के जन्मे हुए बच्चे की नाक काटने की क्रिया, भाव या मजदूरी। |
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नालकी :
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स्त्री० [सं० नाल=डंडा] एक तरह की लंबी पालकी जिसमें वर की बैठाकर बरात निकाली जाती है। विशेष–कुछ नालकियाँ खुली होती हैं और कुछ पर मेहराबदार छाजन होती है। |
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नालकेर :
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पुं० [सं० नारिकेल] नारियल। |
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नालबंद :
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पुं० [अ०+फा०] [भाव० नालबंदी] १. वह व्यक्ति जो घोड़ों के खुर में नाल जड़ता हो। २. ऐसे मोची जो जूतों में नाल लगाता हो। |
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नालबंदी :
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स्त्री० [अ० नाल+फा० बंदी] जूतों की एड़ी अथवा घोड़ों के खुर में नाल जड़ने का काम। पुं० मुसलिम शासन-काल में एक प्रकार का कर जो जमींदार और छोटे राजा अपनी प्रजा से, उनकी रक्षा के लिए घुड़सवार रखने के बदले में लिया करते थे। |
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नाल-बाँस :
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पुं० [सं० नल+हिं० बाँस] एक तरह का बढ़िया और मजबूत बाँस। |
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नालबंश :
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पुं० [सं० उपमि० स०] नरसल। नरकट। |
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नाल-शतीरी :
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पुं० [अ० नाल+फा० शहतीर] लकड़ी की एक तरह की मेहराब जिसमें अनेक छोटी-छोटी मेहराबें कटी होती हैं। |
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नाल-शाक :
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पुं० [सं०] सूरन की नाल जिसकी तरकारी बनाई जाती है। |
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नाला :
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पुं० [सं० नाल] [स्त्री० अल्प० नाली] १. वह गहरा तथा लंबा कृत्रिम जल-मार्ग जो नहर आदि की अपेक्षा कम चौड़ा होता है तथा जिसमें बरसाती, गंदा या फालतू पानी बहकर किसी नदी आदि में जा गिरता है। २. रंगीन गंडेदार सूत। ३. दे० ‘नाड़ा’। स्त्री० [सं० नाल+टाप्] १. कमलदंड। २. पौधे का कोमल तना। पुं० [अ० नालः] आर्तनाद। चीत्कार। |
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नालायक :
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वि० [फा० ना+अ० लाइक] १. जिसमें योग्यता का अभाव हो। २. जो मूर्खतापूर्ण दुष्ट आचरण या व्यवहार करता हो। |
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नालायकी :
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स्त्री० [हिं० नालायक+ई (प्रत्य०)] १. नालायक होने की अवस्था या भाव। अयोग्यता। २. मूर्खतापूर्वक किया हुआ कोई दुष्ट आचरण। |
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नालि :
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स्त्री० [सं०√नल्+णिच्+इन्] १. नालिका। नली। उदा०–जुआलि नालि तसु गरम चेहवी।–पृथ्वीराज। २. बंदूक। |
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नालिक :
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पुं० [सं० नाल+ठन्–इक] १. कमल। २. बाँसुरी। ३. भैंसा। ४. प्राचीन काल का एक अस्त्र जिसकी नली में कुछ चीजें भरकर चलाई या फेंकी जाती थीं। |
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नालिका :
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स्त्री० [सं० नाला+कन्–टाप्, इत्व] १. छोटी नाल या डंठल। २. नली। ३. पानी आदि बहने की नाली। ४. करघे में की वह नली जिसके अंदर लपेटा हुआ सूत रहता है। ५. पटुआ नाम का साग। ६. एक प्रकार का गन्ध-द्रव्य। |
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नालिकेर :
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पुं०=नारिकेल (नारियल)। |
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नालि-केरी :
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स्त्री० [सं० नालिकेर+ङीष्] एक तरह का शाक। |
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नालि-जंघ :
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पुं० [सं० ब० स०] डोम कौआ। |
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नालिता :
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स्त्री० [सं०] १. पटसन। पटुआ। २. उक्त के कोमल पत्तों का बनाया जानेवाला शाक। |
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नालिनी :
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स्त्री० [सं०] तंत्र में नाक का छेद। |
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नालिश :
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स्त्री० [फा०] १. किसी के संबंध में की जानेवाली फरियाद। २. किसी के विरुद्ध दायर किया जानेवाला मुकदमा। |
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नाली :
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स्त्री० [हिं० नाला का स्त्री० अल्पा० रूप] १. गंदा पानी बहने का घर, गली आदि में का पतला और छिछला मार्ग। छोटा नाला। मोरी। २. जल-मार्ग जो प्रायः कम चौड़ा और छिछला होता है। जैसे–खेत में की नाली। ३. वह गहरी लकीर तो तलवार की बीचो बीच पूरी लंबाई तक गई होती है। ४. पतला। नल। नली। ५. पुरानी चाल की बंदूक। उदा०–बान नालि हथनाल, तुपक तीरह सब सज्जिय।–चंदबरदाई। ६. कुम्हार के आँवे का वह नीचे की ओर गया हुआ छेद जिससे आग डालते हैं। घोड़े की पीठ पर का गड्ढा। ८. चोंगा। ढरका। स्त्री० [सं० नालि+ङीष्] १. नाड़ी। २. करेमू का साग। ३. कमल का डंठल। ४. एक उपकरण जिससे हाथी का कान छेदा जाता है। ५. एक तरह का बाघ। ६. घड़ी। |
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नालीक :
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पुं० [सं० नाली√कै (शब्द)+क] १. पुरानी चाल का एक तरह का तीर जो बाँस की नली में रखकर चलाया जाता था। तुफंग। २. भाला। ३. कमलों का जाल या समूह। ४. कमल-नाल। ५. कमंडलु। |
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नालीकिनी :
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स्त्री० [सं० नालीक+इनि–ङीप्] १. पद्म समूह। २. कमलों से पूर्ण जलाशय। |
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नालीदार :
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वि० [हिं० नाली+फा० दार] जिसमें नाली या नालियाँ बनी या लगी हों। |
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नालीप :
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पुं० [सं०] कदंब। |
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नाली-व्रण :
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पुं० [सं० मध्य० स०] नासूर। |
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नालूक :
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वि० [सं०] कृश। दुबला। पुं० एक प्रकार का गन्ध-द्रव्य। |
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नालौट :
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वि० [हिं० ना+लौटना] बात कहकर पलट जानेवाला। मुकरनेवाला। |
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नालौर :
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वि०=नालौट। |
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