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निर्वाण  : भू० कृ० [सं० निर्√वा (गति)+क्त] १. (आग या दीया) बुझा हुआ। २. (ग्रह या नक्षत्र) डूबा हुआ। अस्त। ३. धीमा या मंद पड़ा हुआ। ४. मरा हुआ। मृत। ५. निश्चल। शांत। ६. शून्य स्थिति में पहुँचा हुआ। वि० बिना वाण का। जिसमें वाण न हो। पुं०√[निर् वा+ल्युट्–अन] १. आग या दीए का बुझना। २. नष्ट या समाप्त होना। न रह जाना। ३. अंत। समाप्ति। ४. अस्त होना। डूबना। ५. शांति। ६. मुक्ति। मोक्ष। ७. शरीर से जीवन या प्राण निकल जाना। मृत्यु। ८. धार्मिक क्षेत्रों में, वह अवस्था जिसमें जीव परमपद तक पहुँचता या उसे प्राप्त करता है। विशेष–यद्यपि प्राचीन भारतीय साहित्य में ‘निर्वाण’ का प्रयोग मुक्ति या मोक्ष के अर्थ में ही हुआ है; परन्तु बौद्ध-दर्शन में यह एक स्वतंत्र पारिभाषिक शब्द हो गया था; और उस परमपद की प्राप्ति का वाचक हो गया था; जिसके लिए साधक लोग साधना करते थे, परवर्ती संत सम्प्रदायों में भी इसकी यही अथवा बहुत कुछ इसी प्रकार की व्याख्या गृहीत हुई है। यह वही अवस्था है जिसमें जीव सब प्रकार से संस्कारों से रहित या शून्य हो जाता है और जन्म-मरण के बंधन से छूट जाता है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
निर्वाणी  : वि० [सं० निर्वाण] निर्वाण-संबंधी। निर्वाण का। जैसे–निर्वाणी अखाड़ा। पुं० जैनों के एक देवता।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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