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नेग  : पुं०[सं० नैयमिक] १. मांगलिक और शुभ अवसरों पर संबंधियों नौकरों-चाकरों तथा अन्य आश्रितों (जैसे-नाई,धोबी,चमार आदि) को कुछ धन आदि देने की प्रथा। २. इस प्रकार दिया जानेवाला धन या वस्तु। ३. उक्त के आधार पर किसी प्रकार का परम्परागत अधिकार या स्वत्व। दस्तूर। ४. कोई शुभ कार्य। जैसे-सौ रुपए खर्च करके तुमने कोई नेग तो किया नहीं। ५. अनुग्रह। कृपा। पुं० [सं० निकट] १. निकटता। सामीप्य। २. संबंध। संपर्क। मुहा०–किसी के नेग लगना=(क) संबंध या संपर्क में आना। (ख) किसी में लीन होना। समाना। (किसी चीज या बात का) नेग लगना=सार्थक या सफल होना। जैसे-चलो,ये रुपए तो नेग लगे,अर्थात् इनका व्यय होना सफल हुआ।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
नेग-चार  : पुं० [हिं० नेक+सं० चार] १. मांगलिक अवसरों पर होनेवाले सामाजिक उपचार, क्रियाएँ विधान आदि। २. उक्त अवसरों पर नेग के रूप में लोगों को थोड़ा-थोड़ा धन देने की क्रिया या भाव। ३. दे० ‘नेग जोग’।
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नेग-जोग  : पुं० [हिं० नेग+अनु० जोग] १. शुभ अवसरों पर संबंधियों तथा काम करनेवालों को कुछ धन दिये जाने की प्रथा। २. ऐसा मांगलिक या शुभ अवसर जिस पर लोगों को नेग देने की प्रथा हो।
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नेगटी  : पुं० [हिं० नेग+टा (प्रत्य०)] नेग या परम्परागत रीति का पालन करनेवाला। दस्तूर पर चलनेवाला।
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नेगी  : पुं० [हिं० नेग] १. शुभ अवसरों पर नेग पाने का अधिकारी। जैसे-धोबी नाई भाट आदि। २.किसी की उदारता दया आदि से लाभ उठाकर बराबर उसकी आकांक्षा और आशा रखनेवाला व्यक्ति। उदा०–गलरामृत शिव आशुतोष बलविश्व सकल नेगी।–निराला।
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नेगी-जोगी  : पुं०[हिं०नेग-जोग] =नेगी।
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