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शब्द का अर्थ

न्यून  : वि० [सं० नि√ऊन् (घटाना)+अच्] [भाव० न्यूनता] १. आवश्यक या उचित से कम। थोड़ा। २. किसी की तुलना में घटकर या हल्का। ३. क्षुद्र। नीच। ४. जिसमें कुछ विकार आ गया हो। विकृत।
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न्यून-कोण  : पुं० [कर्म० स०] ज्यामिति में, वह कोण जो समकोण से छोटा होता है। (एक्यूट ऐंगिल)
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न्यून-तम  : वि० [न्यून+तमप्] जो सबसे कम, थोड़ा घटकर या संक्षिप्त हो।
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न्यूनता  : स्त्री० [सं० न्यून+तल्+टाप्] १. न्यून होने की अवस्था या भाव। २. अल्पता। कमी। हीनता। ३. साहित्य में अर्थालंकारों का एक दोष जो उस समय माना जाता है जब वर्णन में उपमेय से उपमान में कोई जातिगत, धर्मगत, धर्मगत या प्रमाणगत कमी या त्रुटि दिखाई देती है।
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न्यूनन  : पुं० [सं० नि√ऊन्+ल्युट्–अन] कम, थोड़ा या संक्षिप्त करना। घटाना।
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न्यून-पद  : पुं० [सं० ब० स०] साहित्य में ऐसा कथन जिसमें कोई आवश्यक शब्द या पद अज्ञान या भूल से छूट गया हो।
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न्यूनांग  : वि० [सं० न्यून-अंग, ब० स०] जिसमें कोई अंग कम हो।
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न्यूनाधिक  : वि० [सं० न्यून-अधिक, द्व० स०] [भाव. न्यूनाधिक्य] १. जो कुछ बातों में कहीं कुछ कम और कुछ बातों में कहीं कुछ अधिक हो। २. उक्त प्रकार से कम या अधिक हो सकनेवाला। (मार्जिनल)
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न्यूनी  : पुं० [सं० नवनीत] मक्खन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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