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पंथ  : पुं० [सं० पंथ] १. मार्ग। रास्ता। उदा०—पंथ रहने दो अपरिचित।—महादेवी। क्रि० प्र०—गहना।—दिखाना।—पकड़ना।—लगना।—लगाना। मुहा०—(किसी का) पंथ जोहना, निहारना या सेना=रास्ता देखना। प्रतीक्षा करना। २. आचार-व्यवहार या रहन-सहन का ढंग या प्रणाली। मुहा०—पंथ पर या पंथ में पाँव देना=(क) चलने में प्रवृत्त होना। चलना आरंभ करना। (ख) कोई आचार, व्यवहार ग्रहण करना। (किसी के) पंथ लगना=(क) किसी का अनुयायी बनना। (ख) किसी को दंग या परेशान करने के लिए उसके कार्य या मार्ग में बाधक होना। (किसी को) पंथ पर लगाना या लाना=अच्छे और ठीक रास्ते पर लगाना या लाना। ३. कोई ऐसा धार्मिक मत या सम्प्रदाय जिसमें किसी विशिष्ट प्रकार की उपासना या साधना-पद्धति प्रचलित हो। (कल्ट) जैसे—कबीर या नानक पंथ। ४. सिक्खों का एक सम्प्रदाय।
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पंथक  : वि० [सं० पथिन्+कन्, पंथ आदेश] मार्ग में उत्पन्न होने वाला।
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पंथकी  : वि०=पथिक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पंथाई  : पुं०=पंथी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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पंथान  : पुं०=पंथ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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पंथिक  : वि०=पंथिक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पंथी  : पुं० [सं० पथिन्] १. पंथ या पथ पर चलनेवाला। पथिक। बटोही। राही। २. किसी पंथ या सम्प्रदाय या अनुयायी। जैसे—कबीर-पंथी। ३.सिक्खों के पंथ नामक दल का सदस्य। स्त्री० [हिं० पंथ] १. पंथ होने की अवस्था या भाव। २. पद जो जो कुछ शब्दों के अन्त में लगकर भाववाचक प्रत्यय ‘ता’ या ‘पन’ का अर्थ देता है। जैसे—अवारपंथी, गधापंथी।
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