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पत्तल  : स्त्री० [सं० पत्र, हिं० पत्ता] १. पलाश, महुए आदि के पत्तों को छोटी-छोटी सीकों की सहायता से जोड़कर थाली के सदृश बनाया हुआ गोलाकार आधार। कहा०—जिस पत्तल में खाना, उसी में छेद करना=अपने उपकारक, पालक, संरक्षक आदि का भी अपकार करना। पद—एक पत्तल के खानेवाले=परस्पर घनिष्ठ सामाजिक संबंध रखनेवाले। परस्पर रोटी-बेटी का व्यवहार करनेवाले। सजातीय। जूठी पत्तल=किसी की जूठी हुई भोजन सामग्री। उच्छिष्ट। मुहा०—पत्तल खोलना=जिस काम की प्रतिज्ञा की या शर्त रखी गई हो, उसके पूरे होने पर ही भोजन करना। (दे० नीचे ‘पत्तल बाँधना’) पत्तल पड़ना=भोजन के समय खानोंवालों के लिए पत्तलें क्रम से बिछाई या रखी जाना। पत्तल परसना=(क) खानेवालों के सामने पत्तलें रखना। (ख) उक्त पत्तलों पर भोजन की सामग्री रखना। पत्तल बाँधना=यह प्रतिज्ञा करना या लगाना कि जब तक अमुक काम न हो जायगा, तब तक भोजन नहीं किया जायगा। (किसी की) पत्तल में खाना=(किसी के साथ) खान-पान का संबंध करना या रखना। पत्तल लगाना=पत्तल परसना (दे० ऊपर)। २. पत्तल पर परोसे हुए खाद्य पदार्थ। क्रि० प्र०—लगाना। ३. उतना भोजन जितना एक साधारण आदमी करता हो। जैसे—जो खाने के लिए न आवे, उसके घर पत्तल भेज देना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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