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शब्द का अर्थ

परांग  : पुं० [सं० पर-अंग, ष० त०] १. दूसरे का अंग। [कर्म० स०] २. श्रेष्ठ अंग।
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परांगद  : पुं० [सं० परांग√दा (देना)+क] शिव।
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परांगभक्षी (क्षिन्)  : वि० [सं० परांग√भक्ष् (खाना)+ णिनि] १. वह जो दूसरों के अंग खाता हो। २. परजीवी।
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परांगव  : पुं० [सं० परांग√वा (गति)+क] समुद्र।
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पराँचा  : पुं० [फा० प्रांचः] १. तख्ता। २. तख्तों की पाटन। ३. नावों का बेड़ा।
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परांज  : पुं० [सं० पर√अञ्ज् (चिकना करना)+अच्] १. तेल निकालने का यंत्र। कोल्हू। २. फेन। ३. छुरी, तलवार आदि का फल।
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परांजन  : पुं०=परांज।
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पराँठा  : पुं० [हिं० पलटना] [स्त्री० अल्पा० पराँठी] तवे पर घी लगाकर सेंकी हुई रोटी।
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परांत  : पुं० [सं० पर-अंत, कर्म० स०] मृत्यु।
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पराँतक  : पुं० [सं० पर-अंतक, कर्म० स०] शिव।
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परांत-काल  : पुं० [ष० त०] १. मृत्यु का समय। २. वह समय जब कोई आवागमन के चक्र से छूटने के लिए शरीर छोड़ रहा हो।
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पराँदा  : पुं० [फा० परंद] [स्त्री० अल्पा० पराँदी] स्त्रियों के बाल गूँथने की चोटी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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परा  : उप० एक संस्कृत उपसर्ग जो निम्नलिखित अर्थों में प्रयुक्त होता है—(क) दूरी पर। परे। जैसे—पराकरण। (ख) आगे की ओर। जैसे—पराक्रमण। (ग) विपरीतता। जैसे—पराजय, पराभव। वि० [सं० पर का स्त्री०] १. जो सब से परे हो। २. उत्तम। श्रेष्ठ। स्त्री० [सं०√पृ (पूर्ति)+अच्+टाप्] १. चार प्रकार की वाणियों में पहली जो नाद स्वरूपा और मूलाधार से निकली हुई मानी गई है। वह विद्या जो ऐसी वस्तु का ज्ञान कराती है जो सब गोचर पदार्थों से परे हो। ब्रह्मविद्या। ३. एक प्रकार का साम-गान। ४. एक प्राचीन नदी। ५. गंगा। ६. बाँझ-ककोड़ा। पुं० [हिं० पारना] रेशम फेरनेवाला का लकड़ी का एक औजार। पुं० [?] कतार। पंक्ति। जैसे—फौजें परा बाँधकर खड़ी थीं।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) क्रि० प्र०—बाँधना।
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पराई  : वि० हिं० ‘पराया’ का स्त्री०।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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पराक  : पुं० [सं० पर-आक, ब० स०] १. दे० ‘कृच्छापराक’। २. खड्ग। ३. एक प्रकार का रोग। ४. एक प्रकार का छोटा कीड़ा या जंतु।
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परा-करण  : पुं० [सं० परा√कृ (करना)+ल्युट्—अन] १. दूर करना या परे हटाना। २. अस्वीकृत कराना। ३. तिरस्कृत करना।
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पराकाश  : पुं० [सं० परा√काश् (चमकना)+घञ्] १. शतपथ ब्राह्मण के अनुसार दूर-दर्शिता। दूर की सूझ। दूरवर्ती आशा। ३. दूर का दृश्य।
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पराकाष्ठा  : स्त्री० [सं० व्यस्तपद] १. चरम सीमा। सीमांत। हद। अन्त। २. लाक्षणिक अर्थ में किसी कार्य या बात की ऐसी स्थिति जहाँ से और आगे ले जाने की कल्पना असंभव हो। जैसे—झूठ की पराकाष्ठा। ३. ब्रह्मा की आधी आयु की संख्या। ४. गायत्री का एक भेद।
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पराकोटि  : स्त्री०=पराकाष्ठा।
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पराक्पुष्पी  : स्त्री० [सं० ब० स०,+ङीष्] आपामार्ग। चिचड़ी।
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पराक्रम  : पुं० [सं० परा√क्रम् (गति)+घञ्] [वि० पराक्रमी] १. आगे की ओर अथवा किसी के विरुद्ध गमन करना या चलना। २. आगे बढ़कर किसी पर आक्रमण करना। ३. वह गुण या शक्ति जिसके द्वारा मनुष्य कठिनाइयों को पार करता हुआ आगे बढ़ता है और उत्साह, वीरता आदि के अच्छे और बड़े काम करता है। ४. उद्योग। पुरुषार्थ। मुहा०—पराक्रम चलना=शारीरिक सामर्थ्य के आधार पर पुरुषार्थ या उद्योग हो सकना। जैसे—जब तक हमारा पराक्रम चलता है, तब तक हम कुछ न कुछ काम करते ही रहेंगे।
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पराक्रमण  : पुं० [सं० परा√क्रम्+ल्युट्—अन] आगे की ओर अथवा किसी के विरुद्ध बढ़ना।
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पराक्रमी (मिन्)  : वि० [सं० पराक्रम+इनि] १. जिसमें यथेष्ट पराक्रम हो। २. पराक्रम करने या दिखानेवाला अर्थात् बलवान या वीर। ३. पुरुषार्थी।
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पराक्रांत  : वि० [सं० परा√क्रम्+क्त] १. पीछे की ओर मोड़ा हुआ। २. जिसमें उत्साह और वीरता हो। ३. आक्रांत।
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पराग  : पुं० [सं० परा√गम् (जाना)+ड] १. वह रज या धूल जो फूलों के बीच लम्बे केसरों पर जमी रहती है। पुष्पराज। (पोलेन) २. धूलि। रज। ६. चन्दन। ४. कपूर के छोटे कण। ५. एक प्राचीन पर्वत। ६. उपराग। स्वछन्द रूप में होनेवाली गति। ८. प्राचीन भारत में नहाने से पहले शरीर पर लगाने का एक सुगंधित चूर्ण।
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पराग-केसर  : सं० [मध्य० स०] फूलों के बीच का वह केसर (गर्भ केसर से भिन्न) या सींगा जो उसका पुंर्लिंग अंग माना जाता है। (स्टैमेन)
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परागजज्वर  : पुं० [सं०] एक प्रकार का रोग जो कुछ घासों और वृक्षों का पराग शरीर में पहुँचने से उत्पन्न होता है। इसमें आँखें और ऊपरी स्वास संस्थान में सूजन होती है जिससे छींकें आने लगती हैं और कभी-कभी ज्वर तथा दमा भी हो जाता है।
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परागण  : पुं० [सं० परागकरण] पेड़-पौधों का पराग या पुष्परज से युक्त होना या किया जाना। (पोलिनेशन)
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परागत  : भू० कृ० [सं० परा√गम् (जाना)+क्त] १. दूर गया हुआ। २. मरा हुआ। मृत। ३. घिरा हुआ। ४. फैला हुआ। विस्तृत।
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परागति  : स्त्री० [सं० परा√गम्+क्तिन्] गायत्री।
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परागना  : अ० [सं० उपराग=विषयाशक्ति] आसक्त होना। अ० [सं० पराग+हिं ना (प्रत्य०)] पराग से युक्त होना। स० पराग से युक्त करना।
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पराङमुख  : वि० [सं० ब० स०] १. जो पीछे की ओर मुँह फेरे हुए हो। विमुख। २. जो किसी की ओर ध्यान न देकर उसकी ओर से मुँह फेर ले। ४. उदासीन। ४. विपरीत। विरुद्ध।
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पराच्  : वि० [सं० परा√अञ्च् (गति)+क्विप्] १. प्रतिलोमगामी। उलटा चलने या जानेवाला। ऊर्ध्वगामी। ३. परोक्ष में जानेवाला। ३. जिसका मुँह बाहर की ओर हो।
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पराचीन  : वि० [सं० पराच्+ख—ईन] १. पराङमुख। २. दूसरी ओर स्थित। वि०=प्राचीन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पराछित  : पुं०=प्रायश्चित। उदा०—मारयाँ परछित लागसी म्हाँने दीजो पीहर मेल।—मीराँ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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पराजय  : स्त्री० [सं० परा√जि (जीतना)+अच्] प्रतियोगिता, युद्ध आदि में होनेवाली हार। शिकस्त। ‘जय’ का विपर्याय।
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पराजिका  : स्त्री० [सं० उपराजिका या हिं० परज] संगीत में एक प्रकार की रागिनी।
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पराजित  : भू० कृ० [सं० परा√जि+क्त] हराया या हारा हुआ।
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पराणसा  : स्त्री० [सं० परा√अन् (जीना)+अस+टाप्] चिकित्सा। औषधोपचार। इलाज।
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परात  : स्त्री० [सं० पात, मि० पुर्त्त० प्राट] थाली के आकार का ऊँचे किनारोंवाला एक बड़ा बरतन।
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परात्पर  : वि० [सं० अलुक्, स०] जिसके परे या जिससे बढ़कर कोई दूसरा न हो। सर्वश्रेष्ठ। पुं० १. परमात्मा। २. विष्णु।
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परात्प्रिय  : पुं० [सं० अलुक् स०] कुश की तरह की एक प्रकार की घास जिसमें जौ या गेहूँ के से दाने पड़ते हैं। उलपतृण।
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परात्मा (त्मन्)  : पुं० [सं० पर-आत्मन्, कर्म० स०] परमात्मा। परब्रह्म।
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परादन  : पुं० [सं० पर-अदन, ब० स०] अरब या फारस देश का एक प्रकार का घोड़ा।
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पराधि  : स्त्री० [सं० पर-आधि, कर्म० स०] तीव्र मानसिक व्यथा।
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पराधीन  : वि० [सं० पर-अधीन, ष० त०] [भाव० पराधीनता] जो दूसरे या दूसरों के अधीन हो। जिसपर किसी दूसरे का अंकुश या शासन हो।
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पराधीनता  : स्त्री० [सं० पराधीन+तल्+टाप्] पराधीन होने की अवस्था या भाव।
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परान  : पुं०=प्राण।
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पराना  : अ० [सं० पलायन] १. भागना। २. दूर होना। स० १. भगाना। २. दूर करना। वि० [स्त्री० परानी]=पुराना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) स०=पिराना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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परानी  : पुं०=प्राणी।
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परान्न  : पुं० [सं० पर-अन्न, ष० त०] दूसरे का दिया हुआ अन्न या भोजन। पराया धान्य।
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परान्नभोजी (जिन्)  : वि० [सं० परान्न√भुज् (खाना)+णिनि] जो दूसरों का दिया हुआ अन्न खाकर पलता हो।
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परापति  : स्त्री०=प्राप्ति।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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परापर  : वि० [सं० पर+अपर] १. पर और अपर। २. जिसमें परत्व और अपरत्व दोनों गुण हों। (वैशेषिक) ३. अच्छा और बुरा। पुं० फालसा।
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परापरज्ञ  : वि० [सं०] १. पर और अपर का ध्यान रखनेवाला। २. ऊँच-नीच या भला-बुरा समझनेवाला।
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पराभक्ति  : स्त्री० [सं० व्यस्त पद] मनुष्य के मन में ईश्वर के प्रति होनेवाली वह विशुद्ध भक्ति जिसमें अपने स्वार्थ या हित की कुछ भी कामना नहीं होती। साध्या भक्ति।
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पराभव  : पुं० [सं० परा√भू (होना)+अप्] १. व्यक्ति, जाति देश आदि का होनेवाला पतनोन्मुखी तथा ह्रासमय अंत। २. नाश। विनाश। ३. पराजय। हार। ४. अपमान। बेइज्जती।
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पराभिक्ष  : पुं० [सं० पर-आ√भिक्ष् (माँगना)+अण्] एक प्रकार का वानप्रस्थ जो थोड़ी सी भिक्षा से निर्वाह करता हो।
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पराभूत  : भू० कृ० [सं० परा√भू+क्त] १. जिसका पराभव किया गया हो, या हुआ हो। हराया या हारा हुआ। पराजित। परास्त। २. ध्वस्त। विनष्ट।
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पराभूति  : स्त्री० [सं० परा√भू+क्तिन्] दे० ‘पराभव’।
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परा-मनोविज्ञान  : पुं० [सं०] आधुनिक खोजों और प्रयोगों के आखार पर स्थिति एक नया विज्ञान जिसमें यह सिद्ध होता है कि मनुष्य में अथवा उसकी आत्मा या मन में कुछ ऐसी आध्यात्मिक और मानसिक शक्तियाँ हैं जो काल, देश तथा शरीर की सीमाओं में बद्ध नहीं है और जो ऐसे अद्भुत कार्य करती हैं जिनका साधारण बुद्धि या विज्ञान से किसी प्रकार समाधान नहीं होता। (पैरा-साइकोलाजी)
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परा-मनोवैज्ञानिक  : वि० [सं०] परा-मनोविज्ञान-संबंधी। पुं० परा-मनोविज्ञान का ज्ञाता या पंडित।
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परामर्श  : पुं० [सं० परा√मृश् (छूना)+घञ्] १. पकड़ना। खींचना। जैसे—केश-परामर्श। २. विवेचन। विचार। ३. विवेचन या विचार के लिए आपस में होनेवाली सलाह। ४. किसी विषय में दूसरे से ली जानेवाली सलाह। ५. निर्णय। क्रि० प्र०—करना। देना।—माँगना।—लेना। ६. अनुमान। अन्दाज। अटकल। ६. याद। स्मृति। ८. तरकीब। युक्ति।
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परामर्श-दाता (तृ)  : पुं० [सं० ष० त०] [स्त्री० परामर्शदात्री] दूसरों को परामर्श या सलाह देनेवाला।
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परामर्शदात्री-परिषद्  : स्त्री० [सं० व्यस्तपद]=परामर्श-समिति।
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परामर्शन  : पुं० [सं० परा√मृश्+ल्युट्—अन] १. खींचना। २. परामर्श अथवा सलाह करने की क्रिया या भाव। ३. चिन्तन, ध्यान या स्मरण।
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परामर्श-समिति  : स्त्री० [सं० व्यस्त पद] वह समिति जो किसी विषय के संबंध में अपनी राय देने के लिए नियुक्त की जाती है।
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परामृत  : वि० [सं० पर-अमृत, कर्म० स०] जिसने मृत्यु को जीत लिया हो।
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परापचा  : पुं० [फा० पार्चः] १. कपड़ों के कटे टुकड़ों की टोपियाँ आदि बनाकर बेचनेवाला। २. सिले-सिलाये कपड़े बेचनेवाला रोजगारी।
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परायण  : वि० [सं० पर-अयन, ब० स०] [स्त्री० परायणा] १. गया या बीता हुआ। गत। २. किसी काम या बात में अच्छी तरह लगा हुआ। निरत। जैसे—कर्त्तव्यपरायण। ३. किसी के प्रति पूर्ण निष्ठा या भक्ति रखनेवाला। जैसे—धर्मपरायण स्त्री। पुं० १. वह स्थान जहाँ शरण मिली हो। शरण का स्थान। २. विष्णु।
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परायत्त  : वि० [सं० पर-आयत्त, ष० त०] पराधीन।
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पराया  : वि० पुं० [सं० पर+हिं० आया (प्रत्य०) [स्त्री० पराई] १. जिसका संबंध दूसरे से हो। अपने से भिन्न। ‘अपना’ का विपर्याय। २. आत्मीय या स्वजन से भिन्न। पद—पराया समझकर=आत्मीयता के भाव से रहित या विमुख होकर।
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परायु (युस्)  : पुं० [सं० पर-आयुस्, ब० स०] ब्रह्मा, जिनकी आयु सबसे अधिक कही गई है।
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परार  : वि०=पराया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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परारध  : पुं०=परार्द्ध।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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परारबध  : पुं०=प्रारब्ध।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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परारि  : अव्य० [सं० पूर्वतर+अरि, नि० पर—आदेश] पूर्वतर वर्ष में। परियार साल।
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परारु  : पुं० [सं० परा√ऋ (गति)+उण्] करेला।
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परारुक  : पुं० [सं० परा√ऋ+उक] १. चट्टान। २. पत्थर।
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परार्थ  : वि० [सं० पर-अर्थ, नित्य स०] [भाव० परार्थता] जो दूसरे के निमित्त हो। पुं० १. दूसरों का ऐसा काम जो उपकार की दृष्टि से किया जाता हो। २. दे० ‘परमार्थ।’
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परार्थवाद  : पुं० [सं० ष० त०] यह सिद्धांत कि जहाँ तक हो सके, दूसरों का उपकार करते रहना चाहिए। (एल्ट्रू इज़्म)
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परार्थवादी (दिन्)  : वि० [सं० परार्थ√वद् (बोलना)+ णिनि] परार्थवाद-संबंधी। पुं० १. परार्थवाद का अनुयायी। २. वह जो सदा दूसरों का उपकार करता हो।
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परार्द्ध  : पुं० [सं० अर्ध,√ऋधे (वृद्धि)+अच् पर-अर्ध, कर्म० स०] १. बादवाला आधा अंश। उत्तरार्द्ध। २. वह संख्या जिसे लिखने में अठारह अंक होते हैं। एक शंख। १॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰। ३. ब्रह्मा की आयु का परवर्ती आधा अंश।
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परार्द्धि  : पुं० [सं० परा-ऋद्धि, ब० स०] विष्णु।
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परार्ध्य  : वि० [सं० परार्ध+यत्] १. श्रेष्ठ। २. उत्तम। पुं० १. असीम संख्या। २. सबसे बड़ी वस्तु।
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परालब्ध  : पुं०=प्रारब्ध।
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पराव  : पुं०=पराया। पुं० [हिं० पराना] भागने की क्रिया या भाव।
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परावत  : पुं० [सं० परा√अव् (रक्षण आदि)+अतच्] फालसा।
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परावन  : पुं० [सं० पलायन, हिं० पराना] १. एक साथ बहुत से लोगों का भागना। भगदड़। पलायन। वि० भागनेवाला। भग्गू। पुं० [हिं० पड़ना, पड़ाव] गाँववालों का गाँव के बाहर डेरा डालकर उत्सव मनाना।
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परावर  : वि० [सं० पर-अवर, कर्म० स०] [स्त्री० परावर] १. पहले और पीछे का। २. निकट और दूर का। ३. सर्वश्रेष्ठ। पुं० १. कारण और कार्य। २. विश्व। ३. अखिलता।
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परावर्त  : पुं० [सं० परा√वृत् (बरतना)+घञ्] १. लौटकर पीछे आना। प्रत्यावर्तन। २. अदला-बदली। विनिमय। ३. दे० ‘प्रतिवर्तन’।
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परावर्तक  : वि० [सं० परा√वृत्+ण्वुल्—अक] १. लौटकर पीछे आने या जानेवाला। २. अदल-बदल जानेवाला।
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परावर्तन  : पुं० [सं० परा√वृत्+ल्युट्—अन] १. लौटकर पीछे आना। प्रत्यावर्तन। २. उलटने पर फिर ज्यों का त्यों हो जाना। ३. उलटाया जाना। ४. दे० ‘अंतरण’। ५. धार्मिक ग्रंथों का पुनर्पठन। (जैन)
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परावर्त-व्यवहार  : पुं० [सं० ष० त०] किसी निर्णय पर होनेवाला पुनर्विचार।
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परावर्तित  : भू० कृ० [सं० परा√वृत्+णिच्+क्त] पलटाया हुआ। पीछे फेरा हुआ। पीछे की ओर लौटाया हुआ।
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परावर्ती (र्तिन्)  : वि० [सं० परा√वृत्+णिनि] १. लौटकर पुनः अपने स्थान पर आने या पहुँचनेवाला। २. फिर से पहलेवाली स्थिति में आनेवाला।
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परा-वसु  : पुं० [सं० प्रा० ब० स०] १. असुरों का पुरोहित। २. रैभ्य मनु के एक पुत्र का नाम। ३. विश्वामित्र के एक पौत्र का नाम।
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परावह  : पुं० [सं० परा√वह् (ढोना)+अच्] वायु के सात भेदों में से एक। विशेष—अन्य छः भेद आवह, उदह, परिवह, प्रवह, विवह और संवह हैं।
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परावा  : वि०=पराया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पराविद्ध  : पुं० [सं० परा√व्यध् (ताड़न करना)+क्त] कुबेर।
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परावृत्त  : वि० [सं० परा√वृत्+क्त] [भाव० परावृत्ति] १. पलटा या पलटाया हुआ। फेरा हुआ। परावर्तित। २. बदला हुआ।
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परावृत्ति  : स्त्री० [सं० परा√वृत्त+क्तिन्] १. पलटने या पलटाने का भाव। पलटाव। परावर्तन। २. व्यवहार या मुदकमे पर फिर से होनेवाला विचार।
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परावेदी (दिन)  : स्त्री० [सं० परा-आ√विद्+णिनि] भटकटैया।
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पराव्याध  : पुं० [सं० परा√व्याध+घञ्] परास।
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पराशय  : वि० [सं० परा√शी (सोना)+अच्] बहुत अधिक।
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पराशर  : पुं० [सं० पर-आ√शृ (हिंसा)+अच्] १. वशिष्ठ के पौत्र और कृष्ण द्वैपायन व्यास के पिता जो पराशर स्मृति के रचयिता माने जाते हैं। २. एक ज्योतिष ग्रंथ (पराशरी संहिता) के रचयिता। ३. आयुर्वेद के एक प्रधान आचार्य।
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पराशरी (रिन्)  : पुं० [सं० पराशर्य+णिनि, यलोप, पृषो० ह्रस्व] १. भिक्षुक। २. संन्यासी।
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पराश्रय  : पुं० [सं० पर-आश्रय, ष० त०] १. दूसरे का अवलंब या आश्रय। २. परवशता। पराधीनता।
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पराश्रया  : स्त्री० [सं० पर-आश्रय, ब० स०+टाप्] बाँदा। परगाछा।
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पराश्रयी (यिन्)  : वि० [सं० पराश्रय+इनि] १. दूसरे के आश्रय और सहारे पर रहनेवाला। २. दे० ‘पर-जीवी’। पुं० ऐसे कीटाणुओं, वनस्पतियों आदि का वर्ग जो दूसरे जंतुओं, वनस्पतियों आदि के अंगों पर रहकर जीवन-निर्वाह करते हों। (पैरे-साइट)
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पराश्रित  : वि० [सं० पर-आश्रित, ष० त०] १. जो किसी दूसरे के आश्रय में रहता हो। २. जो दूसरे के आसरे पर या भरोसे चलता या रहता हो।
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परास  : पुं० [सं० परा√अस् (फेंकना)+अञ्] १. उतना अवकाश या दूरी जितनी कोई चलाई या फेंकी जानेवाली चीज उड़ते-उड़ते पार करती हो। जैसे—बंदूक की गोली या तीर का परास। २. उतना क्षेत्र जहाँ तक किसी क्रिया का प्रभाव या फल होता हो। ३. उतना प्रदेश जितने में कोई चीज पाई जाती हो। (रेंज)
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परासन  : पुं० [सं० परा√अस्+ल्युट्—अन] १. जान से मारना। २. वध करना।
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परासी  : स्त्री० [सं० परास+ङीष्] पलाश्री नाम की रागिनी।
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परासु  : वि० [सं० परा-असु, ब० स०] [भाव० परासुता] मरा हुआ। मत।
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परास्कंदी (दिन्)  : पुं० [सं० पर-आ√स्कन्द् (गति, शोषण)+णिनि] चोर।
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परास्त  : वि० [सं० परा√अस्+क्त] १. द्वंद्व, प्रतियोगिता आदि में हारा या हराया हुआ। पराजित। २. किसी के सामने झुका या दबा हुआ। ३. ध्वस्त। विनष्ट।
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पराह  : पुं० [सं० पर-अहन्, कर्म० स०, टच्] अन्य या दूसरा दिन।
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पराहत  : वि० [सं० परा-आ√हन् (हिंसा)+क्त] १. जो आघात के द्वारा गिराया या पीछे हटाया गया हो। २. आक्रांत। ३. नष्ट किया या मिटाया हुआ। ध्वस्त। ४. जिसका खंडन हुआ हो। खंडित। ५. जोता हुआ।
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पराहति  : स्त्री० [सं० परा-आ√हन्+क्तिन्] १. खंडन। २. विरोध।
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पराह्न  : पुं० [सं० पराह्ल] दोपहर के बाद का समय। अपराह्न।
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पराहृत  : भू० कृ० [सं० परा-आ√हृ (हरण करना)+क्त] हटाया हुआ।
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