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पलंग  : पुं० [सं० पल्यंक से फा०] [स्त्री० अल्पा० पलंगड़ी] एक तरह की बड़ी तथा मजबूत चारपाई जो प्रायः निवार से बुनी होती है। क्रि० प्र०—बिछाना। मुहा०—(स्त्री० का) पलंग को लात मार खड़ा होना=छठी, बरही आदि के उपरांत सौरी से किसी स्त्री का भली-चंगी बाहर आना। सौरी के दिन पूरे करके बाहर निकलना। (बोल-चाल) (व्यक्ति का) पलंग को लात मारकर खड़ा होना=बहुत बड़ी बीमारी झेलकर अच्छा होना। कड़ी बीमारी से उठना। पलंग तोड़ना=बिना कोई काम किये यों ही पड़े या सोये रहना। निठल्ला रहना। पलंग लगाना=किसी के सोने के लिए पलंग पर बिछौना बिछाना। बिस्तर ठीक करना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलंग-कस  : पुं० [हिं० पलंग+कसना] एक प्रकार की ओषधि जिसे खाने से स्त्रियों की संभोग शक्ति का बढ़ना माना जाता है। (पलंगतोड़ के जोड़पर)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलंगड़ी  : स्त्री० [हिं० पलंग+ड़ी (प्रत्य०)] छोटा पलंग।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलंग-तोड़  : वि० [हिं०] १. वह जो प्रायः पलंग पर पड़े-पड़े समय बिताता हो अर्थात् आलसी और निकम्मा। २. एक प्रकार का औषध जिसे खाने से पुरुष की संभोग शक्ति का बढ़ना माना जाता है। (पलंग-कस के जोड़पर)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलंग-दंत  : पुं० [फा० पलंग=चीता+हिं० दांत] जिसके दांत चीते के दांतों की तरह कुछ कुछ टेढ़े हों।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलंगपोश  : पुं० [हिं० पलंग+का० पोश] पलंग पर बिछाई जानेवाली चादर।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलँगरी  : स्त्री०=पलँगड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलंगिया  : स्त्री० [हिं० पलंग+इया (प्रत्य०)] छोटा पलंग। पलंगड़ी।
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पलंग  : पुं० [सं० पल्यंक से फा०] [स्त्री० अल्पा० पलंगड़ी] एक तरह की बड़ी तथा मजबूत चारपाई जो प्रायः निवार से बुनी होती है। क्रि० प्र०—बिछाना। मुहा०—(स्त्री० का) पलंग को लात मार खड़ा होना=छठी, बरही आदि के उपरांत सौरी से किसी स्त्री का भली-चंगी बाहर आना। सौरी के दिन पूरे करके बाहर निकलना। (बोल-चाल) (व्यक्ति का) पलंग को लात मारकर खड़ा होना=बहुत बड़ी बीमारी झेलकर अच्छा होना। कड़ी बीमारी से उठना। पलंग तोड़ना=बिना कोई काम किये यों ही पड़े या सोये रहना। निठल्ला रहना। पलंग लगाना=किसी के सोने के लिए पलंग पर बिछौना बिछाना। बिस्तर ठीक करना।
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पलंग-कस  : पुं० [हिं० पलंग+कसना] एक प्रकार की ओषधि जिसे खाने से स्त्रियों की संभोग शक्ति का बढ़ना माना जाता है। (पलंगतोड़ के जोड़पर)
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पलंगड़ी  : स्त्री० [हिं० पलंग+ड़ी (प्रत्य०)] छोटा पलंग।
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पलंग-तोड़  : वि० [हिं०] १. वह जो प्रायः पलंग पर पड़े-पड़े समय बिताता हो अर्थात् आलसी और निकम्मा। २. एक प्रकार का औषध जिसे खाने से पुरुष की संभोग शक्ति का बढ़ना माना जाता है। (पलंग-कस के जोड़पर)
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पलंग-दंत  : पुं० [फा० पलंग=चीता+हिं० दांत] जिसके दांत चीते के दांतों की तरह कुछ कुछ टेढ़े हों।
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पलंगपोश  : पुं० [हिं० पलंग+का० पोश] पलंग पर बिछाई जानेवाली चादर।
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पलँगरी  : स्त्री०=पलँगड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पलंगिया  : स्त्री० [हिं० पलंग+इया (प्रत्य०)] छोटा पलंग। पलंगड़ी।
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