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शब्द का अर्थ

पशु  : पुं० [सं०√दृश् (देखना)+कु, पशादेश] [भाव० पशुता, पशुत्व] १. चार पैरों से चलनेवाला कोई दुमदार जंतु। जानवर। जंतु। जैसे—ऊँट, घोड़ा, बैल, हाथी, कुत्ता, बिल्ली, आदि। २. प्राणधारी जीव। जंतु। ३. वह जिसे कुछ भी ज्ञान या बुद्धि न हो, अथवा जिसमें सहृदयता का पूरा अभाव हो। ४. वह जिसका कोई धार्मिक संस्कार न हुआ हो। ५. परमात्मा। ६. ऐसा धार्मिक कृत्य जिसमें जानवर की बलि चढ़ाई जाती हो। ७. वह पशु जिसे बलि चढ़ाते हों। ८. अग्नि। ९. शिव के अनुचर या गण।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पशुकर्म (कर्मन्)  : पुं० [ष० त०] १. यज्ञ आदि में पशुओं का होनेवाला बलिदान। २. मैथुन।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पशुका  : स्त्री० [सं० पशु+कन्+टाप्] कोई छोटा पशु।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पशु-क्रिया  : स्त्री० [ष० त०] =पशुकर्म।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पशु-गायत्री  : स्त्री० [मध्य० स०] तंत्र की रीति से बलिदान करने के समय बलि पशु के कान में कहा जानेवाला एक प्रकार का मंत्र।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पशुचर  : पुं० [सं० पशु√चर्+ट] वह स्थान जो पशुओं के चरने-चराने के लिए सुरक्षित हो। गोचर भूमि। (पास्च्योर)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पशु-चर्या  : स्त्री० [ष० त०] १. पशुओं के समान विवेकहीन आचरण। जानवरों की-सी चाल या व्यवहार। २. मैथुन।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पशु-चिकित्सक  : पुं० [सं०] वह जो रोगी पशु, पक्षियों आदि की चिकित्सा करता हो। (वेटेरिनरी सर्जन)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पशु-चिकित्सा  : स्त्री० [सं०] चिकित्सा शास्त्र की वह शाखा जिसमें पशु-पक्षियों आदि के रोगों के निदान और चिकित्सा का विवेचन होता है। (वेटेरिनरी)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पशुजीवी (विन्)  : वि० [सं० पशु√जीव् (जीना)+णिनि] १. पशुओं का मांस खाकर जीनेवाला। २. वह जो पशुओं का पालन करके उनसे प्राप्त होनेवाली वस्तुओं से अपनी जीविका चलाता हो।
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पशुता  : स्त्री० [सं० पशु+तल्+टाप्] १. पशु होने की अवस्था या भाव। २. पशुओं का-सा व्यवहार या स्वभाव। ३. वह गुण जिसके कारण किसी व्यक्ति की गिनती पशुओं में की जाती हो।
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पशुत्व  : पुं० [सं० पशु+त्वल्] पशुता। (दे०)
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पशुदा  : स्त्री० [सं० पशु√दा (देना)+क+टाप्] कार्तिकेय की अनुचरी एक मातृका देवी।
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पशु-देवता  : स्त्री० [मध्य० स०] वह देवता जिसके उद्देश्य से किसी पशु को बलि चढ़ाया जाय।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पशु-धन  : पुं० [मयू० स०] वे पालतू पशु जो किसी व्यक्ति, समाज या राज्य के आर्थिक उत्पादन, सुरक्षा आदि में योग देते हों। (लिवस्टाक)
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पशु-धर्म  : पुं० [ष० त०] पशुओं का-सा आचरण या व्यवहार अर्थात् मनुष्यों के लिए निंद्य व्यवहार।
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पशु-नाथ  : पुं० [ष० त०] १. शिव। २. सिंह। शेर।
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पशुनिरोधिका  : स्त्री० [ष० त०] वह सरकारी या अर्द्ध सरकारी स्थान जहाँ पर लोगों के खुले या छूटे हुए पालतू पशु पकड़कर ले जाये जाते हैं। कांजीहाउस। (कैटिलपाउंड)
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पशुप  : वि० [सं० पशु√पा (रक्षा करना)+क] पशुओं का पालन करनेवाला या स्वामी।
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पशुपतास्त्र  : पुं० [सं० पाशुपतास्त्र] महादेव का शूलास्त्र।
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पशु-पति  : पुं० [ष० त०] १. पशुओं का स्वामी। २. जीवमात्र का स्वामी अर्थात् ईश्वर या परमात्मा। ३. महादेव। शिव। ४. अग्नि। ५. ओषधि। दवा।
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पशु-पल्लव  : पुं० [ब० स०] कैवर्तमुस्तक। केवटी माथा।
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पशुपाल  : वि० [सं० पशु√पाल (पोषण)+णिच्+अण्] पशुओं को पालनेवाला। पुं० १. अहीर। ग्वाला। २. ईशान कोण का एक प्राचीन देश।
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पशु-पलाक  : वि० [ष० त०] [स्त्री० पशुपालिका] पशुओं को पालनेवाला।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पशु-पालन  : पुं० [ष० त०] जीविका-निर्वाह के लिए पशुओं को पालने की क्रिया या भाव। (एनिमल हस्बैंडरी)
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पशु-पाश  : पुं० [ष० त०] १. वह फंदा या रस्सी जिससे पशु विशेषतः यज्ञ-पशु बाँधा जाता था। २. शैवदर्शन के अनुसार चार प्रकार के वे बंधन जिनसे सब जीव बँधे रहते हैं।
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पशुपाशक  : पुं० [सं० पशुपाश√कै+क] एक प्रकार का रतिबंध। (काम-शास्त्र)
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पशु-भाव  : पुं० [ष० त०] १. पशुता। जानवरपन। २. तंत्र में, मंत्रों आदि के तीन प्रकार के साधन-भेदों में से एक।
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पशु-यज्ञ  : पुं० [मध्य० स०] ऐसा यज्ञ जिसमें पशु या पशुओं को बलि चढ़ाया जाय।
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पशु-याग  : पुं० [मध्य० स०] पशु-यज्ञ। (दे०)
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पशु-रक्षण  : पुं० [ष० त०] पशुपालन। (दे०)
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पशु-रति  : स्त्री० [सं०] १. पशुओं की तरह की जानेवाली वह रति जो विशुद्ध काम-वासना की तृप्ति के लिए की जाती हो। २. पशुवर्ग के किसी प्राणी के साथ मनुष्य द्वारा की जानेवाली रति। जैसे—पुरुष पक्ष में, गौ या बकरी के साथ की जानेवाली रति; अथवा स्त्री पक्ष में, कुत्ते के साथ की जानेवाली रति।
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पशु-राज  : पुं० [ष० त०] पशुओं के स्वामी, सिंह। शेर।
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पशुलंब  : पुं० [सं०] एक देश का प्राचीन नाम।
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पशु-हरीतकी  : स्त्री० [ष० त०] अम्रातक फल। आमड़े का फल।
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पशु  : पुं०=पशु।
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पशु  : पुं० [सं०√दृश् (देखना)+कु, पशादेश] [भाव० पशुता, पशुत्व] १. चार पैरों से चलनेवाला कोई दुमदार जंतु। जानवर। जंतु। जैसे—ऊँट, घोड़ा, बैल, हाथी, कुत्ता, बिल्ली, आदि। २. प्राणधारी जीव। जंतु। ३. वह जिसे कुछ भी ज्ञान या बुद्धि न हो, अथवा जिसमें सहृदयता का पूरा अभाव हो। ४. वह जिसका कोई धार्मिक संस्कार न हुआ हो। ५. परमात्मा। ६. ऐसा धार्मिक कृत्य जिसमें जानवर की बलि चढ़ाई जाती हो। ७. वह पशु जिसे बलि चढ़ाते हों। ८. अग्नि। ९. शिव के अनुचर या गण।
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पशुकर्म (कर्मन्)  : पुं० [ष० त०] १. यज्ञ आदि में पशुओं का होनेवाला बलिदान। २. मैथुन।
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पशुका  : स्त्री० [सं० पशु+कन्+टाप्] कोई छोटा पशु।
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पशु-क्रिया  : स्त्री० [ष० त०] =पशुकर्म।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पशु-गायत्री  : स्त्री० [मध्य० स०] तंत्र की रीति से बलिदान करने के समय बलि पशु के कान में कहा जानेवाला एक प्रकार का मंत्र।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पशुचर  : पुं० [सं० पशु√चर्+ट] वह स्थान जो पशुओं के चरने-चराने के लिए सुरक्षित हो। गोचर भूमि। (पास्च्योर)
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पशु-चर्या  : स्त्री० [ष० त०] १. पशुओं के समान विवेकहीन आचरण। जानवरों की-सी चाल या व्यवहार। २. मैथुन।
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पशु-चिकित्सक  : पुं० [सं०] वह जो रोगी पशु, पक्षियों आदि की चिकित्सा करता हो। (वेटेरिनरी सर्जन)
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पशु-चिकित्सा  : स्त्री० [सं०] चिकित्सा शास्त्र की वह शाखा जिसमें पशु-पक्षियों आदि के रोगों के निदान और चिकित्सा का विवेचन होता है। (वेटेरिनरी)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पशुजीवी (विन्)  : वि० [सं० पशु√जीव् (जीना)+णिनि] १. पशुओं का मांस खाकर जीनेवाला। २. वह जो पशुओं का पालन करके उनसे प्राप्त होनेवाली वस्तुओं से अपनी जीविका चलाता हो।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पशुता  : स्त्री० [सं० पशु+तल्+टाप्] १. पशु होने की अवस्था या भाव। २. पशुओं का-सा व्यवहार या स्वभाव। ३. वह गुण जिसके कारण किसी व्यक्ति की गिनती पशुओं में की जाती हो।
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पशुत्व  : पुं० [सं० पशु+त्वल्] पशुता। (दे०)
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पशुदा  : स्त्री० [सं० पशु√दा (देना)+क+टाप्] कार्तिकेय की अनुचरी एक मातृका देवी।
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पशु-देवता  : स्त्री० [मध्य० स०] वह देवता जिसके उद्देश्य से किसी पशु को बलि चढ़ाया जाय।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पशु-धन  : पुं० [मयू० स०] वे पालतू पशु जो किसी व्यक्ति, समाज या राज्य के आर्थिक उत्पादन, सुरक्षा आदि में योग देते हों। (लिवस्टाक)
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पशु-धर्म  : पुं० [ष० त०] पशुओं का-सा आचरण या व्यवहार अर्थात् मनुष्यों के लिए निंद्य व्यवहार।
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पशु-नाथ  : पुं० [ष० त०] १. शिव। २. सिंह। शेर।
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पशुनिरोधिका  : स्त्री० [ष० त०] वह सरकारी या अर्द्ध सरकारी स्थान जहाँ पर लोगों के खुले या छूटे हुए पालतू पशु पकड़कर ले जाये जाते हैं। कांजीहाउस। (कैटिलपाउंड)
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पशुप  : वि० [सं० पशु√पा (रक्षा करना)+क] पशुओं का पालन करनेवाला या स्वामी।
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पशुपतास्त्र  : पुं० [सं० पाशुपतास्त्र] महादेव का शूलास्त्र।
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पशु-पति  : पुं० [ष० त०] १. पशुओं का स्वामी। २. जीवमात्र का स्वामी अर्थात् ईश्वर या परमात्मा। ३. महादेव। शिव। ४. अग्नि। ५. ओषधि। दवा।
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पशु-पल्लव  : पुं० [ब० स०] कैवर्तमुस्तक। केवटी माथा।
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पशुपाल  : वि० [सं० पशु√पाल (पोषण)+णिच्+अण्] पशुओं को पालनेवाला। पुं० १. अहीर। ग्वाला। २. ईशान कोण का एक प्राचीन देश।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पशु-पलाक  : वि० [ष० त०] [स्त्री० पशुपालिका] पशुओं को पालनेवाला।
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पशु-पालन  : पुं० [ष० त०] जीविका-निर्वाह के लिए पशुओं को पालने की क्रिया या भाव। (एनिमल हस्बैंडरी)
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पशु-पाश  : पुं० [ष० त०] १. वह फंदा या रस्सी जिससे पशु विशेषतः यज्ञ-पशु बाँधा जाता था। २. शैवदर्शन के अनुसार चार प्रकार के वे बंधन जिनसे सब जीव बँधे रहते हैं।
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पशुपाशक  : पुं० [सं० पशुपाश√कै+क] एक प्रकार का रतिबंध। (काम-शास्त्र)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पशु-भाव  : पुं० [ष० त०] १. पशुता। जानवरपन। २. तंत्र में, मंत्रों आदि के तीन प्रकार के साधन-भेदों में से एक।
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पशु-यज्ञ  : पुं० [मध्य० स०] ऐसा यज्ञ जिसमें पशु या पशुओं को बलि चढ़ाया जाय।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पशु-याग  : पुं० [मध्य० स०] पशु-यज्ञ। (दे०)
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पशु-रक्षण  : पुं० [ष० त०] पशुपालन। (दे०)
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पशु-रति  : स्त्री० [सं०] १. पशुओं की तरह की जानेवाली वह रति जो विशुद्ध काम-वासना की तृप्ति के लिए की जाती हो। २. पशुवर्ग के किसी प्राणी के साथ मनुष्य द्वारा की जानेवाली रति। जैसे—पुरुष पक्ष में, गौ या बकरी के साथ की जानेवाली रति; अथवा स्त्री पक्ष में, कुत्ते के साथ की जानेवाली रति।
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पशु-राज  : पुं० [ष० त०] पशुओं के स्वामी, सिंह। शेर।
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पशुलंब  : पुं० [सं०] एक देश का प्राचीन नाम।
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पशु-हरीतकी  : स्त्री० [ष० त०] अम्रातक फल। आमड़े का फल।
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पशु  : पुं०=पशु।
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