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प्रकृति-वाद  : पुं० [ष० त०] १. यह मत या सिद्धान्त कि मनुष्य के सभी आचरण, कार्य, विचार आदि प्रकृति अर्थात् निसर्ग से उत्पन्न होनेवाली कामनाओं तथा प्रवृत्तियों पर आश्रित होते हैं। २. दार्शनिक क्षेत्र की मुख्य दो धाराएँ (क) यह मत या सिद्धान्त कि सारी सृष्टि प्रकृति से ही उत्पन्न है और इसके मूल में कोई अलौकिक तत्व या दैवी शक्ति काम नहीं करती। (ख) यह मत या सिद्धान्त कि मनुष्यों में धर्म तत्व का आविर्भाव किसी अलौकिक या दैवी शक्ति की प्रेरणा से नहीं हुआ है, बल्कि मनुष्यों ने धर्म-संबंधी सभी भावनाएँ और विचार प्राकृतिक जगत् से ही प्राप्त किये हैं। ३. कला और साहित्य के क्षेत्र में यह मत या सिद्धान्त कि संसार में प्राकृतिक तथा वास्तविक रूप में जो कुछ होता हुआ दिखाई देता है, उसका अंकन या चित्रण ज्यों का त्यों और ठीक उसी रूप में होना चाहिए और जिसमें नैतिक आदर्शों या भावनाओं का अतिरिक्त आरोप या मिश्रण नहीं किया जाना चाहिए। (नैचुरलिज़्म, उक्त सभी अर्थों में) विशेष—वस्तुतः उक्त अंतिम मत यथार्थवाद का वह आगे बढ़ा हुआ रूप है जिससे अशिष्ट अश्लील, कुरुचिपूर्ण और हेय पक्षों का भी अंकन या चित्रण होने लगा है। इसका आरम्भ युरोप १९ वीं शती में हुआ था।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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