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प्रण  : वि० [सं० पुराण+न, प्र—आदेश] पुराना। प्राचीन। पुं० [सं० पण] कोई काम विशेषतः कोई कठिन और वीरतापूर्ण काम करने का अटल या दृढ़ निश्चय। दृढ़ प्रतिज्ञा।
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प्रणख  : पुं० [सं० प्र-नख, प्रा० स०, णत्व] नाखून का अगला नुकीला भाग।
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प्रणत  : वि० [सं० प्र√नम् (झुकना)+क्त] १. बहुत झुका हुआ। २. जो झुककर किसी को प्रणाम कर रहा हो। ३. नम्र। विनीत। दीन। पुं० १. दास। २. नौकर। सेवक। ३. उपासक या भक्त।
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प्रणतपाल  : वि० [ष० त०]=प्रणतपालक।
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प्रणतपालक  : वि० [सं० प्रणत√पाल् (पालना) +णिच्+ अच्] [स्त्री० प्रणतिपालिका] शरण में आये हुए दीन-दुखियों की रक्षा करनेवाला।
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प्रणति  : स्त्री० [सं० प्र√नम् (झुकना)+क्तिन्] १. झुकने की क्रिया या भाव। २. प्रणाम। प्रणिपात। दंडवत्। ३. नम्रता। ४. विनती।
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प्रणवन  : पुं० [सं० प्र√नद् (शब्द करना)+ल्युट्—अन] जोर से नाद या आवाज करना। गरजना या चिल्लाना।
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प्रणपति  : स्त्री० [सं० प्रणिपत्] १. प्रणति। २. प्रणाम। उदा०—करि प्रणपति लागी कहण।—प्रिथीराज।
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प्रणमन  : पुं० [सं० प्र√नम्+ल्युट्—अन] १. झुकना। २. प्रणाम करना।
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प्रणम्य  : वि० [सं० प्र√नम्+यत्] १. जिसके आगे झुकना उचित हो। २. जिसके सामने झुककर प्रणाम करना उचित हो। पूज्य और वन्दनीय।
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प्रणय  : पुं० [सं० प्र√नी (पहुँचना)+अच्] १. प्रेमपूर्वक की जानेवाली प्रार्थना। २. प्रेम विशेषतः ऐसा श्रृंगारिक प्रेम जो साधारण अनुराग या स्नेह से बहुत आगे बढ़ा हुआ होता है। ३. भरोसा। विश्वास। ४. मोक्ष। निर्वाण। ५. श्रद्धा। ६. प्रसव।
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प्रणय-कोप  : पुं० [सं० सुप्सुपा स०] परेमियों का एक दूसरे पर बिगड़ना या रोष प्रकट करना।
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प्रणयन  : पुं० [सं० प्र√नी+ल्युट्—अन] १. कोई चीज कहीं से ले आना या ले जाकर कहीं पहुँचाना। २. कोई काम पूरा करना। ३. कोई नई चीज बनाकर तैयार करना। रचना। ४. साहित्यिक काव्य, सामने लाना। ६. होम आदि के समय किया जानेवाला अग्नि का एक संस्कार।
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प्रणयमान  : पुं० [सं० सुप्सुपा स०] प्रेम में किया जानेवाला मान। रूठना।
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प्रणयिता  : स्त्री० [सं० प्रणयिता+तल्,+टाप्] प्रणय-युक्त होने की अवस्था या भाव। अनुरक्ति।
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प्रणयिनी  : स्त्री० [सं० प्रणयिन्+ङीप्] पुरुष की दृष्टि से वह स्त्री जिससे वह प्रणय या बहुत अधिक प्रेम करता हो।
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प्रणयी (यिन्)  : पुं० [सं० प्रणय+इनि] [स्त्री० प्रणयिनी] वह पुरुष जो किसी स्त्री से प्रेम करता हो। स्त्री का प्रेमी।
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प्रणव  : पुं० [सं० प्र√नु (स्तुति)+अप्] १. ॐकार। ब्रह्मा बीज। ओंकार मंत्र। २. (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) त्रिदेव। ३. परमेश्वर।
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प्रणवना  : स० [सं० प्रणमन] १. प्रणाम करना। नमस्कार करना। २. प्रणाम करने के उद्देश्य से किसी के आगे झुकना। ३. किसी के आगे झुकना। हार मानना।
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प्रणस  : पुं० [सं० प्र-नासिका, ब० स०, नस—आदेश] वह व्यक्ति जिसकी नाक बड़ी और मोटी हो। (ऐसा व्यक्ति भाग्यवान् समझा जाता है।)
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प्रणाद  : पुं० [सं० प्र√नद् (शब्द करना)+घञ्] १. बहुत जोर से होनेवाला शब्द। २. आनन्द या प्रसन्नता के समय मुँह से निकलने वाला शब्द। ३. झंकार। जैसे—आभूषणों या नूपुरों का प्रणाद। ४. घोड़ों के हिनहिनाने का शब्द। ५. कर्ण-नाद नाम का रोग जिसमें कानों में गूँज या साँयँ साँयँ सुनाई पड़ती है।
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प्रणाम  : पुं० [सं० प्र√नम् (झुकना)+घञ्] बड़ों के आगे नत मस्तक होकर उनका अभिवादन करने का एक ढंग या प्रकार।
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प्रणामांजलि  : स्त्री० [सं० प्रणाम-अंजलि, च० त०] हाथ जोड़कर किया जानेवाला प्रणाम। करबद्ध प्रणाम।
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प्रणामी (मिन्)  : पुं० [सं० प्रणाम+इनि] प्रणाम करनेवाला। स्त्री० [सं० प्रणाम] वह दक्षिणा या धन जो बड़ों को प्रणाम करते समय उनके चरणों पर आदरपूर्वक रखा जाता है।
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प्रणायक  : पुं० [सं० प्र√नी+ण्वुल्—अक] १. वह जो मार्ग दिखलाता हो। पथप्रदर्शक। २. नेता। ३. सेनापति।
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प्रणाल  : पुं० [सं० प्र√नल् (बाँधना)+घञ्] १. बड़ा जल-मार्ग। २. पनाला।
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प्रणालिका  : पुं० [सं० प्रणाली+कन्,+टाप्, ह्वस्व] १. परनाली। नाली। २. बंदूक की नली।
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प्रणाली  : स्त्री० [सं० प्रणाल+ङीष्] १. वह मार्ग जिसमें से होकर जल बहता हो। २. विशेषतः ऐसा जल-मार्ग जो दो जल-राशियों को मिलाता हो। ३. कोई काम करने का उचित, उपयुक्त, नियता या विधि विहित ढंग, प्रकार या साधन। (चैनल, उक्त सभी अर्थों में) ४. वह सारी व्यवस्था और उसके सब अंग जिनसे कोई निश्चित या विशिष्ट कार्य होता हो। तरीका। ५. द्वार। ६. परम्परा।
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प्रणाश  : पुं० [सं० प्र√नश्+घञ्] १. पूर्णरूप से होनेवाला विनाश। २. मृत्यु। ३. पलायन। भागना।
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प्रणाशी (शिन्)  : वि० [सं० प्र√नश्+णिच्+णिनि] [स्त्री० प्रणाशिनी] नाश करनेवाला।
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प्रणिधान  : पुं० [सं० प्र-नि√धा (धारण करना)+ल्युट्—अन्] १. देखा जाना। २. प्रयत्न। ३. योग-साधन में, समाधि। ४. पूरी भक्ति और श्रद्धा से की जानेवाली उपासना। ५. मन को एकाग्र करके लगाया जानेवाला ध्यान। ६. किये जानेवाले कर्म के फल का त्याग। ७. अर्पण। ८. भक्ति। ९. किसी बात या विषय में होनेवाली गति, पहुँच या प्रवेश। १॰. भावी-जन्म के संबंध में की जानेवाली कोई प्रार्थना।
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प्रणिधि  : पुं० [सं० प्र-नि√धा+कि] दूत या भेदिया जो किसी विशेष कार्य के लिए कहीं भेजा गया हो। स्त्री० १. प्रार्थना। २. मन की एकाग्रता। ३. तत्परता।
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प्रणिधेय  : पुं० [सं० प्र-नि√धा+यत्] १. गुप्तचर भेजना। २. नियुक्ति। ३. प्रयोग।
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प्रणिनाद  : पुं०=प्रणाद।
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प्रणिपात  : पुं० [सं० प्र-नि√धा (रखना)+क्त, हि-आदेश] १. जिसकी स्थापना की गई हो। स्थापित। २. मिला या मिलाया हुआ। मिश्रित। ३. पाया हुआ। प्राप्त। ४. किसी के पास रखा या किसी को सौंपा हुआ। ५. जिसका ध्यान किसी चीज या बात पर एकाग्रतापूर्वक लगा हो।
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प्रणी  : पुं० [सं० प्र√नी+क्विप्] ईश्वर। वि० [सं० प्रण] प्रण या दृढ़ प्रतिज्ञा करनेवाला।
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प्रणीत  : भू० कृ० [सं० प्र√नी+क्त] १. जिसका प्रणयन किया गया हो। बना या तैयार किया हुआ हो। निर्मित। रचित। २. जिसका संशोधन या संस्कार हुआ हो। संस्कृत। ३. भेजा हुआ। ४. लाया हुआ। पुं० १. वह जल जिसका मंत्र से संस्कार किया गया हो। २. यज्ञ के लिए मंत्रों द्वारा संस्कृत की हुई अग्नि। ३. अच्छी तरह पकाया हुआ भोजन।
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प्रणीता  : स्त्री० [सं० प्रणीत+टाप्] १. वह जल जो यज्ञ के कार्य के लिए वेद मंत्र पढ़ते हुए कुएँ से निकाला और छानकर रखा जाता है। २. वह पात्र जिसमें उक्त जल रखा जाता है।
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प्रणीय  : वि० [सं० प्र√नी+क्यप्] १. ले जाने योग्य। २. जिसका संस्कार होने को हो।
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प्रणेता (तृ)  : वि० [सं० प्र√नी+तृच्] १. ले जानेवाला। २. प्रणयन करने अर्थात् निर्मित करने या बनानेवाला। जैसे—ग्रन्थ का प्रणेता।
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प्रणेय  : वि० [सं० प्र√नी+यत्] १. ले जाने योग्य। २. अधीन। वशवर्ती। ३. जिसका संस्कार किया जाने को हो या होने को हो।
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प्रणोदन  : पुं० [सं० प्र√नुद्+ल्युट्—अन] [भू० कृ० प्रणोदित] १. किसी को कहीं भेजाना। प्रेषण। २. प्रेरित करना।
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