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प्रतीक  : वि० [सं० प्रति+कन्, नि० दीर्घ] १. जो किसी ओर अग्रसर या प्रवृत्त किया गया हो। किसी तरफ बढ़ाया हुआ। २. उलटा या विपरीत रूप में लाया हुआ। ३. जो अनुकूल न हो। प्रतिकूल। विरुद्ध। ४. जो उलटे क्रम से चल रहा हो। प्रतिलोम। विलोम। पुं० १. अंग। अवयव। २. अंश। भाग। ३. मुख। मुँह। ४. आगे या सामने का भाग। सामना। ५. आकृति। रूप। सूरत। ६. किसी वस्तु के अनुरूप बनाई हुई वैसी ही दूसरी वस्तु। प्रतिरूप। प्रतिमा। मूर्ति ८. वह गोचर या वस्तु के ठीक या बहुत-कुछ अनुरूप होने के कारण उसके गुण-रूप का परिचय कराने के लिए उसका प्रतिनिधित्व करती हो। (सिम्बल) जैसे—देव मूर्ति ईश्वर का प्रतीक है। ९. साहित्य में वह बात या वस्तु जो अपने आकस्मिक सादृश्य, अभिसमय अथवा तर्क-संगत संबंध के आधार पर किसी दूसरी बात या वस्तु या स्थान ग्रहण करती हो। (सिम्बल) १॰. कविता या उसके किसी चरण अथवा किसी वाक्य का वह पहला शब्द जिसका उपयोग किसी को उस कविता, चरण या वाक्य का स्मरण कराने के लिए किया जाता है। ११. वसु के पुत्र और ओघवान् के पिता का नाम। १२. मरु के पुत्र का नाम। १३. परवल।
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प्रतीक-कथा  : स्त्री० [सं०] कथा का वह प्रकार या भेद जिसमें गुण, प्रवत्ति, भाव आदि अमूर्त तत्वों की पात्र मानकर और उन्हें शरीरधारी मानव का रूप देकर उनसे आचरण या व्यवहार कराये जाते हैं। (एलिमोरी) जैसे ‘प्रसाद’ कृत ‘कामना’ और ‘एक घूँट’।
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प्रतीक-भाषा  : स्त्री० [सं० ष० त०] ऐसी भाषा जिसमें कुछ शब्द दूसरी संज्ञाओं के प्रतीक रूप में (उनके स्थान पर) प्रयुक्त होते हैं। जैस—हठ-योग की प्रतीक भाषा में ‘सखी’ का अर्थ ‘सुरति’ होता है।
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प्रतीक-वाद  : पुं० [सं० ष० त०] आज-कल कला और साहित्य के क्षेत्र में अभिव्यंजना की वह विशिष्ट प्रणाली अथवा उस प्रणाली से संबंध रखने-वाला मूल तथा स्थूल सिद्धान्त जिसके अनुसार प्रतीकों के आधार पर भावों, वस्तुओं, विषयों आदि को बोध कराया जाता है। (सिम्बलिज्म़)
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प्रतीक-वादी (दिन्)  : वि० [सं० प्रतीक-वाद+इनि] प्रतीक-वाद सम्बन्धी। प्रतीक-वाद का। पुं० प्रतीकवाद का अनुयायी, पोषक या समर्थक।
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प्रतीकात्मक  : वि० [सं० प्रतीक-आत्मन् ब० स०, कप्] १. जो प्रतीक या प्रतीकों से संबद्ध हो। २. (साहित्यिक रचना) जिसमें प्रतीकों की सहायता से भावों, वस्तुओं, विषयों आदि का बोध कराया गया हो।
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प्रतीकानुक्रमणिका  : स्त्री० [सं० प्रतीक-अनुक्रमणिका, ष० त०] किसी व्यक्ति, ग्रन्थ या काव्य-संग्रह में आये हुए छन्दों या पद्यों के प्रतीकों की अक्षर-क्रम से लगी हुई सूची।
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प्रतीकार  : पुं० [सं० प्रति √कृ+घञ्, दीर्घ] बदला। प्रतिकार।
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प्रतीकार्य  : वि० [सं० प्रति√कृ+ण्यत्, दीर्घ] जिसका प्रतिकार हो सकता हो या किया जाने को हो।
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प्रतीकोपासना  : स्त्री० [सं० प्रतीक-उपासना, ष० त०] प्रतीकों के आधार पर ईश्वर या ब्रह्मा की की जानेवाली उपासना।
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प्रतीक्षक  : वि० [सं० प्रति√ईक्ष् (देखना)+ण्वुल—अक] १. प्रतीक्षा करने या आसरा देखने वाला। किसी का रास्ता देखने या बाट जोहनेवाला। २. पूजा करनेवाला। पूजक।
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प्रतीक्षण  : पुं० [सं०] [भू० कृ० प्रतीक्षित] प्रतीक्षा करने की क्रिया या भाव। बाट जोहना। आसरा देखना।
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प्रतीक्षा  : स्त्री० [सं० प्रति√ईक्ष्+अ+टाप्] १. वह स्थिति जिसमें कोई उत्सुकतापूर्वक किसी आनेवाले व्यक्ति या वस्तु की बाट जोहता या रास्ता देख रहा होता है। इंतजार। इंतजारी। जैसे—वे डाकिये की प्रतीक्षा में हैं। २. किसी का भरण-पोषण करना। ३. पूजा।
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प्रतीक्षागृह  : पुं०=प्रतीक्षालय।
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प्रतीक्षालय  : पुं० [सं० प्रतीक्षा+आलय, ष० त०] १. वह स्थान जहाँ पर यात्री लोग देर से आनेवाले यानों की प्रतीक्षा में ठहरते या रुकते हैं। २. किसी अधिकारी, बड़े आदमी आदि से मिलनेवालों के लिए बैठकर, प्रतीक्षा करने का कमरा या घर। (वेटिंग रूम)
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प्रतीक्षित  : भू० कृ० [सं० प्रति√ईक्ष्+क्त] १. जिसकी प्रतीक्षा की गई हो अथवा की जा रही हो। २. जिसका यथेष्ठ ध्यान रखा गया हो। ३. पूजित।
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प्रतीक्षी (क्षिन्)  : वि० [सं० प्रति√ईक्ष्+णिनि]=प्रतीक्षक।
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प्रतीक्ष्य  : वि० [सं० प्रति √ईक्ष्+ण्यत्] जिसकी प्रतीक्षा की जाय या की जा सके।
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