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फटकना  : अ० [अनु० फट] १. फट-फट शब्द करना। २. कपड़े को इस प्रकार झटके से झाड़ना कि उसमें लगी हुई धूल तथा पड़ी हुई सिलवटें निकल जायँ। ३. पटकना। ४. अस्त्र आदि चलाना या फेंकना। ५. सूप में अनाज रखकर उसे इस प्रकार बार-बार उछालना कि उसमें मिला हुआ कूड़ा-करकट छँटकर अलग हो जाय। मुहावरा—फटकना-पछोड़ना=(क) सूप या छाज पर रखा हुआ अन्न हिलाकर साफ करना। (ख) अच्छी तरह देख-भालकर पता लगाना कि कहीं कोई त्रुटि या दोष तो नहीं है। ६. रूई आदि फटके या धुनकी से धुनना। अ० १. किसी का इस प्रकार कहीं जा या पहुँचकर उपस्थित होना कि लोग उसकी उपस्थिति का अनुभव करने लगें। विशेष—इस अर्थ में इसका प्रयोग अधिकतर नहिक रूप में होता है। जैसे—वहाँ कोई फटक नहीं सकता (या फटकने नहीं पाता)। पर कुछ उर्दू कवियों ने इसका प्रयोग सहिक रूप में भी किया है। जैसे—अक्सर औकात आ फटकते हैं। २.अलग या दूर होना। न रह जाना। ३. विवशता की दशा में हाथ-पैर पटकना। फटफटाना। ४. कुछ करने के लिए हाथ-पैर हिलाना। प्रयत्नशील होना। पुं० गुलेल का फीता जिसमे गुल्ला रखकर फेंकते हैं।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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