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बाँग  : स्त्री० [फा०] १. ध्वनि। स्वर। २. नमाज के समय नमाज पढ़नेवालों को मसजिद में आकर नामज पढ़ने के लिए बुलाने के निमित्त मुल्ला द्वारा की जानेवाली उच्च स्वर में पुकार। ३. भोर केसमय मुर्गे के बोलने के स्वर।
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बाँगड़  : पुं० [देश] करनाल, रोहतक, हिसार आदि के आस-पास का प्रदेश। हरियाना। स्त्री० उक्त प्रदेश की बोली जो खड़ीबोली या पश्चिमी हिन्दी की एक शाखा है। हरियानी। वि०=बाँगड़।
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बाँगड़ी  : वि० [हिं० बाँगड़] बाँगड़ या हरियाना प्रदेश का। स्त्री०=बाँगड़ (बोली)
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बाँगड़ू  : वि० [हिं० बाँगड़] असभ्य, उजड्ड और पूरा गँवार।
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बाँगदरा  : स्त्री० [फा० बाँग] १. घंटे या घड़ियाल की ध्वनि। २. काफिले में प्रस्तान के समय बजनेवाले घण्टों की ध्वनि या आवाज।
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बाँगर  : पुं० [देश] १. छकड़ा गाड़ी का वह बाँस जो फड़ के ऊपर लगाकर फड़ के सात बाँध दिया जाता है। २. ऐसी ऊँची जमीन जिस पर आस-पास के जलाशय की बाढ़ का पानी न पहुँचता हो। ‘खादर’ का विपर्याय। ३. वह भूमि जो पशुओं के चरने के लिए छोड़ दी गयी हो, अथवा जिसमें पशु चरते हों। चरागाह। चरी। (मेडो) ४. अवध प्रांत में होनेवाला एक प्रकार का बैल।
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बाँगा  : पुं० [देश] ऐसी रूई जिसमें से बिनौले अभी तक न निकाले गये हो। कपास।
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बाँगुर  : पुं० [सं० बागुरा] १. पशुओं या पक्षियों को फँसाने का जाल। फँदा। २. फँसने या फँसाने का कोई स्थान। उदाहरण—तुलसीदास यह विपत्ति बाँगुरी तुमहिं सौ बनै निबेरे।—तुलसी।
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