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बाँधनू  : पुं० [बाँधना] १. वह उपाय या उक्ति जो किसी कार्य को आरम्भ करने से पहले सोची या सोचकर स्थिर की जाती है। पहले से ठीक की हुई तस्वीर या स्थिर किया हुआ विचार। उपक्रम। मंसूबा। २. किसी सम्भावित बात के सम्बन्ध में पहले से किया जानेवाला सोच-विचार। क्रि० प्र०—बाँधना। ३. किसी पर लगाया जानेवाला झूठा अभियोग। ४. मनगढंत बात। ५. रँगने से पहले कपड़े में बेलबूटे या बुंदकियाँ रखने के लिए उसे जगह-जगह डोरी, गोटे या सूत से बाँधने की क्रिया या प्रणाली। पद—बाँधनू की रँगाई=कपड़े रंगने का वह प्रकार, जिसमें चुनरी, साड़ी आदि रँगने से पहले बुंदकियाँ डालने या कलात्मक आकृतियाँ बनाने के लिए उन्हें जगह-जगह सूतों से बाँधा जाता है। (टाई एण्ड डाई) ३. उक्त प्रकार से रँगी हुई चुनरी या साड़ी या और कोई ऐसा वस्त्र जो इस प्रकार बाँध कर रँगा गया हो उदाहरण—कहै पद्याकर त्यौ बाँधनू बसनवारी ब्रज वसनहारी ह्यौ हरनवारी है।—पद्याकर।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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