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बाजा  : पुं० [सं० वाद्य] १. संगीत में, वह उपकरण जो फूँके अथवा आघात किये जाने पर बजता है तथा जिसमे से अनेक प्रकार के स्वर आदि निकलते हैं। क्रि० प्र०—बजना।—बजाना। पद—बाजा-गाजा (दे०)। २. बच्चों के बजाने का कोई खिलौना। वि० [अ० बअज] कोई-कोई। कुछ जैसे—बाजे आदमी किसी की पुकार पर जरा भी ध्यान नहीं देते।
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बाजा-गाजा  : पुं० [हिं० बाजा+गाजना=गरजना] तरह-तरह के बाजे और उसके साथ होनेवाली धूम-धाम या हो-हल्ला। जैसे—बाजे-गाजे से बरात निकलना।
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बाजार  : पुं० [फा० बाजार] [वि, ० बाजारी, बाजारू] १. वह स्थान जहाँ किसी एक चीज अथवा अनेक चीजों के विक्रय के लिए पास-पास अनेक दूकानें हों। मुहावरा—बाजार करना=चीजें खरीदने के लिए बाजार जाना और चीजें खरीदना। बाजार गरम होना= बाजार में चीजों या ग्राहकों आदि की अधिकता होना। खूब लेने-देन या खीरद-बिक्री होना। (किसी काम या बात का) बाजार गरम होना=किसी काम या बात की बहुत अधिकता या बाहुल्य होना। जैसे—आज-कल चोरियों (या जुए) का बाजार गरम है। बाजार लगना=(क)बहुत सी चीजों का इधर-उधर ढेर लगना। बहुत सी चीजों का यों ही सामने रखा होना। (ख) बहुत भीड़-भाड़ इकट्ठी होना और वैसा ही हो हल्ला होना जैसे बाजारों में होता है। बाजार लगाना=(क) चीजें इधर-उधर फैला देना। (ख) अटाला या ढेर लगाना। (ग) भीड़-भाड़ लगाना और वैसा ही हो-हल्ला करना जैसा बाजारों में होता है। २. वह स्थान जहाँ किसी निश्चित समय, बार तिथि या अवसर आदि पर सब तरह की चीजों की दुकानें लगती हों। हाट। पैठ। मुहावरा—बाजार लगना=बाजार में सब तरह की दुकानें आकर खुलना या लगना। बाजार लगाना=ऐसी व्यवस्था करना कि किसी स्थान पर आकर सब तरह की दुकानें लगें। जैसे—राजा साहब हर मंगलवार को अपने किले के सामने बाजार लगवाते थे।३. किसी चीज की बिक्री की वह दर या भाव जिस पर वह साधारणतः सब जगह बाजारों में बिकती या मिलती हो।क्रि० प्र०—उतरना।—चढ़ना।—बढ़ना। पद—बाजार-भाव=किसी चीज का वह भाव या मूल्य जिस पर नह साधारणतः सब जगह बाजारों में मिलती हैं।मुहावरा—(किसी का) बाजार के भाव पिटना=बहुत बुरी तरह से मारा-पीटा जाना। (व्यंग्य) बाजार तेज होना=चीजों की माँग की अधिकता के कारण उनका मूल्य बढ़ना। बाजार मंदा होना=चीजों की माँग कम होने के कारण चीजों का भाव या मूल्य घटना। ४. व्यापारिक क्षेत्रों में व्यापारियों आदि का वह प्रत्यय या साख जिसके आधार पर उन्हें बाजार से चीजें और रुपए उधार मिलते हैं। जैसे—व्यापारियों को अपना व्यापार चलाने के लिए अपना बाजार बनाये रखना पड़ता है।
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बाजारी  : वि० [हिं० बाजार] १. बाजार-संबंधी। बाजार का। २. जो बहुत अच्छा या बढ़िया न हो। बाजारू। साधारण। ३. बाजार मे होनेवाला। बाजार में प्रचलित। जैसे—बाजारी बोल-चाल। ४. बाजार में रहने या बैठनेवाला। जैसे—बाजारी औरत। ५. दे० ‘बाजारू’।
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बाजारू  : वि० [फा० बाजार] १. बाजार का। बाजारी। (देखें) २. (शब्द या प्रयोग) जिसका प्रयत्न बाजार के साधारण लोगों में ही हो, शिक्षित या शिष्ट समाज मे न होता हो।
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