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बिसंच  : पुं० [सं० वि-संचय] १. संचय का अभाव। वस्तुओं की संभाल न रखना। २. उपेक्षा। लापरवाही। ३. कार्य में होनेवाली बाधा या हानि। ४. अमांगलिक या अशुभ बात की आशंका।
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बिसँभर  : वि० [सं० वि०+हिं० सँभार] १. जो ठीक स्थिति में रह या संभल न सके। २. (व्यक्ति) जो अपने आप को सँभाल न सके। असावधान। ३. गाफिल। बेहोश। उदाहरण—राधौ मारा बीजुरी। बिसंभर कछु नसंभार।—जायसी।
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बिसँभर  : पुं०=विश्वम्भर। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बिसँभार  : वि० [सं० वि+हिं० सँभार] जिसे तन-बदन की खबर न हो। गाफिल।
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बिस  : पुं० [सं० विष] जहर। विष। पद—बिस की गाँठ=ऐसा पदार्थ या व्यक्ति जिससे सदा बहुत बड़ा अपकार, अहित या हानि ही होती हो। बहुत अधिक अनर्थों, दोषों आदि का मूल।
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बिसकरमा  : पुं०=विश्वकर्मा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बिसकुसुम  : पुं० [मध्य० स०] पद्य पुष्प।
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बिस-खपरा  : पुं० [सं० विष+खर्पर] १. गोह की जाति का एक विषैला सरीसृप जंतु। २. एक प्रकार की जड़ी या बूटी जिसकी पत्तियाँ वनगोभी की सी पर कुछ अधिक हरी और लंबी होती है। ३. गदहपूरना। पुनर्नवा।
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बिसखापर  : पुं०=बिसखपरा।
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बिसखोपड़ा  : पुं०=बिस-खपरा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बिसटी  : स्त्री० [देश] बेगार (डिं०)
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बिसतरना  : स० [सं० विस्तरण] विस्तार करना। बढ़ाना। फैलाना। अ०=विस्तृत होना।
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बिसतार  : पुं०=विस्तार। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बिसथार  : पुं०=विस्तार। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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बिसद  : पुं०=विशद। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बिसन  : पुं०=व्यसन। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बिसनी  : वि० [सं० व्यसनी] १. जिसे किसी बात का व्यसन हो। किसी काम या बात का शौकीन। पुं० १. छैला। २. दुर्व्यसनी। ३. वेश्यागामी। रंडीबाज।
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बिसनमउ  : वि० [सं० विस्मय] १. आश्चर्य। ताज्जुब। २. दुःख। रंज। हरष समय बिसमउ कत कीजै।—तुलसी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बिसमरना  : स० [सं० विस्मरण] विस्मृत करना। भूल जाना।
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बिसमय  : पुं०=विस्मय। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बिसमाद  : पुं०=विषाद। उदाहरण—तहँ विसमाद बीच मुख सोहै।—नूर मुहम्मद। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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बिसमिल  : वि०=बिस्मिल।
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बिसमिल्ला (हृ)  : अव्य०=विस्मिल्लाह।
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बिसयक  : पुं० [सं० विषय] १. देष। प्रदेश। २. छोटा राज्य। रियासत्त।
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बिसरना  : अ० [सं० विस्मरण, प्रा० बिम्हरण, बिस्म] विस्मृत होना। भूलना। स० विस्तृत करना। भुला देना।
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बिसरात  : पुं० [सं० वेशर] खच्चर।
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बिसराना  : स० [हिं० बिसरना] विस्मृत करना। भुला देना।
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बिसराम  : वि०=विश्राम।
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बिसरामी  : वि० [सं० विश्राम] १. विश्राम करने या देनेवाला। २. सुखद। ३. किसी के साथ रहकर सुख भोगनेवाला।
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बिसरावना  : स०=बिसराना।
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बिसवा  : पुं०=विस्वा। स्त्री०=वेश्या। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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बिसवार  : पुं० [सं० विषय=वस्तु+हिं० वार (प्रत्यय)] वह पेटी जिसमें नाई हजामत का सामान रखते हैं। किसबत।
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बिसवास  : पुं०=विश्वास। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बिसवासी  : वि० [सं० विश्वासिन्] [स्त्री० विश्वासिनी] १. जो विश्वास करे। २. जिस पर विश्वास हो। विश्वसनीय। वि० [सं० अविश्वासिन्] १. जिस पर विश्वास न हो। २. विश्वासघाती। उदाहरण—पै यह पेट भएउ बिसवासी।—जायसी।
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बिससना  : स० [सं० विश्वसन] विश्वास करना। स० [सं० विशसन] १. मार डालना। वध करना। खत्म करना। २. शरीर के अंग काटना। ३. काटकर टुकड़े-टुकड़े करना।
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बिसहना  : स०=बिसाहना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बिसहर  : पुं०=विषधऱ (साँप)। वि०=विषाक्त (जहरीला)।
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बिसहरू  : पुं० [हिं० बिसहना+रू (प्रत्यय)] मोल लेनेवाला। खरीददार। ग्राहक। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बिसहिनी  : स्त्री० [?] एक प्रकार की चिड़िया।
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बिसा  : पुं०=बिस्वा। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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बिसाख  : पुं०=वैशाख। स्त्री०=विशाखा (नक्षत्र)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बिसात  : स्त्री० [अ०] १. वह कपड़ा या चटाई जिस पर छोटे दूकान दार बिक्री की चीजें फैलाकर रखते हैं। २. वह कपड़ा, कागज आदि जिस पर चौपट, शतरंज आदि खेलने और गोटियों, मोहरें आदि रखने के लिए खाने बने होते हैं। ३. धन-संपत्ति आदि के विचार से होनेवाला सामर्थ्य। औकात। बिना। हैसियत। ४. पास में होनेवाला धन। जमा पूँजी। ५. शारीरिक शक्ति, योग्यता आदि के विचार से होनेवाला सामर्थ्य। ६. कुछ ग्रहण या धारण करने के विचार से होनेवाला सामर्थ्य। समाई।
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बिसात-खाना  : पुं० [अ० बिसातखानाः] १. बिसाती की दुकान। २. बिसाती की दुकान पर बिकनेवाला सामानों का समूह।
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बिसातबाना  : पुं० [हिं० ] वे सब सामान जो बिसातियों की दूकानों पर मिलते हैं।
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बिसाती  : पुं० [अ०] १. वह जो बिसात पर सामान फैलाकर बेचता हो। २. सूई, तागा, बटन, साबुन, तेल आदि फुटकर सामान बेचने वाला दूकानदार।
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बिसाना  : अ० [सं० वश] वश चलना। काबू या जोर चलना। अ० [सं० विष=बिस+ना (प्रत्यय)] विष का प्रभाव करना। जहर का असर करना। जहरीला होना। स० विष से युक्त या जहरीला करना। स०=बिसाहना (मोल लेना)।
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बिसायँध  : वि० [सं० वसा=मज्जा, चरबी+गंध] सड़ी मछली या मांस की-सी गंधवाला।
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बिसारद  : पुं०=विशारद। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बिसारना  : स० [हिं० बिसरना] स्मरण न ऱखना। ध्यान में नरखना। विस्मृत करना। भुलाना। संयो० क्रि०—देना।
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बिसारा  : वि० [सं० विषालु] [स्त्री० बिसारी] विष भरा। विषाक्त। जहरीला। पुं०=बिसायँध।
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बिसास  : पुं० १.=विश्वास। २.=दे० ‘विश्वासघात’। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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बिसासी  : वि० [सं० अविश्वसिन्] [स्त्री० विसासिन, बिसासिनी] १. जिस पर विश्वास न किया जा सके। २. कपटी। धोखेबाज। पुं० [सं० विश्व+आशिन्] विश्व का भक्षक, अर्थात् काल।
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बिसाह  : पुं० [सं० व्यवसाय] बिसाहने की क्रिया या भाव। विश्वास (पश्चिम)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बिसाहन  : पुं० [हिं० बिसाहना] मोल लेने की वस्तु। काम की वह चीज जो खरीदी जाय। सौदा।
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बिसाहना  : स० [हिं० बिसाह] १. दाम देकर कोई वस्तु लेना। क्रय करना। २. जान-बूझकर अपने पीछे या साथ लगाना। जैसे—किसी से पैर बिसाहना। पुं० १. बिसाहने की क्रिया या भाव। २. मोल लेना। खरीदना। उदाहरण—पूरा किया बिसाहना बहुरि न आवै हद।—कबीर।
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बिसाहनी  : स्त्री० [हिं० बिसाहना] १. क्रय-विक्रय का काम। व्यापार। २. मोल ली जाने वाली चीजें।
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बिसाहा  : पुं० [हिं० बिसाहना] वह वस्तु जो मोल ली जाय। सौदा।
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बिसिअर  : पुं०=विषधर। वि०=विषाक्त। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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बिसिख  : पुं०=विशिख (तीर)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बिसियर  : पुं० वि०=बिसिअर। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बिसुकर्मा  : पुं०=विश्वकर्मा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बिसुनना  : अ० [हिं० सुरकना, सुनकना] खाने के समय किसी अन्नकण का कंठ के बदले नासिका के ऊपरी छिद्र में चला जाना।
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बिसुनी  : स्त्री० [सं० विष्णु] अमरबेल (अनेकार्थ)। वि०=बिसनी।
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बिसुवा  : पुं०=बिस्वा। स्त्री०=वेश्या। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बिसूरना  : अ० [सं० विसूरणा=शोक] १. सोच करना। चिंता करना। खेद करना। मन में दुःख मानना। २. मन में दुःख होने पर निरंतर कुच समय तक धीरे-धीरे रोते रहना उदाहरण—(क) ना मेरे पंख, न पाँव बल, मैं अपंख, पिय दूर। उड़ न सकूँ गिर गिर पड़ूँ, रहूँ विसूर बिसूर। (ख) पिस्सू के मछाहारों से रोवे कोई विसूर।—नजीर। पुं० १. बिसूरने की क्रिया या भाव। २. चिन्ता। फिक्र। उदाहरण—लालची लबार बिललात द्वारे द्वार, दीन बदन मलीन मन मिटै ना बिसूरना।—तुलसी।
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बिसेक  : वि० पुं०=विशेष।
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बिसेख  : वि०=विशेष। पुं०=विशेषता। उदाहरण—इन नैनन का यही बिसेख। वह भी देखा, यह भी देखा। (कहा०)।
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बिसेखता  : स्त्री०=विशेषता। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बिसेखना  : स० [सं० विशेष] १. विशेष प्रकार का वर्णन करना। ब्योरेवार वर्णन करना। विशेष रूप से कहना। विकृत करना। २. विशिष्ट रूप से निर्धारित या निश्चित करना। ३. विशिष्ट रूप से जान पड़ना या प्रतीत होना।
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बिसेखा  : पुं० [सं० विशेष] अधिकता अथवा विशिष्ट रूप में होनेवाला कोई काम, चीज या बात। उदाहरण—शोखी शरारत, मक्र ओ फन सब का बिसेखा है यहाँ।—कोई शायर। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बिसेन  : पुं० [?] क्षत्रियों की एक शाखा जिसका राज्य किसी समय वर्तमान गोरखपुर के आस-पास के प्रदेश से नैपाल तक था।
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बिसेषक  : पुं० [सं० विशेषक] माथे पर लगाया जानेवाला टीका या तिलक।
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बिसेस  : पुं०=विशेष। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बिसेसर  : पुं०=विश्वेशर। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बिसैधा  : वि० [हिं० बिसायँध] १. विसायँध से युक्त। उदाहरण—कवँल बिसैध सौं मन लावा।—जायसी। २. जिसमें से बिसायँध अर्थात् सड़े मांस या मछली आदि की-सी गंध निकल रही हो। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बिसैला  : पुं० [सं० विष] उँगली पर होनेवाला एक प्रकार का जहरीला घाव या फोड़ा। वि०=विषैला। (जहरीला)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बिसैसा  : वि० [स्त्री० बिसैसी]=विशेष।
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बिसोक  : वि० [सं० विशोक] शोक रहित। पुं०=अशोक (वृक्ष) (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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बिस्कुट  : पुं० [अं०] एक प्रकार का खस्ता मीठा या नमकीन टिकिया जो आटे को दूध में सानकर तथा उसमें घी, चीनी (या नमक) आदि मिलाकर और सांचों में भरकर तथा भट्ठी में सेककर पकाई जाती है।
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बिस्तर  : पुं० [सं० विस्तर से फा०] बैठने, लेटने आदि के लिए बिछाया जाने वाला कपड़ा। बिछावन। बिछौना। पुं०=विस्तार। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बिस्तारना  : स० [सं० विस्तारण०] १. विस्तृत करना। फैलाना। २. विस्तारपूर्वक वर्णन करना।
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बिस्तुइया  : स० [सं० विष=तूना=(टकना, चूना)] छिपकली। गृहगोधा।
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बिस्माना  : स० [सं० विस्मरण] १. विस्मृत करना। भूलना। २. सदा के लिए छोड़ना। त्यागना।
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बिस्मिल  : वि० [ फा०] १. जबह किया हुआ। २. आहत। घायल। जख्मी।
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बिस्मिल्ला  : अव्य० [अ० बिस्मिल्लाह] ईश्वर का नाम लेकर या लेते हुए (कोई कार्य आरंभ करते समय)। पुं० १. कुरान की एक आयत जिसका अर्थ है—मैं उस ईश्वर का नाम लेकर प्रारंभ करता हूँ जो बड़ा दयालु और महाकृपालु हैं। २. ईश्वर का नाम लेकर किसी काम या बात का किया जानेवाला आरंभ। शुभारंभ। ३. उक्त पद कहते हुए किसी पशु की हत्या करने की क्रिया या भाव (मुसलमान)।
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बिस्राम  : पुं०=विश्राम। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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बिस्वा  : पुं० [हिं० बीसवाँ] जमीन की एक नाप जो एक बीघे का बीसवाँ भाग हैं। पद—बीस बिस्वे=(क) बहुत अधिक संभव है कि जैसे—मैं तो मसझता हूँ कि बीस बिस्वे वेअशव्य यहाँ आयँगे। (ख) निश्चित रूप से। अवश्य। निस्सन्देह। उदाहरण—बीस बिसे व्रत भंग भयो, सो कहौ अब केशव को धनु ताने।—केशव।
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बिस्वादार  : पुं० [हिं० बिस्वा+फा० दार] १. हिस्सेदार। पट्टीदार। २. मध्ययुग में किसी बडे़ जमींदार के अधीन रहनेवाला छोटा जमींदार
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बिस्वास  : पुं०=विश्वास। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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