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बेलंद  : वि० [फा० बलंद] १. ऊँचा। २. जो बुरी तरह परास्त या विफल हुआ हो। (व्यंग्य) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बेलंब  : पुं०=विलंब।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बेल  : पुं० [सं० बिल्व] १. एक प्रसिद्ध बहुत बड़ा पेड़ जिसकी त्वचा श्वेत वर्ण की होती तथा जिसके तने में नहीं, बल्कि शाखाओं में बँटे होते है। यह बहुत पवित्र माना जाता है और इसकी पत्तियाँ शिवजी पर चढ़ाई जाती है २. उक्त वृक्ष का गोलाकार फल जिसका गुदा पेट के रोग के लिए बहुत गुणकारी होता है। स्त्री० [सं० वल्ली] वनस्पति का वह प्रकार या वर्ग जिसमें अधिक मोटा कांड या तना नहीं होता और जो जमीन पर चारों ओर दूर तक फैलती या बाँसों, वक्षों आदि के सहारे ऊपर की ओर बढ़ती है। लहर लता। मुहा०—बेल मँढ़ें चढ़ना=किसी कार्य का अन्त तक ठीक-ठीक या पूरा उतरना। आरंभ किये हुए कार्य में पूरी सफलता होना। २. उक्त के आकार-प्रकार का अंकन या चित्रकारी। जैसे—बेल-दार किनारे की साड़ी। पद—बेल-बूटे। ३. रेशमी या मखमली फीते आदि पर जर-दोजी आदि से बनी हुई इसी प्रकार की फूल-पत्तियाँ जो प्रायः पहनने के कपड़ों पर टाँकी जाती है। जैसे—इस दुपट्टे पर बेल टँक जाय तो और भी अच्छा हो। क्रि० प्र०—टाँकना।—लगाना। ४. लाक्षणिक रूप में, वंश या सन्तान की परम्परा। मुहा०—बेल बढ़ना=वंश-वृद्धि होना। पुत्र-पौत्र आदि होना। ५. विवाह आदि। कुछ विशिष्ट अवसरों पर संबंधियों और बिरादरी वालों की ओर से हज्जामों, गानेवालियों और इसी प्रकार के नेगियों को मिलनेवाला थोड़ा-थोड़ा धन, जिसे पाकर वे वंश-बृद्धि का आशीर्वाद देते या शुभ कामना प्रकट करते हैं। क्रि० प्र०—देना।—पड़ना। ६. नाव खेने का डाँड़ा। बल्ली। ७. घोड़ों का एक रोग जिसमें उनके पैर सूज जाते हैं। स्त्री० [सं० वेला] १. तरंग। लहर। २. जलाशय का किनारा। तट। उदा०—गहि सु-बेल बिरलई समुझि बहिगे अपर हजार।—तुलसी। पुं० [फा० बेलच
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बेलक  : पुं० [फा० बेल्च
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बेलकी  : पुं० [हिं० बेल] चरवाहा।
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बेल-खजी  : पुं० [देश०] एक प्रकार का बहुत ऊँचा वृक्ष जिसके हीर की लकड़ी लाल होती है।
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बेल-गगरा  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार की मछली।
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बेल-गिरी  : स्त्री० [हिं० बेल+गिरी=भींगी] बेल के फल का गूदा।
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बेलचक  : पुं०=बेलचा।
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बेलचा  : पुं० [फा० बेल्चः] १. एक प्रकार की छोटी कुदाल जिससे माली लोग बाग की क्यारिया आदि बनाते हैं। २. किसी प्रकार की छोटी कुदाली। ३. एक प्रकार की लंबी खुरपी।
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बेलड़ी  : स्त्री० [हिं० बेल+ ड़ी (प्रत्य०) छोटी बेल या लता। बौंर।
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बेलदार  : पुं० [फा०] वह मज़दूर जो फावड़ा चलाने, ज़मीन खोदने आदि का काम करता हो। वि० [हिं० बेल+फा० दार] जिसमें बेल-बूटे बने हों। जैसे—बेलदार साड़ी।
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बेलदारी  : स्त्री [फा०] फावड़ा चलाने का काम, भाव या मजदूरी।
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बेलन  : पुं० [हिं० बेलना] १. लकड़ी, पत्थर, लोहे आदि का वह भारी, गोल और दंड के आकार का खंड जो अपने अक्ष पर घूमता है और जिसे लुढ़काकर कोई चीज पीसते, किसी स्थान को समतल करते अथवा कंकड़, पत्थर आदि कूटकर सड़के बनाते है। (रोलर) २. यंत्र आदि में लगा हुआ इस आकार का कोई बड़ा पुरज़ा जो घुमाकर दबाने आदि के काम में आता है। जैसे—छापने की मशीन का बेलन।य़ ३. कोल्ह का जाठ। ४. रुई धुनने की मुठिया या हत्था। ५. करधे में का पौसार। ६. रोट। पूरी आदि बेलने का बेलना’ नामक उपकरण। पुं० [देश०] १. एक प्रकार का जड़हन धान। २. एक में मिलाई हुई वे दो नावें जिनकी सहायता से डूबी हुई नाव पानी में से निकाली जाती है।
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बेलना  : सं० [सं० वलन] १. रोटी, पूरी, कचौरी आदि के पेड़े या लोई को चकले पर रखकर बेलने (उपकरण) की सहायता से आगे-पीछे बार-बार चलाते हुए बढ़ाकर बड़ा पतला करना। मुहा०—(की तरह के) पापड़ बेलना=अनेक प्रकार के ऐसे काम करना जिनमें से किसी में भी सफलता न हो। जैसे—वे कई तरह के पापड़ बेल चुके है। २. कपास ओटना। ३. चौपट या नष्ट करना। मुहा०—पापड़ बेलना=काम बिगाड़ना। चौपट करना। जैसे—यह सारा पापड़ आपका ही बेला हुआ है। ४. मनोविज्ञान के लिए जलाशय में एक दूसरे पर पानी के छीटे उड़ाना। पुं० काठ। पीतल आदि का बना हुआ एक प्रकार का लंबा उपकरण जो बीच में मोटा और दोनों ओरकुछ पतला होता है और जो प्रायः रोटी, पूरी कचौरी आदि की लोई को चकले पर रखकर बेलने के काम आता पूरी, कचौरी आदि की लोई को चकले पर रखकर बेलने के काम आता है।
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बेलनी  : स्त्री० [हिं० बेलना] कपास ओटने की चरखी।
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बेलपत्ती  : सत्री=बेलपत्र।
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बेलपत्र  : पुं० [सं० बिल्वपत्र] बेल (वृक्ष) के पत्ते।
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बेलपात  : पुं०=बेलपत्र।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बेलबागुरा  : पुं० [डिं०] हिरनों को पकड़ने का जाल।
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बेलबूटे  : पुं० [हिं० बेल+बूटे] किसी चीज पर अंकित या चित्रित लताओं, पेड़-पौधों आदि के अंकन या चित्र।
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बेलवाना  : सं० [हिं० बेलना का प्रे०] बेलने का काम दूसरे से कराना।
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बेलसना  : अ० [सं० विलास+ना (प्रत्य०)] भोग-विलास करना। सुख लूटना। आनंद करना।
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बेलहरा  : पुं० बिलहरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बेलहरी  : पुं० [हिं० बल+ हरी (प्रत्य,)। साँची पान।
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बेल-हाजी  : स्त्री० [हिं, बेल+ हाजी ?] धोती आदि के किनारों पर लहरियेदार बेल छापने का लकड़ी का ठप्पा। (छीपी)
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बेल-हाशिया  : पुं० [हिं० बेल+फा० हाशिया] धोती आदि के किनारों पर बेल छापने का ठप्पा।
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बेला  : पुं० [सं० मल्लिका ?] १. चमेली आदि की जाति का एक प्रकार का छोटा पौधा जिसमें सफेद रंग के सुगंधित फूल लगते हैं। इसके मोतिया, मोगरा और मदनवान नामक तीन प्रकार होते है। २. मल्लिका। त्रिपुरा। ३. बेले के फूल के आकार का एक प्रकार का गहना। स्त्री० [सं० वेला] १. समय। वक्त। जैसे—सबेरे की बेला। मुहा०—बेला- बाँटना=सेबेरे या सन्ध्या के समय नियमित रूप से गरीबों को अन्न, धन आदि बाँटना। २. पानी की लहर। ३. समुद्र का किनारा जहाँ लहरें आकर टकराती हैं। ४. एक प्रकार का छोटा कटोरा। ५. चमड़े की बनी हुई एक प्रकार की छोटी कुल्हिया जिसमें लकड़ीकी लंबी ड़डी लगी रहनी है और जिसकी सहायता से तेल नापते या दूसके पात्र में डालते हैँ। स्त्री० [अ० वायोलिन] सारंगी की तरह का एक प्रकार का पाश्चात्य बाजा।
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बेलाई  : स्त्री० [हिं० बेलना+आई (प्रत्य०)] १. बेलने की क्रिया, भाव या मजदूरी। २. धातु के पत्तरों को यंत्र की सहायता से दबाकर चौड़ा या लंबा करना। स्त्री०=बिलाई (बिल्ली)।
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बेलावल  : पुं० [सं० वल्लभ] १. पति। २. प्रियतम। स्त्री० [सं० वल्लभा] १. पत्नी। २. प्रियतमा। पुं०=बिलावल (राग)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बेलिया  : स्त्री० [हिं० बेला का अल्पा०] छोटी कटोरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बेली  : पुं० [हिं० बल ?] रक्षक और सहायक। जैसे—गरीबों का भी है अल्लाह बेली।—कोई शायर। स्त्री० [सं० वल्ली] १. बेल। लता। २. रहस्य-संप्रदाय में (क) विषय-वासना। (ख)। ईश्वर-भक्ति के रूप में फैलनेवाली बेल।
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बेलुत्फ  : वि० [फा०+अ०] [भाव० बेलुत्फी] जिससे कोई लुत्फ या मजा न मिल रहा हो। बेमजा।
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