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भरन  : स्त्री० [हिं० भरना] १. भरने या भरे जाने की अवस्था, क्रिया या भाव। २. ऐसी भरपूर वर्षा जिसके खेत आदि अच्छी तरह भर जायँ। उदाहरण—(क) आने से उसके दिल का मेरे खिल गया, चमन् ऐशो तरब के अब्र की पड़ने लगी भरन।—नजीर। (ख) सावन की झड़ी भादों की भरन। (कहा०)
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भरना  : स० [सं० भरण] [भाव० भराई, भराव] १. किसी आधार या पात्र के अन्दर की खाली जगह में कोई चीज उँडेलना, गिराना, डालना या रखना। बीच के अवकाश में इस प्रकार कोई चीज रखना कि वह खाली न रह जाय। जैसे—गाड़ी में माल, घड़े में पानी या गुब्बेरे में हवा भरना। पद—भरापूरा। २. बीच के अवकाश में कोई उपेक्षित, आवश्यक या उपयुक्त चीज रखना या लगाना। स्थापित करना। जैसे—गड्ढे में मिट्टी भरना, चित्र में रंग भरना, तोप में गोला भरना, मुँह में पान भरना, लिफाफों में चिट्ठियाँ भरना आदि। ३. खाली आसन, पद आदि पर किसी को बैठाना या नियुक्त करके स्थान की पूर्ति करना। जैसे—उन्होंने मंत्री होते ही सारा विभाग भाई-बन्धुओं से भर दिया। ४. पशुओं, यानों आदि पर बोझ लादना। ५. भावी लाभ के विचार से अधिक मात्रा में कोई चीज या माल खरीद कर इकट्ठा करना और रख छोड़ना। जैसे—फसल के दिनों में गेहूँ भरना, मंदी के समय कपड़ा या सोना भरना। ६. सिंचाई के लिए खेत में पानी पहुँचाना। सींचना। ७. छेद, मुँह, विवर, सन्धि आदि बंद करने के लिए उनमें कोई चीज जड़ना, ठूँसना, बैठाना या लगाना। जैसे—खिड़की या झरोखे में ईंटें, छड़ या जाली भरना। ८. लेख आदि के द्वारा आवश्यक अपेक्षाओं की पूर्ति करना या सूचनाएँ अंकित करना। जैसे—आवेदन-पत्र, पंजी या प्रपत्र (फार्म) भरना। ९. किसी के मन में तुष्टि, पूर्णता, यथेष्टता आदि की धारणा या भावना उत्पन्न करना। किसी का मनस्तोष करना। जैसे—बातचीत या व्यवहार से किसी का मन भरना। १॰. अपेक्षित समर्थन, सहमति, स्वीकृति आदि की सूचक पूर्ति करना। जैसे—किसी के कथन की सही या साखी भरना; किसी बात की हामी भरना। ११. किसी को किसी का विद्रोही या विरोधी बनाने अथवा अपने अनुकूल करने के लिए उसके मन में कोई बात अच्छी तरह जमाना या बैठाना। जैसे—आपने तो उन्हें पहले ही भर रखा था, फिर वे मेरी बात क्यों सुनते ? १२. जीव-जंतुओं का किसी को काटना या डसना। उदा०—जहाँ सो नागिन भर गई, कला करै सो अंग।—जायसी। १३. आर्थिक देने, क्षति-पूर्ति, भार आदि के परिशोध के रूप में घन देना। चुकाना। जैसे—ऋण या दंड भरना। १४. यंत्रों आदि में कुंजी घुमाकर या और किसी प्रकार ऐसी क्रिया करना जिसमें वे अपना काम करने लगें। जैसे—घड़ी भरना, ताला भरना। १५. जैसे-तैसे या कुछ कष्ट सहकर दिन काटना या समय बिताना। जैसे—नैहर जनमु भरब बरु जाई।—तुलसी। १६. (कष्ट या विपत्ति) भोगना। सहना। जैसे—करे कोई, भरे कोई। उदा०—राम वन वपु धरि विपति भरे।—सूर। विशेष—भिन्न भिन्न संज्ञाओं के साथ इस क्रिया के योग से बहुत से मुहावरे भी बनते हैं। जैसे—किसी की गोद भरना देवी या देवता की चौकी भरना, महावर आदि से किसी के पैर भरना, (किसी बात या व्यक्ति का) दम भरना, रिश्वत देकर किसी का घर भरना, मनो-विनोद के लिए किसी का स्वांग भरना आदि। ऐसे मुहावरों के लिए संबद्ध संज्ञाएँ देखें। संयो० क्रि०—डालना।—देना।—रखना। अ० १. खाली जगह या आधार का किसी बाहरी या नये पदार्थ के योग से पूर्ण या युक्त होना। जैसे—बरसाती पानी से तालाब भरना, दवा से घाव भरना, पाल से हवा भरना, कीचड़ से पैर भरना, फलों या फूलों से पेड़ भरना, माता (चेचक) के दागों से शरीर भरना, आदमियों से बाजार, मेला या सभा भरना आदि। विशेष—ऊपर स० ‘भरना’ में जो अर्थ आये हैं, उनमें से अधिकतर अर्थों के प्रसंग में इसका अ० प्रयोग भी होता है। जैसे—(क) खेत, देने या रंग भर गया। (ख) भोजन से पेट भर गया। २. दुर्बल या रुग्ण शरीर का यौवन, स्वस्थता आदि के योग से धीरे-धीरे हृष्ट-पुष्ट होना। जैसे—पहले तो वह बहुत दुबला-पतला था, पर अब धीरे-धीरे भरने लगा है। ३. पशुओं पर बोझ लदना अथवा सवारियों पर यात्रियों का बैठना है। ४. मन का असंतोष, क्रोध, संताप आदि से मुक्त होना। जैसे—जब देखो, तब तुम भरे बैठे रहते हो। उदा०—वह भरी ही थी, उमड़ बहने लगी यों।—मैथिलीशरण गुप्त। ५. आवेश करुणा, स्नेह आदि से अभिभूत होने के कारण कुछ कहने के योग्य न रह जाना। किसी भाव की प्रबलता के कारण कुछ कहने में असमर्थ होना। उदा०—गया भरा-सा भमरा कनिष्ठ।—मैथिलीशरण। विशेष—(क) ऐसे अवसरों पर इसके साथ प्रायः संयो० क्रि० ‘आना’ का प्रयोग होता है। जैसे—उसे रोते देख कर मेरा जी भर आया; अर्थात् उसमें करुणा का आविर्भाव हुआ। कुछ अवसरों पर इसका प्रयोग बिना पूरक संज्ञा के भी होता है। जैसे—उसे देखते ही मेरी आँखें भर आईं; अर्थात् आँखों में आँसू भर गये। (ख) कुछ अवस्थाओं में अ० ‘भरना’ और ‘भर जाना’ के अर्थों में बहुत अधिक अन्तर भी होता है। जैसे—(क) तुम्हारी तरफ से हमारा मन भरा है; अर्थात् हम पूर्ण रूप से संतुष्ट हैं और (ख) यहाँ रहते रहते हमारा जी भर गया है; अर्थात् हम ऊब गये हैं अथवा विरक्त हो गये हैं। ६. किसी चीज या बात से ओत-प्रोत या पूर्ण रूप से युक्त होना। जैसे—(क) इसी तरह की फालतू बातों से सारी पुस्तक भरी है। (ख) कीचड़ भरे पैर तो पहले धो लो। ७. ऋण, देन आदि का चुकाया जाना। परिशोधन होना। ८. अपेक्षा, आवश्यक, आशा आदि की किसी रूप में पूर्ति होना। जैसे—खाने-पीने की चीजों से पेट भरना, किसी के आचरण या व्यवहार से मन भरना। ९. अवकाश, छिद्र, विवर आदि का बंद होना। १॰. (अंक, गोद आदि के पूर्ण या किसी से युक्त होने के विचार से) आलिंगन होना। गले लगना। भेंटना। बसना। उदा०—हरी चंद सो करे जगदाता सो घर नीच भरै।—सूर। १३. किसी अंग से अधिक और कुछ समय तक निरंतर कोई काम लेते रहने पर उस अंग का कुछ पीड़ा-युक्त और भारी होना तथा काम करने में कष्ट बोध करना। जैसे—चलते-चलते पाँव भरना, लिखते-लिखते हाथ भरना (या भर जाना)। १४. गौ, घोड़ी, भैंद आदि मादा पशुओं का गर्भवती होना। संयो० क्रि०—आना। पुं० १. भरने या भरे जाने की क्रिया या भाव। २. भरने के लिए दी जानेवाली कोई चीज या किया जानेवाला परिश्रम, व्यय आदि। जैसे—इसी तरह बैठकर जनम भर दूसरों का भरना भरते रहो। ३. घूस, रिश्वत। (क्व०) स० [हिं० भार] भार उठाना या ढोना। उदा०—भरि भरि भार कहारन आना।—तुलसी।
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भरनि  : स्त्री० [सं० भरण] १. कपड़े लत्ते। पोशाक। २. दे० ‘भरनी’।
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भरनी  : स्त्री० [हिं० भरना] १. भरने या भरे जाने की क्रिया या भाव। २. वह चीज जो भरी जाय। ३. किसी काम या बात के फलस्वरूप प्राप्त होनेवाली दशा या स्थिति। जैसे—जैसी करनी वैसी भरनी। ४. खेतों में बीज आदि बोने की क्रिया। ५. खेतों की सिंचाई। ६. करगे में की डरकी। नार। ७. बुनाई में बाने का सूत। स्त्री० [?] १. छछूँदर। २. मोरनी। ३. गारुड़ी मंत्र। ४. एक प्रकार की जड़ी या बूटी। स्त्री०=भरणी (नक्षत्र)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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