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भाम  : पुं० [सं०√भाम् (क्रोध करना)+घञ्] १. क्रोध। २. दीप्ति। चमक। ३. प्रकाश। रोशनी। ४. सूर्य। ५. बहनोई। ६. एक प्रकार का वर्णवृत्त का नाम जिसके प्रत्येक चरण में भगण, मगण और अन्त में तीन सगण होते हैं। स्त्री०=भामा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भामक  : पुं० [सं० भाम+कन्] बहनोई।
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भामता  : वि० [स्त्री० भामती] भावता (प्रियतम)।
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भामतीय  : पुं० [हिं० भ्रमना] एक जाति जो दक्षिण भारत में घूमा करती है और चोरी तथा ठगी से जीविका निर्वाह करती है।
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भामनी  : वि० [सं० भामनी (ढोना)+क्विप्] प्रकाश करनेवाला। पुं० १. ईश्वर। २. मालिक। स्वामी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भामा  : स्त्री० [सं० भाम+अच्+टाप्] १. स्त्री० २. क्रुद्ध स्त्री०। ३. दे० ‘सत्यभामा’।
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भामिणि  : स्त्री०=भामिनी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भामिन  : स्त्री०=भामिनी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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भामिनि  : स्त्री०=भामिनी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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भामिनी  : स्त्री० [सं०√भाम्+णिनि,+ङीष्] १. युवती तथा सुन्दर स्त्री। कामिनी। २. सदा क्रुद्ध रहनेवाली अथवा बहुत जल्दी क्रुद्ध हो जानेवाली स्त्री। ३. मोदक नामक छन्द का दूसरा नाम।
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भामी (मिन्)  : वि० [सं०√भाम्+णिनि] [स्त्री० भामिनी] क्रुद्ध। नाराज। स्त्री० क्रोधी स्वभाव की स्त्री।
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