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भूत  : वि० [सं०√भू (होना)+क्त] १. अस्तित्व में आ चुका या बन चुका हो। बना हुआ। २. जो घटना आदि के रूप में घटित हो चुका हो। ३. जो किसी विशिष्ट रूप को प्राप्त हो चुका हो। जैसे—अन्तर्गत, भस्मीभूत। ४. जो समय के विचार से बीत चुका हो। पहले का। पुराना। जैसे—भूत-काल, भूत-पूर्व मंत्री। ५. जो किसी के सदृश या समान हो चुका हो। जैसे—ब्रह्मीभूत। पुं० [सं० भूत] १. शिव का एक रूप। २. चंद्रमास का कृष्णपक्ष। ३. चंद्रमास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी। ४. देवताओं के एक पुरोहित। ५. पुत्र। बेट। पुं० [सं० भूत] १. वह जिसकी कोई सत्ता हो। कोई चेतन या जड़ पदार्थ। २. जीव। प्राणी। ३. दार्शनिक क्षेत्र में वे विशिष्ट मूल तत्त्व जिनसे सारी सृष्टि की रचना हुई है। द्रव्य। महाभूत। (इनकी संख्या पाँच कहीं गई है; यथा—पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश) ४. बीता हुआ काल या समय। गुजरा हुआ जमाना। ५. व्याकरण में, क्रिया के तीन कालों में से एक जो किसी घटना के पूर्व समय में समाप्त या सम्पन्न हो चुकने का सूचक होता है। जैसे—वह चला गया। यहाँ ‘चला गया’ क्रिया भूतकाल की सूचक है। ६. पुराणानुसार एक प्रकार के पिशाच या देव जो रुद्र के अनुचर हैं और जिनका मुँह नीचे की ओर लटका हुआ या ऊपर की ओर उठा हुआ माना जता है। ७. लोक-व्यवहार में किसी मृत प्राणी की आत्मा जिसके संबंध में यह माना जाता है कि छाया के रूप में और बहुत ही सूक्ष्म शरीर वाली होती है। जिन। शैतान। विशेष—इनके विषय में यह भी माना जाता है, कि इनका यह रूप तब तक बना रहता है, जब तक इनकी मुक्ति या मोक्ष नहीं हो जाता; अथवा इन्हें दूसरा जन्म नहीं प्राप्त होता है। यह भी समझा जाता है कि ये कभी कभी लोगों की दिखाई भी पड़ती हैं और अनेक प्रकार के उपद्रव भी करती हैं। यह भी कहा जाता है कि कभी-कभी ये किसी व्यक्ति के शरीर और मस्तिष्क पर अधिकार करके उसके होश-हवास बिगाड़ देती हैं, जिससे वह बकने-झकने और पागलों के से काम करने लगाता है। इसी दृष्टि से इस शब्द के साथ आना, उतरना, चढ़ना, लगना आदि क्रियाओं का भी प्रयोग होता है। पद—भूतों का पकवान या मिठाई=(क) ऐसी पदार्थ जो भ्रम-वश दिखाई तो दे पर वास्तव में जिसका काई अस्तित्व न हो। (कहते हैं कि भूत आकर ऐसी मिठाई रख जाते हैं, जो खाने या छूने पर मिठाई नहीं रह जाती, राख, मिट्टी, विष्ठा आदि हो जाती है। (ख) बिना किसी परिश्रण के या बहुत सहज में मिला हुआ धन जो शीघ्र ही नष्ट हो जाय। मुहा०—(किसी पर) भूत चढ़ना या सवार होना=(क) किसी पर भूत का आवेश होना। (ख) किसी का बहुत अधिक क्रुद्ध होकर पागलों का-सा आचरण या व्यवहार करने लगना। (किसी बात का) भूत चढ़ना या सवार होना=(किसी बात के लिए) बहुत अधिक आग्रह, तन्मयता या हठ होना। जैसे—तुम्हें तो हर बात का भूत चढ़ जाता है। (किसी काम या बात के लिए) भूत बनना=बहुत ही तन्मयता या दृढ़तापूर्वक और पागलों की तरह किसी काम के पीछे पड़ना या उसमें बुरी तरह से लगना। (किसी को) भूत लगाना=किसी पर भूत चढ़ना या सवार होना। (दे० ऊपर) ८. वह औषध, जिसके सेवन से प्रेतों और पिशाचों का उपद्रव शांत होता हो। ९. मृत शरीर। शव। लाश। १॰. सत्य। ११. कार्तिकेय। १२. योगी। १३. वृत्त। १४. लोध्र। लोध।
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भूतक  : पुं० [सं० भूत+कन्] पुराणानुसार सुमेरु पर के २१ लोकों में से एक लोक।
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भूतकर्ता (तृ)  : पुं० [ष० त०] ब्रह्मा। स्रष्टा।
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भूतकला  : स्त्री० [ष० त०] एक प्रकार की शक्ति जो पंच भूतों को उत्पन्न करनेवाली मानी गई है।
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भूतकाल  : पुं० [कर्म० स०] बीता हुआ समय।
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भूतकालिक  : वि० [सं० भूतकाल+ठन्-इक] भूतकाल-संबंधी। जो बीते हए समय में हुआ हो या उनसे संबंध रखता हो। जैसे—भूतकालिक कृदंत।
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भूतकालिक कृदन्त  : पुं० [कर्म० स०] क्रिया से बना हुआ भूत काल का सूचक विशेषण रूप। जैसे—कृत, गत, परिष्कृत आदि।
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भूत-कृत  : पुं० [सं० भूत√कृ (करना)+क्विप्, तक्-आगम] १. देवता। २. विष्णु।
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भूतकृदंत  : पुं० [सं०] व्याकरण में क्रिया का वह रूप जिससे यह सूचित होता है कि क्रिया भूत काल में पूरी या समाप्त हो चुकी थी। जैसे—चलन’ क्रिया का भूतकृदंत ‘चला’ और ‘बैठना’ क्रिया का भूतकृदंत ‘बैठी’ है।
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भूत-केश  : पुं० [ष० त०] १. सफेद दूब। २. इंद्र-वारुणी। ३. सफेद तुलसी। ४. जटामाशी।
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भूतक्रांति  : स्त्री० [ष० त०] किसी व्यक्ति पर होनेवाला भूतों का आवेश।
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भूतखाना  : पुं० [हिं० भूत+फा० खाना=घर] बहुत मैला कुचैला या ऐसा अँधेरा जो भूतों के रहने का स्थान जान पड़े।
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भूतगंधा  : स्त्री० [ब० स०,+टाप्] मुरा नामक गंध द्रव्य।
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भूतगण  : पुं० [ष० त०] शिव के अनुचरों का वर्ग।
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भूतग्राम  : पुं० [ष० त०] देह। शरीर।
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भूतघ्न  : पुं० [सं० भूत√हन् (मारना)+टक्, कुत्व] १. लहसुन। २. भोजपत्र। ३. ऊँट। वि० भूतों का नाश करनेवाला।
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भूतघ्नी  : स्त्री० [सं० भूतघ्न+ङीप्] तुलसी।
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भूत-चतुर्दशी  : स्त्री० [मध्य० स०] कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी। नरक चौदस।
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भूत-चारी (रिन्)  : पुं० [सं० भूत्√चर् (गति)+णिनि] महादेव। शिव।
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भूत-चिंता  : स्त्री० [ष० त०] भूत नामक तत्त्वों की छानबीन।
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भूत-जटा  : स्त्री० [ष० त०] जटामासी।
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भूत-दया  : स्त्री० [ष० त०] चेतन और जड़ सभी के प्रति मन में रखा जानेवाला दया-भाव।
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भूत-द्रुम  : पुं० [मध्य० स०] श्लेष्मांतक वृक्ष।
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भूत-धात्री  : स्त्री० [ष० त०] पृथ्वी।
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भूत-धारिणी  : स्त्री० [सं० भूत√धृ (धारण करना)+णिनि,+ङीष्, उप० स०] धरती। पृथ्वी।
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भूत-धाम (न्)  : पुं० [ष० त०] पुराणानुसार इन्द्र का एक पुत्र।
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भूत-नाथ  : पुं० [ष० त०] शिव। महादेव।
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भूत-नायिका  : स्त्री० [ष० त०] दुर्गा।
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भूत-नाशन  : पुं० [ष० त०] १. रुद्राक्ष। २. सरसों। ३. भिलावाँ। ४. हींग।
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भूत-निचय  : पुं० [ष० त०] देह। शरीर।
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भूतनी  : स्त्री० [हिं० भूत+नी] भूत योनि की स्त्री। २. डाकिनी। ३. लाक्षणिक अर्थ में काले रंग और प्रायः क्रोधी तथा लड़ाके स्वभाववाली स्त्री।
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भूत-पक्ष  : पुं० [मध्य० स०] कृष्ण पक्ष। अँधेरा पाख।
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भूत-पति  : पुं० [ष० त०] १. शिव। २. अग्नि। ३. काली तुलसी।
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भूत-पत्री  : स्त्री० [ब० स०,+ङीप्] काली तुलसी।
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भूत-पाल  : पुं० [सं० भूत्√पाल् (पालना)+णिच्+अच्] विष्णु।
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भूत-पूर्णिमा  : स्त्री० [ष० त०] आश्विन की पूर्णिमा। शरद् पूर्णिमा।
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भूत-पूर्व  : वि० [सुप्सुपा स०] १. पहलेवाला। प्राचीन। २. गत। ३. (पदाधिकारी के संबंध में) जो किसी पद पर पहले कभी रह चुका हो। जैसे—भूतपूर्व सभापति।
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भूत-प्रकृति  : स्त्री० [ष० त०] १. भूतों अर्थात् जीवों की उत्पत्ति। २. दे० ‘मूल-प्रकृति’।
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भूत-प्रेत  : पुं० [द्व० स०] भूत, पिशाच, प्रेत आदि की योनियाँ, अथवा इन योनियों से प्राप्त होनेवाली सूक्ष्म शरीरों का वर्ग।
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भूत-बलि  : स्त्री० [च० त० या मध्य० स०] भूतयज्ञ। (दे०)
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भूत-भर्ता (र्तृ)  : पुं० [ष० त०] १. भूतों का भरण-पोषण करनेवाले; शिव। २. भैरव का एक रूप।
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भूत-भावन  : पुं० [सं० भूत√भू (होना+णिच्+ल्यु-अन] १. ब्रह्मा। २. शिव। विष्णु।
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भूत-भाषा  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. भूत-प्रेतों की भाषा। २. पैशाची भाषा।
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भूत-भैरव  : पुं० [सं० कर्म० स०] १. भैरव का एक नाम। २. उक्त रूप की पूर्ति। ३. हरताल, गंधक आदि के योग बनाया जानेवाला रस जो ज्वर तथा वात नाशक होता है। (वैद्यक)
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भूत-माता (तृ)  : स्त्री० [ष० त०] गौरी।
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भूत-मात्रा  : स्त्री० [ष० त०] (पाँचों में से हर एक) भूत का मूल सूक्ष्म रूप। तन्मात्रा।
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भूत-यज्ञ  : पुं० [मध्य स०] गृहस्थ के लिए विहित पाँच यज्ञों में से एक जिसमें वह समस्त जीवों को आहुति देता है। भूतबलि।
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भूत-योनि  : स्त्री० [ष० त०] प्रेतयोनि। पुं० परमेश्वर।
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भूत-राज  : पुं० [ष० त०] शिव।
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भूतल  : पुं० [ष० त०] १. पृथ्वी का ऊपरी तल। धरातल। भू-पृष्ठ। २. जगत। संसार। ३. पाताल।
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भूत-लक्षी  : वि०=पूर्व-व्यापित।
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भूत-वाद  : पुं० [ष० त०] १. प्राचीन भारत में, एक नास्तिक दार्शनिक संप्रदाय जो पंच-भूतों को ही सृष्टि का कर्ता मानता था, ईश्वर या ब्रह्मा को नहीं। २. दे० ‘भौतिकवाद’। (मेटीरियलिज़्म)
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भूत-वादी (दिन्)  : वि० [सं० भूतवाद+इनि] भूत-वाद सम्बन्धी। पुं० भूत-वाद का अनुयायी।
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भूत-वास  : पुं० [ब० स०] १. महादेव। शिव। २. विष्णु। ३. बहेड़े का पेड़।
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भूत-वाहन  : वि० [ब० स०] भूतों पर सवारी करनेवाला। पुं० महादेव। शिव।
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भूत-विक्रिया  : स्त्री० [ष० त०] १. भूत-प्रेतों के कारण होनेवाली बाधा। प्रेत-बाधा। २. [ब० स०] अपस्मार रोग।
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भूत-विद्या  : स्त्री० [मध्य० स०] आयुर्वेद का वह अंग जिसमें देवता, असुर, गंधर्व, यक्ष, पिशाच, नाग, ग्रह, उपग्रह आदि के प्रभाव से उत्पन्न होनेवाले मानसिक रोगों का निदान और विवेचन होता है। इन्हें दूर करने के लिए बहुधा ग्रह-शांति, पूजा, जप, होम, दान, रत्न पहनने और औषध आदि के सेवन का विधान होता है।
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भूत-विनायक  : पुं० [ष० त०] भूतों अर्थात् जीवों के नायक; शिव।
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भूत-शुद्धि  : स्त्री० [ष० त०] पूजन आदि से पहले मंत्रों द्वारा की जानेवाली शरीर की शुद्धि। (तांत्रिक)
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भूत-संचार  : पुं० [ष० त०] भूतोन्माद नामक रोग।
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भूत-संचारी (रिन्)  : पुं० [सं० भूत√चर् (चलना)+णिनि] दावानल।
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भूत-संप्लव  : पुं० [ष० त०] प्रलय।
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भूत-सिद्ध  : पुं० [ब० स०] वह जिसने किसी भूत-प्रेत को सिद्ध किया हो। (तंत्र)
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भूत-हंत्री  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. नीली दूब। २. बाँझ ककोड़ी।
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भूत-हत्या  : स्त्री० [ष० त०] जीवों या प्राणियों का बध या हत्या।
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भूत-हन  : पुं० [सं० भूत√हन् (मारना)+क्विप्] भोजपत्र का वृक्ष।
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भूत-हर  : पुं० [ष० त०] गुग्गल।
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भूतहा  : पुं० [सं० भूत√हन् (मारना)+क्विप्] भोजपत्र का वृक्ष।
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भूतहारी (रिन्)  : पुं० [सं० भूत√ह (हरण करना)+णिनि] १. लाल कनेर। २. देवदारु।
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भूतांकुश  : पुं० [भूत-अंकुश, ष० त०] १. कश्यप ऋषि। २. गावजुबाँ नामक वनस्पति। २. वैद्यक एक प्रकार का रसौषध जो भूतोन्माद के लिए उपयोगी कहा गया है।
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भूतांतक  : पुं० [भूत-अंतक, ष० त०] १. यम। २. रुद्र।
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भूता  : स्त्री० [सं० भूत+टाप्] कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी।
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भूतागति  : स्त्री० [हिं० भूत+गति] भूत-प्रेत की लीला की तरह का कोई अद्भुत व्यापार। विलक्षण कार्य या बात।
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भूतात्मा (त्मन्)  : पुं० [भूत-आत्मन्, ष० त०] १. शरीर। २. परमेश्वर। ३. शिव। ४. विष्णु। ५. जीवात्मा।
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भूतादि  : पुं० [भूत-आदि, ष० त०] १. परमेश्वर। २. सांख्य में, अहंकार, तत्त्व, जिससे पंचभूतों की उत्पत्ति मानी गई है।
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भूताधिपति  : पुं० [भूत-अधिपति, ष० त०] शिव।
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भूतायन  : पुं० [भूत-अयन, ष० त०] नारायण। परमेश्वर।
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भूतारि  : पुं० [भूत-अरि, ष० त०] हींग।
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भूतार्त  : वि० [भूत-आर्त, तृ० त०] भूतों या प्रेतों की बाधा से पीड़ित।
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भूतार्थ  : वि० [भूत-अर्थ, ब० स०] जो वस्तुतः घटित हुआ हो। यथार्थ में होनेवाला।
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भूतावास  : पुं० [भूत-आवास, ष० त०] १. पंचभूतों से बना हुआ शरीर। २. जीवों का वासस्थान। जगत। दुनिया। संसार। ३. विष्णु। ४. बहेड़ा।
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भूताविष्ट  : वि० [तृ० त०] भूत-प्रेत से ग्रस्त।
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भूतावेश  : पुं० [भूत-आवेश, ष० त०] किसी को भूत लगना। प्रेतबाधा।
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भूति  : स्त्री० [सं०√भू (होना+कतिन् या क्तिच्] १. अस्तित्व में आने या घटित होने की क्रिया, दशा या भाव। प्रस्तुत या वर्तमान होना। २. उत्पत्ति। जन्म। ३. कल्याण या वैभव से युक्त वैभव और सुख। ४. सौभाग्य। ५. धन-सम्पत्ति। गौरव। महिमा। ७. अधिकता। बहुलता। ८. बढ़ती। वृद्धि। ९. अणिमा, महिमा आदि आठ प्रकार की सिद्धियाँ। १॰. रंगों आदि से हाथी के मस्तक पर बनाये जानेवाले बेल-बूटे। ११. लक्ष्मी। १२. मुक्ति। मोक्ष। १३. वृद्धि नाम की ओषधि। १४. भूतृण। १५. सत्ता। १६. पकाया हुआ मांस। १७. रूसा नामक घास। पुं० १. शिव का एक रूप। २. विष्णु। ३. बृहस्पति। ४. पितरों का एक गण या वर्ग। राजा का मंत्री। वि० मांगलिक और शुभ।
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भूतिकाम  : पुं० [सं० भूति√कम् (इच्छा)+अण्] १. राजा का मंत्री। २. बृहस्पति।
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भूतिकृत  : पुं० [सं० भूति√कृ (करना)+क्विप्, तुक्] शिव।
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भूतिद  : पुं० [सं० भूति√दा (देना)+क] शिव।
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भूतिदा  : स्त्री० [सं० भूतिद+टाप्] गंगा।
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भूतिनि  : स्त्री०=भूतनी।
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भूतिनिधान  : पुं० [ष० त०] धनिष्ठा नक्षत्र।
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भूतिनी  : स्त्री०=भूतनी।
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भूति-भूषण  : पुं० [ब० स०] शिव।
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भूती  : पुं० [हिं० भूत+ई (प्रत्य०)] भूत-प्रेतों को पूजनेवाला अथवा उन्हें सिद्ध करनेवाला व्यक्ति।
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भूतीवानी  : स्त्री० [सं० विभूति] भस्म। राख। (डिं०)
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भूतृण  : पुं० [ष० त०] १. रूसा नाम की घास। रोहिष। २. कपूर।
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भूतेज्य  : पुं० [सं० मध्य० स०] भूती (दे०)
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भूतेज्या  : स्त्री० [सं० भूत-इज्या, ष० त०] भूत-प्रेतों की पूजा।
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भूतेश  : पुं० [सं० भूत+ईश, ष० त०] १. परमेश्वर। २. शिव। ३. कार्तिकेय।
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भूतेश्वर  : पुं० [सं० भूत-ईश्वर, ष० त०] १. महादेव। २. एक प्राचीन तीर्थ।
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भूतेल  : पुं० [सं०] पृथ्वी के कुछ विशिष्ट भू-भागों की चट्टानों के नीचे से निकलनेवाला एक प्रकार का प्राकृतिक तैलीय और ज्वलनशील द्रव पदार्थ जो हरे रंग या काले रंग का होता है और जिसे साफ करने पर मिट्टी का तेल और कई प्रकार की चीजें निकलती हैं। (पेट्रोलियम)
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भूतोन्माद  : पुं० [सं० भूत-उन्माद, मध्य० स०] भूत, बाधा के परिणाम स्वरूप होनेवाला उन्माद।
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भूत्तम  : पुं० [सं० भू-उत्तम, स० त०] सोना।
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