शब्द का अर्थ
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मंड :
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पुं० [सं०√मंड् (भूषित करना)+अच्] १. मंडन करने की क्रिया या भाव। सजावट। २. उबले हुए चावलों का गाढ़ा पानी। भात का पानी। माँड। ३. रेंड का पेड़। ४. मेंढ़क। ५. सारभाग। ६. दूध या दही की मलाई। ७. मदिरा। शराब। ८. आभूषण। गहना। ९. एक प्रकार का साग। १॰. कुएँ की जगत। ११. श्वेतसार। |
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मँड़ई :
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स्त्री० [सं० मंडप] १. झोंपड़ी। २. कुटिया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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मंडई :
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स्त्री०=मंडी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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मंडक :
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पुं० [सं० मंड+कन्] १. मैदे की एक प्रकार की रोटी। २. माधवी लता। ३. संगीत में गीत का एक अंग। वि० मंडन या सजावट करनेवाला। |
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मंडन :
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पुं० [सं०√मंड्+ल्युट्—अन] १. श्रृंगार करना। सजाना। २. तर्क या विवाद के प्रसंग में युक्ति आदि देकर किसी कथन या सिद्धान्त का पुष्टिकरण। जैसे—अपने पक्ष का मंडन। ‘खंडन’ का विपर्याय। वि० मंडित करनेवाला या सजानेवाला। |
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मंडना :
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स० [सं० मंडन] १. मंडित या सुसज्जित करना। श्रृंगार करना। अच्छी तरह सजाना। २. तर्क, विवाद आदि के समय युक्तिपूर्वक अपना पक्ष या समर्थन ठीक सिद्ध करते हुए लोगों के सामने उपस्थित करना। कोई बात अच्छी तरह प्रतिपादित और सिद्ध करना। ३. किसी रचना की रूपरेखा आदि तैयार करना या बनाना। ४. पूरी तरह से आच्छादित करना। छाना। ५. कोई बड़ा काम करना या ठानना। स० [सं० मर्दन] दलित या मर्दित करना। नष्ट करना। अ० [हिं० माँडना का अ०] १. भाँड़ा या लिखा जाना। जैसे—खाते में रकम मंडेना। २. किसी काम या बात में लीन होना। जैसे—सब लोग नाच-रंग में मंडे थे। स० [?] मानना। [डिं०] उदा०—आगमि सिसुपाल मंडिजै उद्धव।—प्रिथीराज। |
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मँडनी :
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स्त्री० [हिं० माँडना] अनाज के डंठलों को बेलों से रौंदवाने का काम। दँवरी। |
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मंडप :
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पुं० [सं० मंड√पा+क] १. वह छाया हुआ स्थान जहाँ बहुत से लोग धूप, वर्षा आदि से बचते हुए बैठ सकें। विश्राम-स्थान। २. किसी विशिष्ट काम के लिए छाया हुआ स्थान। जैसे—यज्ञ-मंडप, विवाह-मंडप। ३. आदमियों के बैठने योग्य चारों ओर से खुला, पर ऊपर से छाया हुआ स्थान। बारहदरी। ४. देवमंदिर का ऊपर का छाया हुआ गोलाकार अंश या भाग। ५. चंदोआ। शामियाना। |
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मंडपक :
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पुं० [सं० मंडप+कन्] [स्त्री० मंडपिका] छोटा मंडप। |
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मंडपी :
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स्त्री० [सं० मंडप+ङीष्] छोटा मंडप। |
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मंडर :
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पुं०=मंडल। |
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मँडरना :
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अ० [सं० मंडल] चारों ओर से घिरना। स० चारों ओर से घेरना। |
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मँडराई :
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स्त्री० [सं० मंडल] पक्षियों आदि का घेरा बाँध या मंडल बनाकर आकाश में उड़ने की क्रिया या भाव। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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मँडराना :
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अ० [सं० मंडल] १. मंडल या घेरा बाँधकर छा जाना। २. पक्षियों, फतिंगों आदि का किसी चीज के ऊपर तथा चारों ओर चक्कर लगाते हुए उड़ना। ३. लाक्षणिक अर्थ में लोभ या स्वार्थवश किसी के पास रह-रहकर या घूम-घूम कर पहुँचना। किसी व्यक्ति या स्थान के आसपास घूमते या चक्कर लगाते रहना। |
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मंडरी :
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स्त्री० [देश०] पयाल की बनी हुई गोंदारी या चटाई। |
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मंडल :
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पुं० [सं√मंड्+कलच्] १. चक्र के आकार का घेरा। गोलाई। वृत्त। जैसे—रास मंडल। मुहा०—मंडल बाँधना=गोलाकार घेरा बनाना। जैसे—(क) मंडल बाँधकर नाचना। (ख) बादलों का मंडल बाँधकर बरसना। २. किसी प्रकार की गोलाकार आकृति, रचना या वस्तु। जैसे—भू-मंडल। ३. चंद्रमा, सूर्य आदि के चारों ओर छाया का पड़नेवाला घेरा जो कभी कभी आकाश में बादलों की बहुत हल्की तह रहने पर दिखाई देता है। ४. किसी वस्तु का वह गोलाकार अंश जो दृष्टि के सम्मुख हो। जैसे—चंद्र-मण्डल, सूर्य-मंडल, मुख-मंडल। ५. चारों दिशाओं का घेरा जो गोल दिखाई देता है। क्षितिज। ६. प्राचीन भारत में १२ राज्यों का क्षेत्र, वर्ग या समूह। ७. प्राचीन भारत में चालिस योजन लंबा और बीस योजन चौड़ा क्षेत्र या भूखंड। ८. किसी विशिष्ट दृष्टि से एक माना जानेवाला क्षेत्र या भू-भाग। (ज़ोन) ९. कुछ विशिष्ट प्रकार के लोगों का वर्ग या समाज। (सर्किल) जैसे—मित्र-मंडल, राजकीय मंडल। १॰. एक प्रकार की गोलाकार सैनिक व्यूह-रचना। ११. एक प्रकार का साँप। १२. बघनखी नामक गंध-द्रव्य। १३. वह कक्ष या गोलाकार मार्ग जिस पर चलते हुए ग्रह चक्कर लगाते हैं। १४. शरीर की आठ संधियों में से एक। (सुश्रुत) १५. कुंदक। गेंद। १६. किसी प्रकार का गोल चिन्ह या दाग। १७. चक्र। १८. पहिया। १९. ऋग्वेद का कोई विशिष्ट खंड या भाग। |
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मंडलक :
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पुं० [सं० मंडल+कन्] १. किसी प्रकार की मंडलाकार आकृति, छाया या रचना। (डिस्क)। २. दर्पण। शीशा। ३. दे० ‘मंडल’। |
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मंडल-नृत्य :
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पुं० [सं० सुप्सुपा स०] घेरा बाँधकर या मंडल के रूप में होनेवाला नृत्य। |
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मंडल-पत्रिका :
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स्त्री० [सं० ब० स०,+क, टाप्, इत्व] रक्त पुनर्नवा। लाल गदहपूरना। |
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मंडल-पुच्छक :
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पुं० [सं० ब० स०,+कप्] एक जहरीला कीड़ा। (सुश्रुत) |
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मंडलवर्ती (र्तिन्) :
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पुं० [सं० मंडल√वृत्त (बरतना)+णिनि] प्राचीन भारत में, किसी मंडल या भू-भाग का शासक। |
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मंडल-वर्ष :
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पुं० [सं० मध्य० स०] सारे देश में एक साथ होनेवाली वर्षा। |
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मंडलाकार :
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वि० [सं० मंडल-आकार, ब० स०] जो बिलकुल गोल न होकर बहुत कुछ गोल या गोले के समान हो। गोलाकार। (ऑर्विक्यूलर) |
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मंडलाधिप :
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पुं० [सं० मंडल-अधिप, ष० त०] दे० ‘मंडलेश्वर’। |
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मंडलाधीश :
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पुं० [सं० मंडल-अधीश, ष० त०] दे० ‘मंडलेश्वर’। |
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मंडलाना :
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अ०=मँडराना। |
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मंडलायित :
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वि० [सं० मंडल+क्यङ्+क्त] गोलाकार। वर्त्तुल। |
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मंडली :
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स्त्री० [सं० मंडल+अच्+ङीष्] १. मनुष्यों की गोष्ठी या समाज। २. जीव-जंतुओं का झुड या दल। ३. एक ही प्रकार का उद्देश्य या विचार रखनेवाले अथवा एक ही तरह का काम करनेवाले लोगों का दल या समूह। जैसे—भजन-मंडली। ४. दूब। ५. गुरुच। गिलोय। पुं० [सं० मंडल+इनि] १. सुश्रुत के अनुसार साँपों के आठ भेदों में से एक भेद या वर्ग। २. वट वृक्ष। बड़ का पेड़। ३. बिड़ाल। बिल्ली। ४. नेवले की जाति का बिल्ली की तरह का एक जंतु जिसे बंगाल में खटाश और उत्तर प्रदेश में सेंधुआर कहते हैं। ५. सूर्य। |
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मंडलीक :
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पुं० [सं मांडलिक] एक मंडल या १२ राजाओं का अधिपति। |
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मंडलीकरण :
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पुं० [सं० मंडल+च्वि, ईत्व√कृ (करना)+ल्युट्—अन] १. मंडल या घेरा बनाना। २. कुंडली बनाना, बाँधना या मारना। |
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मंडलेश्वर :
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पुं० [सं० मंडल-ईश्वर, ष० त०] १. एक मंडल का अधिपति। २. प्राचीन भारत में १२ राजाओं का अधिपति। ३. साधु समाज में वह बहुत बड़ा साधु जो किसी क्षेत्र में सर्वप्रधान माना जाता हो। |
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मंडव :
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पुं० =मंडप।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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मँड़वा :
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पुं० [सं० मंडप; प्रा० मंडव] १. किसी विशिष्ट कार्य के लिए छाकर बनाया हुआ स्थान। मंडप। २. वह खेल तमाशा जो किसी मंडप के अन्दर दिखलाया जाता हो। (पश्चिमी) |
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मंड-हारक :
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पुं० [सं० ष० त०] मद्य का व्यवसायी। कलवार। |
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मंडा :
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स्त्री० [सं० मंड+अच्+टाप्] सुरा। पुं० [सं० मंडल] १. भूमि का एक मान जो दो बिस्वे के बराबर होता है। २. एक प्रकार की बँगला मिठाई। पुं० [हिं० मंडी] (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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मंडान :
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स्त्री० [हिं० मंडना] १. मंडित करने की क्रिया या भाव। २. किसी बड़े कृत्य के आरम्भ में की जानेवाली व्यवस्था। ३. आयोजन। प्रबंध। इन्तजाम। जैसे—राज-तिलक या विवाह का मंडान। क्रि० प्र०—बाँधना। |
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मँडार :
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पुं० [सं० मंडल] १. गड्ढा। २. झावा, टोकरा या डलिया। |
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मंडित :
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भू० कृ० [सं०√मंड् (सजाना) १. सजाया हुआ। विभूषित। २. ऊपर से छाया हुआ। आच्छादित। ३. भरा या पूरी तरह से युक्त किया हुआ। पूरित। |
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मँड़ियार :
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पुं० [देश०] झरबेरी नाम की कँकरीली झाड़ी। |
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मंडी :
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स्त्री० [सं० मंडप] वह बहुत बड़ा विक्रय-स्थल जहाँ थोक माल बेचने की बहुत-सी दुकानें हों। जैसे—अनाज की मंडी, कपड़े की मंडी। स्त्री० [सं० मंडल] दो बिस्से के बराबर जमीन की एक पुरानी नाप। |
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मँडुआ :
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पुं० [देश०] एक प्रकार का कदन्न। पुं० मँडवा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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मंडूक :
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पुं० [सं०√मंड्+ऊकण्] १. मेढ़क। २. एक प्राचीन ऋषि। ३. प्राचीन काल का एक प्रकार का बाजा। ४. एक प्रकार का नृत्य। ५. संगीत में रुद्रताल के ग्यारह भेदों में से एक। ६. एक प्रकार का फोड़ा। ७. दोहा, छंद का पाँचवा भेद जिसमें १८ गुरु और १२ लघु अक्षर होते हैं। |
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मंडूक-पर्णी :
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स्त्री० [सं० ब० स०, ङीष्] १. ब्राह्मी बूटी। २. मंजीठ। |
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मंडूक-प्लुति :
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स्त्री० [सं० ष० त०] १. मेंढक का छलाँगे लगाना। २. मेंढक की तरह छलाँगें लगाना। |
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मंडूका :
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स्त्री० [सं० मंडूक+टाप्] मंजिष्ठा। मंजीठ। |
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मंडूकी :
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स्त्री० [सं० मंडूक+ङीष्] १. ब्राह्मी। २. आदित्य-भक्ता। |
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मंडूर :
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पुं० [सं०√मंड्+ऊरच्] १. गलाये हुए लोहे की मैल। २. लौह-किट्ट। ३. वैद्यक में उक्त से बनाया हुआ एक प्रकार का रसौषध’। |
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