शब्द का अर्थ
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मख :
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पुं० [सं०] यज्ञ। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मख़जन :
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पुं० [अ० मरूज़न] १. कोष। खजाना। २. भंडार। |
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मख़तूल :
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पुं० [सं० महर्घ तूल] काला रेशम। |
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मखत्राता :
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वि० [सं० मखत्रातृ] जो यज्ञ की रक्षा करता हो। पुं० रामचन्द्र जिन्होंने विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा की थी। |
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मख़दूम :
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वि० [अ०] १. जिसकी खिदमत की जाय। २. जिसकी खिदमत या सेवा करना उचित हो। सेव्य। ३. पूज्य। मान्य। पुं० मालिक। स्वामी। |
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मखदूभी :
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पुं० [अ०] पूज्य। सेव्य। (संबोधन) |
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मखदूश :
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वि० [अ० मख़दूश] १. जिससे खदशा या खतरा अथवा भय हो। २. धूर्त्त। |
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मखद्वेषी (षिन्) :
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पुं० [सं० मख√द्विष् (द्वेष करना)+णिनि, उप० स०] राक्षस। |
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मखधारी (रिन्) :
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पुं० [सं० मख√धृ (धारण करना)+णिनि, उप० स०] यज्ञ करनेवाला। |
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मखन :
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पुं०=मक्खन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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मखना :
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पुं०=मकुना। |
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मख-नाथ :
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पुं० [सं० ष० त०] यज्ञ के स्वामी, विष्णु। |
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मखनिया :
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वि० [हिं० मक्खन+इया (प्रत्य०)] १. मक्खन-संबंधी मक्खन का। (क्व०) २. (दूध) जिसे मथकर उसमें से मक्खन निकाल लिया गया हो। सप्रेटा। ३. (दही) जो मक्खन निकाले हुए दूध को जमाकर बनाया गया हो। पुं० १. मक्खन बेचनेवाला व्यक्ति। २. उक्त दूध का जमाकर तैयार किया जानेवाला दही। |
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मखनी :
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स्त्री० [हिं० मक्खन] प्रायः एक बित्ता लम्बी एक प्रकार की मछली। |
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मख-पाल :
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पुं० [सं० मख√पा (रक्षा करना)+णिच्+अण्] यज्ञ की रक्षा करनेवाला। यज्ञ-रक्षक। |
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मखफी :
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वि० [अ० मख़्फ़ी] छिपा हुआ। गुप्त। |
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मखमय :
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पुं० [सं० मख+मयट्] विष्णु। |
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मखमल :
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स्त्री० [अ० मख़्मल] [वि० मखमली] १. एक तरह का बढ़िया, महीन, चिकना तथा रोएँदार कपड़ा। २. एक प्रकार की रंगीन दरी जिसके बीचोबीच एक गोल चँदोआ बना रहता है। |
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मखमली :
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वि० [अ० मखमल+ई (प्रत्य०)] १. मखमल का बना हुआ। जैसे—मखमली टोपी। २. मखमल का-सा कोमल और चमकीला। जैसे—मखमली किनारे की धोती। |
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मखमसा :
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पुं० [अ० मख्मसः] १. झगड़ा। २. झमेला। बखेड़ा। ३. डर। भय। |
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मखरज :
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पुं० [अ० मख़ज] १. उद्गम। स्रोत। २. मूल। ३. कंठ (अक्षर के उच्चारण का स्थान)। |
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मखराज :
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पुं० [सं० ष० त०] यज्ञों में श्रेष्ठ राजयूस यज्ञ। |
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मखलूक :
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पुं० [अ० मख़्लूक] १. ईश्वर की सृष्टि। संसार। जगत। २. मनुष्य। लोग। |
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मखलूकात :
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स्त्री० [अ० मख्लूक़ात] चराचर जगत और प्राणी वर्ग। सृष्टि के सब जीव और वनस्पतियाँ। |
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मखलूत :
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वि० [अ० मख्लूत] १. मिला-जुला। मिश्रित। २. गड्ड-मड्ड। |
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मखवाल्क्य :
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पुं० =याज्ञवल्क्य। |
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मख-शाला :
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स्त्री० [सं० ष० त०] यज्ञ करने का स्थान। यज्ञ-शाला। |
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मखसूस :
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वि० [अ० मख्सूस] १. जो खास तौर पर या किसी विशेष कार्य के लिए अलग कर दिया गया हो। विशिष्ट। खास। २. प्रधान। प्रमुख। |
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मख-स्वामी :
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पुं० [सं० ष० त०] यज्ञ के स्वामी, विष्णु। |
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मखाग्नि :
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स्त्री० [सं० मख-अग्नि, ष० त०] यज्ञ की संस्कृत अग्नि। |
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मखाना :
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पुं० [सं० मखान्न] तालमखाना। (देखें)। |
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मखान्न :
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पुं० [सं० मख-अन्न, सुप्सुपा स०] तालमखाना। |
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मख़ालय :
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पुं० [सं० मख-आलय, ष० त०] यज्ञ-शाला। |
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मखी :
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स्त्री०=मक्खी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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मखीर :
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पुं० [हिं० मक्खी] शहद। मधु।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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मखेश :
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पुं० [सं० मख-ईश, ष० त०] राजयूस यज्ञ। |
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मखोना :
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पुं० [देश०] पुरानी चाल का एक प्रकार का कपड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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मखौल :
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पुं० [देश०] ऐसी मजेदार तथा व्यंग्यपूर्ण बात जो, प्रायः किसी को हास्यास्पद बनाने के लिए कही जाती है। क्रि० प्र०—उड़ाना। |
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मखौलिया :
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वि० [हिं० मखौल+इया (प्रत्य०)] १. मखौल-संबंधी। २. मखौल के रूप में होनेवाला। पुं० व्यक्ति जो मखौल करते रहने का अभ्यस्त हो। |
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