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महारंभ  : वि० [सं० महत्-आरंभ, ब० स०] १. बहुत बड़े काम का श्रीगणेश करनेवाला। २. बड़ा काम।
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महार  : स्त्री०=मुहार (ऊँट की नकेल)।
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महारक्त  : पुं० [सं० महत्-रक्त, कर्म० स०] मूँगा।
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महारजत  : पुं० [सं० महत्-रजत, कर्म० स०] १. सोना। २. धतूरा।
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महारजन  : पुं० [महत्-रजन्, कर्म० स०] १. कुसुम का फूल। २, सोना। स्वर्ण।
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महारण्य  : पुं० [सं० महत्-अरण्य, कर्म० स०] बहुत बड़ा या भारी जंगल।
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महारत  : स्त्री० [फा०] १. हस्तकौशल। २. निपुणता। ३. अभ्यास।
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महारत्न  : पुं० [सं० महत्-रत्न, कर्म० स०] मोती, हीरा, वैदूर्य्य, पद्यराग, गोमेद, पुष्पराग, पन्ना, मूँगा और नीलम इन नौ रत्नों में से हर एक।
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महारथ  : पुं० [सं० महत्-रथ, ब० स०] महारथी।
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महारथी (थिन्)  : पुं० [महत्-रथिन्, कर्म० स०] प्राचीन भारत में वह बहुत बड़ा योद्धा जो अकेला दस हजार योद्धाओं से लड़ सकने में समर्थ माना जाता था।
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महारथ्या  : स्त्री० [सं० महती-रथ्या, कर्म० स०] चौड़ी और बड़ी सड़क।
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महारनी  : स्त्री०=मुहारनी।
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महारस  : पुं० [सं० महत्-रस, ब० स०] १. काँजी। २. ऊख। ३. खजूर। ४. कसेरू। ५. जामुन। ६. पारा। ७. अभ्रक। ८. ईगुर। ९. कांतिसार लोहा। १॰. सोना-मक्खी। ११. रूपा-मक्खी।
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महाराग  : पुं० [सं० महत्-राग, कर्म० स०] वज्रयानी तांत्रिक साधना में वह राज या परम अनुराग जो साधक के मन में महामुद्रा के प्रति होता है। कहते हैं कि बिना इस प्रकार का राग उत्पन्न हुए इस जन्म में बोधि की प्राप्ति असम्भव होती है।
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महाराज  : पुं० [सं० महत्-राजन्, कर्म० स०] [स्त्री० महारानी] १. बहुत बड़ा राजा। अनेक राजाओं का प्रधान राजा। २. गुरु, धर्माचार्य पूज्य ब्राह्मण आदि के लिए सम्बोधन सूचक पद। ३. भोजन बनाने वाला ब्राह्मण रसोइया। ४. अंगरेजी शासनकाल में बड़े राजाओं को दी जानेवाली उपाधि।
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महाराजाधिराज  : पुं० [सं० महत्-राजधिराज, कर्म० स०] १. बहुत बड़ा राजा। २. अंगरेजी शासन में एक प्रकार की उपाधि जो प्राय बड़े राजाओं को मिलती थी।
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महाराजिक  : पुं० [सं० महती-राजि, ब०स०+कप्] एक प्रकार के देवता जिनकी संख्या कहीं २२६ और कहीं ४000 कही गई है।
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महाराज्ञी  : स्त्री० [सं० महती-राज्ञी, कर्म० स०] १. दुर्गा। २. महारानी।
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महाराज्य  : पुं० [सं० महत्-राज्य, कर्म० स०] बहुत बड़ा राज्य। साम्राज्य।
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महाराज्यपाल  : पुं० [सं० महत्-राज्यपाल, कर्म० स०] किसी बहुत बड़े देश या राज्य के द्वारा नियुक्त वह सबसे बड़ा अधिकारी जिसके अधीन कई प्रांतीय या प्रादेशिक राज्यपाल हों। (गवर्नर जनरल)।
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महाराणा  : पुं० [सं० महा+हिं० राणा] मेवाड०, चित्तौर और उदयपुर के राजाओं की उपाधि।
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महारात्रि  : स्त्री० [सं० महती-रात्रि, कर्म० स०] १. महाप्रलवाली रात, जबकि ब्रह्मा का लय हो जाता है। २. तांत्रिकों के अनुसार ठीक आधी रात बीतने पर दो मुहुर्तों का समय जो बहुत ही पवित्र मसझा जाता है। ३. दुर्गा।
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महारावण  : पुं० [सं० महत्-रावण, कर्म० स०] पुराणानुसार वह रावण जिसके हजार मुख और दो हजार भुजाएँ थीं।
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महारावल  : पुं० [सं० महा+हिं० रावल] जैसलमेर, डूँगरपुर आदि राज्यों के राजाओं की उपाधि।
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महाराष्ट्र  : पुं० [सं० महत्-राष्ट्र, कर्म० स०] १. बहुत बड़ा राष्ट्र। २. दक्षिण भारत का एक प्रसिद्ध प्रदेश जो अब भारत का एक राज्य है तथा जिसकी राजधानी बम्बई है। ३. उक्त राज्य का निवासी। मराठा।
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महाराष्ट्री  : स्त्री० [सं० महाराष्ट्र+अच्+ङीप्] १. मध्ययुग में एक प्रकार की प्राकृत भाषा जो महाराष्ट्र देश में बोली जाती थी। २. दे० ‘मराठी’। ३. जल-पीपल।
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महाराष्ट्रीय  : वि० [सं० महाराष्ट्र+छ-ईय] महाराष्ट्र-सम्बन्धी। महाराष्ट्र का।
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महारूख  : पुं० [सं० महावृक्ष] १. सेंहुड़। थूहर। २. एक प्रकार का सुन्दर जंगली वृक्ष।
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महारुद्र  : पुं० [सं० महत्-रुद्र, कर्म० स०] शिव।
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महारुरु  : पुं० [सं० महत्-रुरु, कर्म० स०] मृगों की एक जाति।
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महारूप  : पुं० [सं० महत्-रूप, ब० स०] शिव।
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महारूपक  : पुं० [सं० महत्-रूपक, कर्म० स०] साहित्य में रूपक या नाटक का एक प्रकार या भेद।
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महारोग  : पुं० [सं० महत्-रोग, कर्म० स०] बहुत बड़ा प्रायः असाध्य रोग।
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महारोगी (गिन्)  : वि० [सं० महत्-रोगिन्] किसी महारोग से पीड़ित।
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महारौद्र  : पुं० [सं० महत्-रौद्र, कर्म० स०] १. शिव। २. बाइस मात्राओं वाले छन्दों की सामूहिक संज्ञा।
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महारौरव  : पुं० [सं० महत्-रौरव, कर्म० स०] १. पुराणानुसार एक नरक का नाम। २. एक प्रकार का साम।
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महार्घ  : वि० [सं० महत्-अर्घ, ब० स०] [भाव० महार्घता] १. बहुमूल्य। २. महँगा।
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महार्घता  : स्त्री० [सं० महार्घ+तल्+टाप्] महार्घ होने की अवस्था या भाव।
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महार्घ्य्  : वि० =महार्घ।
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महार्णव  : पुं० [सं० महत्-अर्णव, कर्म० स०] १. महासागर। २. शिव। ३. पुराणानुसार एक दैत्य जिसे भगवान् ने कूर्म अवतार में अपने दाहिने पैर से उत्पन्न किया था।
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महार्द्रक  : पुं० [सं० महत्-आर्द्रक, कर्म० स०] १. जंगली अदरक। २. सोंठ।
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महार्बुद  : पुं० [सं० महत्-अबुर्द, कर्म० स०] सौ करोड़ की संख्या।
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महार्ह  : पुं० [सं० महत्-अर्ह, ब० स०] सफेद चन्दन। वि० =महार्घ।
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