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शब्द का अर्थ

मालंच  : पुं० [?] एक प्रकार का साग जो पानी में होता है।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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माल  : पुं० [सं० मा+ रन्, र—ल, पृषो०] १. क्षेत्र। २. कपट। छल। ३. वन। जंगल। ४. हरताल। ५. विण्णु। ६. एक प्राचीन अनार्य या म्लेच्छ जाति। ६. एक प्राचीन देश। स्त्री० [सं० माला] १. गले में पहनने की माला। २. वह रस्सी या सूत की डोरी जो चरखे में बेलन पर से होकर जाती है और टेकुए को घुमाती है। ३. पंक्ति। श्रेणी। ४. झुंड। समूह। उदा०—बाल मृगनि का माल सधन वन भूलि परी ज्यौं।—नंददास। पुं० =मल्ल (पहलवान)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [अं०] १. प्रत्येक ऐसी मूल्यवान वस्तु जिसकी कुछ उपयोग होता हो और इसीलिए जिसका क्रय-विक्रय होता है। जैसे—खेतों की उपज, वृक्षों के फल० घर का सामान, खनिज पदार्थ, गहने-कपड़े आदि। पद—मालख़ाना, मालगाड़ी मालगोदाम। मुहा०—माल काटना, चीरना या मारना= अनुचित रूप से कहीं से मूल्यवान पदार्थ या सम्पत्ति लेकर अपने अधिकार मे करना। २. धन-सम्मपत्ति। रुपया-पैसा। दौलत। पद—मालटाल, मालदार, माल-मता। ३. वह धन जो राज्य को कर, लगान आदि के रूप में प्राप्त होता है। राजस्व। पद—किसी पदार्थ का वह मूल अंश या तत्त्व जो वस्तुतः उपयोगी तथा मूल्यवान हो। जैसे—इस अँगूठी का माल (अर्थात् चाँदी या सोना) अच्छा है। ५. सुन्दर और सुस्वाद भोजन। ६. युवती और सुन्दरी स्त्री। (बाजारू) ६. गणित में वर्ग का घात। वर्ग अंक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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माल-कंगनी  : स्त्री० [हि० माल+कंगनी] १. एक प्रकार की लता जिसके बीजों का तेल निकलता है। २. उक्त लता के दाने या बीज जोऔषध के काम आते हैं और जिनमें से एक प्रकार का तेल निकलता है।
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मालक  : पुं० [सं०√मल् (धारण)+ण्वुल्—अक] १. स्थल-पदम। २. नीम। पुं० =मालिक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मालका  : स्त्री० [सं० मालक+टाप] माला।
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मालकोश  : पुं० [सं० माल-कोष, ष० त०+अण्] संगीत में ओड़व जाति का एक राग जिसे कौशिक राग भी कहते हैं तथा जो रात के दूसरे पहर में गाया जाता है।
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मालखंभ  : पुं० [सं० मल्ल+खम्भ] १. एक प्रकार की भारतीय कसरत या व्यायाम जो लकड़ी के खम्भे या डंडे के सहारे किया जाता है और जिसमें कसरत करनेवाला अनेक प्रकार से बार-बार ऊपर चढ़ता और कलाबाजियाँ करता हुआ नीचे उतरता है। कुछ लोग लकड़ी के खम्भे की जगह छत से लटकाये हुए लम्बे बेंत का भी सहारा लेते हैं। २. वह खम्भा जिसके सहारे हुए लम्बे बेंत का भी सहारा लेते हैं। २. वह खम्भा जिसके सहारे उक्त प्रकार की कसरत या व्यायाम किया जाता है।
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मालखाना  : पुं० [अं० माल+फा० खान
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माल-गाड़ी  : पुं० [हिं० माल+गाड़ी] रेल में वह गाड़ी (सवारी-गाड़ी से भिन्न) जिसमें केवल माल-असबाब भरकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाया जाता है।
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मालगुजार  : पुं० [अ० मालगुज़ार] मालगुजारी देनेवाला व्यक्ति। २. जमींदार।
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मालगुजारी  : स्त्री० [फा०] जोती-बोयीजानेवाली जमीन का वह कर जो सरकार को दिया जाता है। लगान। २. मालगुजार होने की अवस्था या भाव।
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मालगुर्जरी  : स्त्री० [सं० मालगुर्जर+ङीप्] सम्पूर्ण जाति की एक रागिनी जिसमें सब युद्ध स्वर लगते हैं।
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मालगोदाम  : पुं० [हिं० माल+गोदाम] १. वह स्थान जिसमें व्यापारी वस्तु का भंडार रखते है। गोदाम। २. रेलवे स्टेशन का वह स्थान जहाँ से मालगाड़ी में माल चढ़ाया और उतारा जाता है।
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मालगोमा  : पुं० [?] एक प्रकार का आम (फल)।
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मालचक्रक  : पुं० [सं०] कूल्हा।
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मालटा  : पुं० [मालटा (टापू से)] मुसम्मी की जाति का एक प्रकार का बढ़िया फल और उसका पेड़। यह पहले भूमध्यसगार के मालटा द्वीप से आता था। पर अब भारत में भी होता।
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माल-टाल  : पुं० =माल-मता।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मालति  : स्त्री० =मालती।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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मालती  : स्त्री० [सं०√मल्+ अतिच् दीर्घ+ङीष्] १. एक प्रकार की लता, जिसमें वर्षा ऋतु में सफेद रंग के सुगंधित फूल लगते हैं। २. उक्त लता का फूल। ३. छः अक्षरो की एक प्रकार की वर्णवृत्ति जिसके प्रत्येक चरण में क्रम से एक नगण, दो जगण और एक रगण होता है। ४. मदिरा नामक छंद। ५. सवैया के मत्तगयंद नामक भेद का दूसका नाम। ६. युवती स्त्री। ६. चंद्रमा की चाँदनी। ज्योत्स्ना। ८. रात्रि। रात। ९. पाढ़ा नाम की लता। १॰. जात्री या जाय-फलनामक वृक्ष।
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मालती-क्षार  : पुं० [सं० ष० त०] सुगाहा।
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मालती-जात  : पुं० [सं० स० त०] सुहागा।
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मालती-टोड़ी  : स्त्री० [हिं० मालती+टोड़ी] सम्पूर्ण जाति की एक रागिनी जिसमें शुद्ध स्वर लगते हैं।
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मालती-पत्रिका  : स्त्री० [सं० ष० त०] जावित्री।
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मालती-फल  : पुं० [सं० ष० त०] जायफल।
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मालद  : पुं० [सं०] १. वाल्मीकीय रामायण के अनुसार एक प्रदेश का नाम जिसे ताड़का ने उजाड़ दिया था। २. एक प्राचीन अनार्य जाति।
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मालदह  : पुं० [देश०] १. पूर्वी बिहार के एक नगर का नाम। २. उक्त नगर और उसके आस-पास के स्थान में होनेवाला एक प्रकार का बढ़िया आम।
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मालदही  : स्त्री० [हिं, मालदह] एक प्रकार की नाव जिसमें माझी छप्पर के नीचे बैठकर उसे खेते हैं। पुं० मध्यम में मालदह में बननेवाला एक तरह का कपड़ा। वि० मालदह-सम्बन्धी।
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मालदा  : पुं० = मालदह।
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मालदार  : वि० [फा०] [भाव० मालदारी] धनवान्। धनी।
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मालद्वीप  : पुं० [सं० मलयद्वीप] हिंद महासागर का एक द्वीपपुंज।
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मालन  : स्त्री० =मालिन।
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मालपूआ  : पुं० [हिं० माल+सं० पूआ] घी में तली हुई एक प्रकार की मीठी पूरी या पकवान।
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मालवरी  : स्त्री० [हिं० मालाबार] एक प्रकार की ईख।
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माल-भंजिका  : स्त्री० [सं० ष० त०] प्राचीन काल का एक प्रकार का खेल।
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माल-भंडारी  : पुं० [हि० माल+भंडारी] मालगोदाम, भंडार आदि का निरीक्षक।
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माल-भूमि  : स्त्री० [सं० मल्लभूमि] नैपाल के पूर्व का एक प्रदेश।
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माल-मंत्री  : पुं० दे० ‘राजस्व मंत्री’।
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माल-मता  : पुं० [अ० माल+मताअ] धन-दौलत। सम्पत्ति।
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मालय  : वि० [सं० ष० त०] १. मलय पर्वत का। २. मलय पर्वत पर होनेवाला। पुं० १. चंदन। २. व्यापारियों का दल। ३. गरुड़ के एक पुत्र का नाम।
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मालव  : पुं० [सं० माल+व] १. आधुनिक मध्य प्रदेश का एक भू-भाग जो मध्य तथा प्राचीन काल में एक स्वंतन्त्र राज्य था। मालव देश। २. उक्त देश का निवासी। ३. संगीत में एक राग जो भैरव का पुत्र कहा गया है। ४. सफेद लोध। वि० मालवा नामक देश का।
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मालवक  : वि० [सं० मालव+वुञ्—अक] मालव-संबंधी। मालवे का। पुं० मालव देश का निवासी।
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मालवश्री  : स्त्री० [सं० ष० त०] सम्पूर्ण जाति की एक रागिनी जो सायंकाल गाई जाती है।
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मालवा  : पुं० [सं० मालव] आधुनिक मध्यप्रदेश के अंतर्गत एक भू-भाग। मालव। स्त्री० एक प्राचीन नदी।
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मालविका  : स्त्री० [सं० मालवा+ ठक्—इक,+टाप्] निसोथ।
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मालवी  : स्त्री० [सं० मालव +अण्+ ङीप्] १. संगीत में, श्री राग की एक रागिनी। २. पाढ़ा नाम की लता। ३. मालवे की बोली। वि०=मालवीय।
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मालवीय  : वि० [सं० मालव+छ—ईय] मालव देश-संबंधी। मालव का। पुं० मालव देश का निवासी।
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मालश्री  : स्त्री०=मालवश्री।
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मालसी  : स्त्री० =मालवश्री।
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माला  : स्त्री० [सं० मा=शोभा√ला (देना)+क,+टाप्] १. एक ही पंक्ति या सीघ में लगी हुई बहुत सी चीजों की स्थिति। अवली। पंक्ति। जैसे—पर्वत-माला। २. एक तरह की चीजों का निरन्तर चलता रहनेवाला क्रम। जैसे—पुस्तक माला। ३. फूलों का हार। गजरा। ४. फूलों के हार की तरह बनाया हुआ सोने, चाँदी, रत्नों आदि का हार। जैसे—मोतियों या हीरों की माला। ५. कुछ विशिष्ट प्रकार के दानों या मनकों का हार जो धार्मिक दृष्टियों से पहना जाता है। जैसे—तुलसी की माला, रुद्राक्ष की माला अर्थात् जिसके दानों या मनकों की गिनती के हिसाब के इष्टदेव के नाम का जप किया जाता है। मुहा०—माला जपना या फेरना=हाथ में माला लेकर इष्टदेव का नाम जपना। (किसी के नाम की) माला जपना=हरदम या प्रायः किसी का नाम लेते रहना अथवा चर्चा या ध्यान करते रहना। ६. समूह । झूंड। जैसे—मेघमाला। ६. एक प्राचीन नदी। ८. दूब। ९. भुई आँवला। १॰. काठ की एक प्रकार की कटोरी जिसमें उबटन या तेल रखकर शरीर पर मला या लगाया जाता है। ११. उपजाति छंद का एक भेद जिसके प्रथम और चौथे चरण में जगण, तगण, फिर जगण और अंत में दो गुरु होते है। पुं० [अ० महल, हि० महला] मकान का खंड। (महाराष्ट्र) जैसे—मकान का चौथा माला।
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मालाकंठ  : पुं० [सं० ब० स०] १. अपामार्ग। चिचड़ा। २. एक प्रकार का गुल्म।
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माला-कंद  : पुं० [सं० मध्य० स०] एक प्रकार का कंद जो वैद्यक में तीक्ष्ण दीपन, गुल्म और गंडमाला रोग को हरनेवाला तथा वात और कफ का नाशक कहा गया है। कंडलता। बल-कंद।
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मालाकार  : पुं० [सं० माला√कृ+अक्] [स्त्री० मालाकारी] १. पुराणानुसार एक वर्णसंकर जाति। विशेष—ब्रह्यवैवर्त पुराण के अनुसार यह जाति विश्वकर्मा और शूद्रा से उत्पन्न है। पराशर पद्धति के अनुसार यह तेलिन और कर्मकार से उत्पन्न है। २. माली।
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मालाकृति  : वि० [माला-आकृति, ब० स०] माला के आकार का। दे० ‘रज्जुवक्र’।
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मालागिरी  : वि०, पुं० =मलयागिरि।
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मालातृण  : पुं० [सं० मध्य० स०] एक तरह की सुगंधित घास। भूस्तृण।
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माला दीपक  : पुं० [सं० ष० त०] साहित्य में, दीपक अलंकार का एक भेद जिसमें किसी वस्तु के एक ही गुण के आधार पर उत्तरोत्तर अनेक वस्तुओं का संबंध बताया जाता है। जैसे—रस के काव्य, काव्य से वाणी, वाणी से रसिक और रसिक से सभा की शोभा बढ़ती है।
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माला-दूर्बा  : स्त्री० [सं० उपमि० त०] एक प्रकार की दूब जिसमें बहुत सी गाँठें होती हैं। गंडदूर्वा।
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मालाधर  : पुं० [सं० ष० त०] सत्रह अक्षरों का एक वर्णिक वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में नगण, सगण, जगण, फिर सगण और अंत में एक लधु और फिर गुरु होता है।
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मालाप्रस्थ  : पुं० [सं०] एक प्राचीन नगर।
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मालाफल  : पुं० [सं० ष० त०] रुद्राक्ष।
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माला मणि  : पुं० [ष० त०] रुद्राक्ष।
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मालामाल  : वि० [फा०] जिसके पास बहुत अधिक माल या धन हो। धन-धान्य से पूर्ण। सम्पन्न।
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माला रानी  : स्त्री० [हिं,] संगीत में कल्याण ठाठ की एक रागिनी।
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मालाली  : स्त्री० [सं० माला√अल्+अच्+ङीष्] पक्का। असबरग।
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मालावती  : स्त्री० [सं० माला+मतुप्, वत्व, ङीप,] एक प्रकार की संकर रागिनी जो पंचम, हम्मीर, नट और कामोद के संयोग से बनती है। कुछ लोग इसे मेघराज की पुत्रवधु मानते हैं।
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मालिक  : पुं० [सं० माला+ठक्—इक] १. मालाएँ बनानेवाला। माली। २. रजक। धोबी। ३. एक प्रकार का पक्षी। पुं० [अ०] [स्त्री० मालिका] १. वह जो सब का स्वामी हो और सब पर अधिकार रखता हो। २. ईश्वर। जैसे—जो मालिक की मरजी होगी वही होगा। ३. सम्पत्ति आदि का स्वामी। अध्यक्ष। ४. विवाहिता स्त्री का पति। शौहर।
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मालिका  : स्त्री० [सं० माला+कन्+टाप इत्व] १. पंक्ति। श्रेणी। २. फूलों आदि का माला। ३. गले में पहनने का एक प्रकार का गहना। ४. पक्के मकान के ऊपर का कोठा। अटारी। ५. अंगूर की शराब ६. मदिरा। शराब। ६. पुत्री। बेटी। ८. चमेली। ९. अलसी। १॰. माली जाति की स्त्री। मालिन। ११. मुरा नामक गंध द्रव्य। १२. सातला। स्त्री० [फा० ‘मालिक’ का स्त्री०] स्वामिनी।
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मालिकाना  : पुं० [अ० मालिक+फा० आन
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मालिकी  : स्त्री० [फा० मालिक+ई (प्रत्य०)] मालिक होने की अवस्था या भाव स्वामित्व। मालकियत। वि० मालिक या स्वामी का। जैसे—मालिकी माल।
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मालित  : भू० कृ० [सं० माला+इतच्] १. जिसे माला पहनाई गई हो। २. जो घेर लिया गया हो।
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मालिन  : स्त्री० [हिं० माली] १. माली की स्त्री। २. माली का काम करनेवाली स्त्री। स्त्री० [स० मालिनी] संगीत में एक प्रकार की रागिनी।
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मालिनी  : स्त्री० [सं० माला+इनि+ङीप्] १. माली जाति की स्त्री। मालिन। २. चंदा नगरी का एक नाम। ३. गौरी। ४. गंगा। ५. जवासा। ६. कलियारी। ६. स्कंद की सात मातृकाओं में से एक। ८. साहित्य मे, मंदिरा नामकी वृत्ति। ९. एक प्रकार की वार्णिक वृत्त जिसके प्रत्येक पाद में १5 अक्षर होते है। पहले ६. वर्ण दसवाँ और तेरहवाँ लघु और शेष गुरु होते हैं (न, न, भ, य, य)। इसे कोई-कोई मात्रिक भी मानते हैं। १॰. हिमालय की एक प्राचीन नही। रौच्य मनु की माता का नाम। ११. हिमालय की एक प्राचीन नदी। कहते हैं कि इसी के तट पर मेनका के गर्भ से शकुलंता का जन्म हुआ था।
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मालिन्य  : पुं [सं० मलिन+ष्णञ्, ण्ण वा, बुद्धि] १. मलिन होने की दशा या भाव। मलिनता। मैलापन। २. अंधकार। अंधेरा।
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मालियत  : स्त्री० [अ०] १. माल का वास्तिवक मूल्य। कीमत। २. धन। सम्पत्ति। ३. मूल्यवान पदार्थ। कीमती चीज।
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मालिया  : पुं० [देश०] पाल आदि बाँधते समय दी जानेवाली रस्सी में एक विशेष प्रका की गाँठ। (ल०) पं० [हिं० माल] मालगुजारी। (पश्चिम)
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मालिवान  : पुं० माल्यवान्।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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मालिश  : स्त्री० [फा०] १. शरीर पर तेल आदि मलने की क्रिया या भाव। मर्दन। २. रक्त-संचार आदि के लिए शरीर के किसी अंग पर बार-बार हाथ से मलने की किया। मुहा०—जी मालिश करना=उबकाई या मिचली-सी आना। जैसे—उसे देखकर मेरा तो जी मालिश करने लगा।
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माली (लिन्)  : वि० [सं० माला+इनि] [स्त्री० मालिनी] जो माला धारण किये हो। पुं० १. वाल्मीकीय रामायण के अनुसारसुकेश राक्षस का पुत्र जो माल्यवान् और सुमाली का भाई था। २. राजीव-गण नामक छन्द का दूसरा नाम। पुं० [सं० माला+इनि, दी्र्ध, न-लोप, मालिन; प्रा० मालिन] [स्त्री० मालिन, मालिनि, मालिनी] १. बाग को सींचने और पौधों को ठीक स्थान पर लगानेवाला व्यक्ति। बागवान। २. हिन्दूओं में उक्त काम करनेवाली एक जाति। ३. उक्त जाति का व्यक्ति। स्त्री० [हिं, माला] छोटी माला। सुमिरनी। उदा०—पतनारी माली पकाई और न कछू उपाय।—बिहारी। वि० [अं०] माल अर्थात् धन या सम्पत्ति से संबंध रखनेवाला। अर्थ सम्बंधी। आर्थिक।
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माली खूलिया  : पुं० [अं०] एक प्रकार का मानसिक रोग जिसमें रोगी प्रायः खिन्न या दुःखी और संशक रहता है। उन्माद
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माली गौड़  : पुं०=मालव-गौड़। (राग)
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मालीद  : पुं० [अं० मालिबडेना] एक प्रकार की उज्ज्वल और चमकदार धातु जो चाँदी से अधिक कड़ी होती है।
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मालीदा  : पुं० दे ‘मलीदा’।
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मालु  : पुं,० [सं०√मृ (प्राप्त करना)+उण् वृद्धि, र=त्त] एक प्रकार की लता जो पेड़ों से लिपटती है। पत्रलता।
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मालुक  : पुं० [सं० मालु+कन्] १. काली तुलसी। २. मटमैले रंग का एक प्रकार का राजहंस।
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मालुधान  : पुं० [सं० मालु√धा (रखना)+ल्यु—अन] १. एक प्रकार का साँप। २. पुराणानुसार आठ प्रमुख नागों में से एक। ३. महापथ।
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मालुधानी  : स्त्री० [सं० मालुधान+ङीप्] एक प्रकार की लता]।
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मालुमात  : स्त्री० [अं०] १. जानकारी। ज्ञान। २. किसी बात का विषय की इच्छी और पूरी जानकारी।
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मालुर  : पुं० [सं० मा√लू (काटना)+र] १. बेल का पेड़। २. कपित्थ। कैथ।
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मालूम  : वि० [अं०] १. (बात् वस्तु या विषय) जिसका इल्म अर्थात् ज्ञान हो चुका हो। जाना हुआ। ज्ञात। विदित। २. प्रकट। स्पष्ट। पुं० जहाज का प्रधान अधिकारी या अफसर। (लश०)
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मालोपमा  : स्त्री० [सं० माला-उपमा उपमि० स०] साहित्य में उपमालंकार का एक भेद जिसमें एक उपमेय के (क) एक ही धर्मवाले अथवा (ख) विभिन्न धर्मवाले अनेक उपमान बतलाये जाते है।
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माल्य  : पुं० [सं० माला+ष्यञ्] १. फूल। २. माला। ३. सिर पर लपेटी जानेवाली माला।
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माल्यक  : पुं० [सं० माल्य+ कन] १. दमनक। दौना। २. माला।
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माल्य-पुष्प  : पुं० [सं० ब० स०] सन का पौधा।
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माल्यवंत  : पुं० =माल्यवान्।
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माल्यवत्  : वि० [सं० माल्य+मतुप्, वत्व] [स्त्री० माल्यवती] जो माला पहने हो। पुं० =माल्यवान्।
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माल्यवती  : स्त्री० [सं० माल्यवत्+ङीप्] पुराणानुसार एक प्राचीन नदी। वि० (हि०) माल्यवत् का स्त्री०।
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माल्यवान् (वत्)  : पुं० [सं० दे० माल्यवत] १. पराणानुसार एक पर्वत जो केतुमाल और इलावृत वर्ष के बीच का सीमा-पर्वत कहा गया है। २. सुकेश का पुत्र एक राक्षस जो गंधर्व की कन्या देववती से उत्पन्न हुआ था। वि० [सं० माल्यवत्] [स्त्री० माल्यवती] जो माला पहने हो।
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माल्ल  : पुं० [सं० मल्ल +अञ्] १. एक वर्ण संकर। २. दे० ‘मल्ल’।
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माल्लवी  : स्त्री० [सं०√मल्ल्+वण्,+ङीप्] १. मल्लों की विद्या या कला। २. मल्लों का जोड़।
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माल्ह  : पुं० =मल्ल। स्त्री० =माला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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