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मुकरी  : स्त्री० [हिं० मुकरना] १. मुकरने की क्रिया या भाव। २. एक प्रकार की लोक-प्रचलित कविता जिसका रूप बहुत कुछ पहेली का सा होता है, और जिसमें पहले तो कोई वास्तविक बात श्लिष्ट रूप में कही जाती है, पर बाद में उस कही हुई बात से मुकरकर उसकी जगह कोई दूसरी उपयुक्त बात बनाकर कह दी जाती है। जिससे सुननेवाला कुछ का कुछ समझने लगता है। हिंदी में अमीर खुसरो की मुकरियाँ प्रसिद्ध हैं। इसी को ‘कह-मुकरी’ भी कहते हैं साहित्यिक दृष्टि से मुकरियों का विषय छेकापह्रुति अलंकार के अंतर्गत आता है। उदाहरण—सगरि रैन वह मो संग जागा। भोर भई तब बिछुरन लागा। वाके बिछरत फाटे हिया। क्यों सखि साजन ना सखि दिया।—खुसरो।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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