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मुरा  : स्त्री० [सं०√मुर्+क+टाप्] १. एक गंध द्रव्य। मुरामांसी। २. वह नाइन जिसके गर्भ से महानंद के पुत्र चंद्रगुप्त का जन्म हुआ था। (कथासरित सागर)।
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मुराड़ा  : पुं० [देश०] ऐसी लकड़ी जिसका एक सिरा जल रहा हो। लुआठा।
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मुराद  : स्त्री० [अ०] १. बहुत दिनों से मन में बनी रहनेवाली अभिलाषा। पद—मुराद के दिन=यौवन काल, जिसमें मन में अनेक प्रकार की इच्छाएँ उमंगें और कामनाएँ रहती हैं। क्रि० प्र०—पूरी होना।—बर आना। मुहावरा—मुराद पाना=मन की चाही हुई चीज पाना। (ख) मन की चाही हुई बात पूरी होना। (ईश्वर या देवता से) मुराद माँगना=मन की अभिलाषा पूरी होने की प्रार्थना करना। मुराद मिलना=मन की अभिलाषा पूरी होना। २. मन्नत। मनौती। मुहावरा—मुराद मानना=मनौती या मन्नत मानना। ३. अभिप्राय। आशय। मतलब।
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मुरादी  : वि० [अ०] मन में मुराद रखनेवाला। अभिलाषी।
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मुराना  : स० [अनु० मुरमुर=चबाने का शब्द] मुँह में कोई चीज डालकर उसे मुलायम करना। चुभलाना। स० १. =मुड़ाना। २. =मोड़ना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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मुराफा  : पुं० [अ० मुराफ़अ] छोटी अदालत में मुकदमा हार जाने पर बड़ी अदालत में पुनर्विचार के लिए दिया जानेवाला प्रार्थना-पत्र।
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मुरार  : पुं० [सं० मृणाल] कमल की जड़। कमलनाल। पुं० =मुरारी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मुरारि  : पुं० [सं० मुर-अरि, ष० त०] १. मुर राक्षस के शत्रु (क) विष्णु, (ख) श्रीकृष्ण। २. डगण के तीसरे भेद (।ऽ।) की संज्ञा (पिंगल)।
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मुरारी  : पुं० =मुरारि।
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मुरासा  : पुं० [अ० मुरस्सा] कान में पहनने का एक तरह का रत्न-जटित फूल। तरकी। पुं० =मुँड़ासा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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