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में  : विभ० [सं० मध्य, प्रा०मज्झ, पुं० हिं० मँह] अधिकरण कारक का चिन्ह जो किसी शब्द के आगे लगकर नीचे लिखे अर्थ देता है—(क) भीतरी भाग में या अन्दर। जैसे—(क) गले में छाले पड़ना, कमरे में व्यक्ति होना। (ख) चारों ओर, जैसे—गले में हार पड़ना। (ग) किसी अवस्थान या आधार पर। जैसे—पेड़ में फल लगना। (घ) नियत अवधि या काल पूरा होने से पहले। जैसे—एक घंटे में यह काम हो जायगा। (च) किसी वर्ग या समूह के क्षेत्र या परिधि के अन्तर्गत। जैसे—कवियों में कालिदास सर्वश्रेष्ठ थे। (छ) कार्य, व्यापार आदि संलग्नता। जैसे—वह दिन भर काम में लगा रहता है। स्त्री० [अनु०] बकरी के बोलने का शब्द।
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मेंगनी  : स्त्री० [हिं० मींगी] पशुओं की ऐसी विष्ठा जो छोटी-छोटी गोलियों के आकार में होती है। लेंड़ी। जैसे—ऊँट, चूहे या बकरी की मेंगनी।
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मेंजा  : पुं० मेढ़क। उदाहरण—समुँद न जान कुँआ कर मेंजा।—जायसी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मेंड़  : स्त्री० [हिं० डाँड़ का अनु० या सं० मण्डल] १. ऊँची उठी हुई तंग जमीन जो दूर तक लकीर के रूप में चली गयी हो। २. दो खेतों के बीच की कुछ ऊँची उठी हुई सँकरी जमीन जो उनकी सीमा की सूचक होती है और जिस पर लोग आते-जाते हैं। डाँड़। पगडंडी। ३. आड़। रोक। उदाहरण—तुम्ह नल नील मेंड़देनिहारा।—जायसी। ४. मर्यादा। उदाहरण—अस सम मेंड़नि कौं मति खोवहु।—सूर।
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मेंड़क  : पुं० =मेंढ़क।
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मेंड़-बन्दी  : स्त्री० [हिं० मेंड़+बाँधना] मेंड़ बनाने का काम।
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मेंडरा  : पुं० [सं० मण्डल] १. घेरने के लिए बनाया हुआ कोई गोल चक्कर। जैसे—ढोलक या तबले का मेंडरा जो चमड़े के चारों ओर लगाया जाता है। २. मेंडुरी। ३. किसी गोल वस्तु का उभरा हुआ किनारा। ४. किसी वस्तु का मण्डलाकार ढाँचा। जैसे—चलनी का मेंडरा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मेंडराना  : स० [हिं० मेंडरा] किसी चीज के चारों ओर मेंडरा या घेरा बनाना या लगाना। अ० १. चारों ओर घेरे या चक्कर के रूप में स्थित होना। उदाहरण—राजपरखि तेहि पर मेंडराहिं—जायसी। २. दे० ‘मण्डलाना’। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मेंढ़क  : पुं० [सं० मंडूक] १. एक प्रसिद्ध जलस्थलचारी छोटा जंतु। २. रहस्य संप्रदाय में, मन जिसे अन्त में कालरूपी साँप निगल जाता है।
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मेंढ़की  : स्त्री०=मेंढ़क की मादा।
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मेंधी  : स्त्री० [सं० मा=शीमा√इन्ध (दीप्ति)+णिच्+अच्+ङीष्] मेंहदी।
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मेंबर  : पुं० [अ०] [भाव० मेंबरी] सदस्य (दे०)।
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मेंबरी  : स्त्री० [अं० मेंबर से] मेंबर होने की अवस्था या भाव। सदस्यता (मेंबरशिप)।
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मेंह  : पुं० [सं० मेघ] १. आकाश से वर्षा के रूप में गिरनेवाला जल। २. पानी बरसना। वर्षा। क्रि० प्र०—पड़ना।
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मेंहदिया  : वि० [हि० मेंहदी] मेंहदी की तरह का हरापन लिये लाल रंगवाला। पुं० उक्त प्रकार का रंग (मर्ट्रिल)।
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मेंहदी  : स्त्री० [सं० मेंधी] १. एक प्रसिद्ध कँटीली झाड़ी या पौधा जिसकी पत्तियों से गहरा लाल रंग निकलता है और इसीलिए जिन्हें पीसकर स्त्रियाँ अपनी हथेलियों और तलुओं में, उन्हें रंगने के लिए लगाती हैं। (मर्ट्रिल)। २. उक्त पौधे की पत्तियों का पीसा हुआ चूर्ण। मुहावरा—मेंहदी रचना=मेंहदी का अच्छा और गहरा रंग आना। मेंहदी रचाना या लगाना=मेंहदी की पत्तियाँ पीसकर हथेली या तलुए में लगाना।
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मेंड़री  : स्त्री० हिं० मेड़री का स्त्री, अल्पा। स्त्री० [?] चक्की के चारों ओर का वह स्थान जहाँ आटा पिसकर गिरता है।
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