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शब्द का अर्थ

रखना  : स० [सं० रक्षण, प्रा० रक्खणा] १. किसी आधार, तल, वस्तु, व्यक्ति, स्थान आदि पर कोई चीज टिकाना, धरना, लादना या स्थापित करना। जैसे—(क) मेज पर गिलास रखना। (ख) मुँह पर हाथ रखना। (ग) घोड़े पर असबाब रखना। २. किसी वस्तु को दूसरे को देने, सौंपने या समर्पित करने के उद्देश्य से स्थापित करना या छोड़ देना। जैसे—किसी पर निर्णय का भार रखना। ३. किसी व्यक्ति को किसी विशिष्ट पद पर या स्थिति में नियुक्त या स्थापित करना। तैनात या मुकर्रर करना। जैसे—घर के काम के लिए नौकर तथा कोठी के काम के लिए मुनीम रखना। ४. कोई बात या विषय किसी के सामने समझाने आदि के लिए उपस्थित करना या प्रस्तुत करना। जैसे—(क) पसंद करने के लिए ग्राहक के सामने चीजें रखना। (ख) अदालत के सामने मामला या सूबत रखना। (ग) श्रोताओं के सामने उदाहरण अथवा प्रसंग रखना। ५. कोई चीज या बात इस प्रकार अपने अधिकार या वश में करना कि उसका दुरुपयोग न हो सकें, अथवा वह दूसरे के अधिकार में न जा सके। जैसे—(क) सौ रुपये हमने अपने पास रखे हैं। (ख) यह बात अपने मन में रखना, अर्थात् किसी से कहना मत। मुहावरा—(किसी का) कुछ रख लेना=इस प्रकार अपने अधिकार में कर लेना कि उसका वास्तविक स्वामी उसे पा या ले न सके। दबा लेना। जैसे—उन्होंने हमारा सारा काम भी रख लिया, और हमें रुपए भी नहीं दिये। ६. किसी प्रकार के उपयोग के लिए चीजें एकत्र करना। संग्रह या संचय करना। जैसे—(क) यह दूकानदार सब तरह की चीजें रखता है। (ख) हम हस्तलिखित ग्रन्थ और पुराने सिक्के रखते हैं। ७. पालन-पोषण, मनोविनोद, व्यवहार आदि के लिए अपने अधिकार में करना। जैसे—(क) कबूतर, कुत्ता या गौ रखना। (ख) गाड़ी, घोड़ा या मोटर रखना। (ग) रंडी रखेली रखना। ८. किसी के टिकने, ठहरने या रहने के लिए स्थान की व्यवस्था करना। टिकाना। ठहराना। जैसे—बरातियों को तो उन्होंने अपने बगीचे में रखा, और नौकर-चाकरों को धर्मशाला में। ९. किसी प्रकार का आरोप करना। जिम्मे लगाना। सिर मढ़ना। जैसे—तुम तो सदा सारा दोष मुझ पर ही रखते हो। १॰. कोई चीज गिरवी या बंधक में देना। रेहन करना। जैसे—घर के गहने रख कर ये ५००) लाया हूँ। ११. किसी का ऋणी या कर्जदार होना। जैसे—हम उनका कुछ रखते नहीं है, जो उनसे दबें। १२. किसी पुरुष का किसी स्त्री (या किसी स्त्री का पर-पुरुष को) उपपत्नी (या उपपति) के रूप में ग्रहण करके उसे अपने यहाँ स्थान देना। जैसे—विधवा होने पर उसने अपने देवर (या नौकर) को रख लिया था। १३. प्रसंग-संभोग या सहवास करना। (बाजारू) जैसे—एक दिन तो तुमने भी उसे रखा था। १४. सामाजिक व्यवहार आदि में परंपरा संबंध आदि का निर्वाह या पालन करना। बिगड़ने न देना। जैसे—(क) तुम भले ही सबसे लड़ते फिरो, पर हमें तो सबसे रखना ही पड़ता है। (ख) वह ऐसी कर्कशा और कलहनी थी, कि उसने अपने किसी रिश्तेदार से नहीं रखी। १५. किसी चीज की देख-भाल या रखवाली करना। विपत्ति, हानि आदि से रक्षा करना। १६. उक्त सुरक्षा की दृष्टि से कोई चीज किसी के पास छोड़ना। सुपुर्द करना। जैसे—अभी यह घडी़ भइया के पास रख दो, जरूरत पड़ने पर ले लेना। संयो० क्रि०—देना। १७. ऐसी स्थिति में लाना या रखना कि जाने, निकलने या भागने न पावे (प्राय० संयो० क्रि० के रूप में प्रयुक्त) जैसे—दबा रखना, भार रखना, रोक रखना। १८. कुछ विशिष्ट मनोवेगों के संबंध में, मन में दृढ़तापूर्वक धारण करना या स्थान देना। जैसे—आशा या भरोसा रखना। १९. आघात, प्रहार आदि के रूप में जमाना या लगाना। (क्व०) जैसे—उसने लाठी का एक ऐसा हाथ रखा कि लड़के का सिर फूट गया। २0०कोई काम या बात किसी और समय के लिए स्थगित करना। जैसे—अब इसका निश्चय कल पर रखो। २१. किसी रूप में किसी पर अवलंबित या आश्रित करना। जैसे—(क) किसी के कंधे पर हाथ रखना। (ख) खंभों या दीवारों पर छत रखना। मुहावरा—(कोई बात किसी पर) रखकर कहना=इस प्रकार कोई बात कहना कि उसका कुछ अंश किसी पर ठीक घटता या सार्थक होता हो। किसी को आरोप का लक्ष्य बनाकर कोई बात कहना। जैसे—मैने तो वह बात उन पर रख कर कही थी, तुम उसे व्यर्थ अपने ऊपर ले गये। २२. पक्षियों आदि के संबंध में, अंडे देना। जैसे—यह मुरगी साल में पचास अंडे रखती है। विशेष—(क) कुछ अवस्थाओं में यह क्रिया दूसरी क्रियाओं के साथ संयो० क्रि० के रूप में लगकर किसी कार्य की पूर्णता, समाप्ति आदि भी सूचित करती है। जैसे—यह रखना, बचा रखना, माँग रखना, ले रखना आदि। (ख) कुछ अवस्थाओं में संज्ञाओं के साथ लगकर यह क्रिया कुछ मुहावरे भी बनाती है। जैसे—हाथ रखना। ऐसे अर्थों के लिए संज्ञाएँ देखें। (ग) कुछ अवस्थाओं में इस क्रिया के साथ कुछ और क्रियाएँ भी संयो० क्रि० के रूप में लगती हैं। जैसे—रख छोड़ना, रख देना, रख लेना। ऐसे अवसरों पर भी प्रायः क्रिया की पूर्णता या समाप्ति ही सूचित होती है। पुं० [अ० रखनः] १. छेद। सुराख। २. ऐब। दोष। ३. बाधा। रूकावट।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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