शब्द का अर्थ
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रुच :
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स्त्री०=रुचि। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
रुचक :
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वि० [√रुच् (दीप्ति)+क्वुन्-अक] १. रुचनेवाला। रुचि के अनुकूल प्रतीत होनेवाला। रोचक। २. जायकेदार। स्वादिष्ट। पुं० १. वास्तु विद्या के अनुसार ऐसा घर जिसके चारों ओर के अलिंद (चबूतरा या परिक्रमा) में से पूर्व और पश्चिम का सवर्था नष्ट हो गया हो और उत्तर तथा दक्षिण का समूचा ज्यों का त्यों हो। इसका उत्तर का द्वार अशुभ और शेष द्वार शुभ माने गये हैं। २. चौकीदार खंभा। ३. पुराणानुसार सुमेरु पर्वत के पास का एक पर्वत। ४. जैन हरिवंश के अनुसार हरिवर्ष का एक पर्वत। ५. मांगल्य द्रव्य। ६. माला। ७. घोड़ो आदि को पहनाये जानेवाले गहने। ८. प्राचीन काल का निष्क नामक सिक्का। ९. दाँत। १॰. कबूतर। ११. रोचना। १२. नमक। १३. काला नमक। १४. सज्जी खार। १५. बायबिंडंग। १६. दिशा। बिजौरा नींबू। १७. दक्षिण दिशा। |
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रुचदान :
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वि० [सं० रुचि-दान=देनेवाला] भला लगने योग्य। जो अच्छा लग सके। |
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रुचना :
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वि० [सं० रुच+हिं० ना (प्रत्यय)] रुचि के अनुकूल प्रतीत होना। प्रिय तथा भला लगना। पद—रुच रुच=रुचिपूर्वक। |
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रुचा :
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स्त्री० [सं०√रुच्+क्विप्+टाप्] १. दीप्ति। प्रकाश। २. छवि। शोभा। ३. इच्छा। कामना। ४. चिड़ियों के बोलने का शब्द। |
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रुचि :
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स्त्री० [सं०√रुच्+इन्] १. आभा। चमक। २. छवि। शोभा। ३. प्रकाश की किरण। ४. खाने-पीने की चीजों में आने या होनेवाला स्वाद। ५. मन की वह प्रवृत्ति या स्थिति जिसके फलस्वरूप कुछ काम, चीजें या बातें अच्छी और प्रिय जान पड़ती है, अथवा उनकी और मनुष्य झुकता और बढ़ता है। जैसे—(क) वृद्धावस्था में प्रायः धर्म की ओर लोगों की रुचि होने लगती है। (ख) इस समय कुछ खाने की हमारी रुचि नहीं है। ६. मनुष्य की यह योग्यता या शक्ति जिसके आधार पर वह कला, संगीत, साहित्य आदि के गुण या विशेषताएँ परखता और उसका आदर करता है। जैसे—(क) इस विषय में उनकी रुचि असाधारण और विलक्षण है। (ख) यह तो अपनी अपनी रुचि की बात है। ७. इच्छा। कामना। ८. किसी पदार्थ या व्यक्ति के प्रति होनेवाला अनुराग या आसक्ति। ९. कामशास्त्र के अनुसार एक प्रकार का आलिंगन। १॰. गोरोचन। वि० रुचिर। पुं० रौच्य मनु के पिता का नाम, जो एक प्रजापति माने गये हैं। |
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रुचिकर :
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वि० [सं० ष० त०] १. (विषय) जिसमें रुचि होती तथा मन रमता हो। २. भला लगनेवाला। ३. रुचि उत्पन्न करनेवाला। ४. भूख बढ़ानेवाला। (वैद्यक)। |
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रुचिकारक :
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वि० [सं० ष० त०] रुचिकर। (दे०) |
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रुचिकारी (रिन्) :
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वि० [सं० रुचि√कृ (करना)+णिनि, उप० स०] १. रुचि उत्पन्न करनेवाला। रुचिकर। २. स्वादिष्ट। ३. मनोहर। सुन्दर। |
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रुचित :
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भू० कृ० [सं० रुच+कितच्] १. जो रुचि के अनुकूल प्रतीत हुआ हो। पचाया हुआ। (वैद्यक) ३. [√रुचि+क्त] चाहा हुआ। पुं० १. इच्छा। २. मधुर और रुचनेवाला पदार्थ। |
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रुचि-धाम (मन्) :
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पुं० [सं० ष० त०] सूर्य। |
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रुचि-फल :
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पुं० [सं० मध्य० स०] नासपाती। |
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रुचिभर्ता (र्तृ) :
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पुं० [सं० ष० त०] १. सूर्य्य। २. मालिक। स्वामी। वि० आनन्ददायक। सुखद। |
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रुचिमती :
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स्त्री० [सं० रुचि+मतुप्, +ङीष्] उग्रसेन की पत्नी जो कृष्णचन्द्रजी की नानी तथा देवकी की माता थी। |
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रुचिर :
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वि० [सं०√रुच्+किरच्] १. जो रुचि के अनुकूल हो। अच्छा। भला। २. मनोहर। सुन्दर। ३. मधुर। मीठा। पुं० १. केसर। २. लौंग। ३. मूली। |
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रुचिरता :
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स्त्री० [सं० रुचिर+तल्+टाप्] रुचिर होने की अवस्था धर्म या भाव। |
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रुचिरांजन :
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पुं० [सं० रुचिर-अंजन, कर्म० स०] शोभांजन। सहिजन। |
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रुचिरा :
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स्त्री० [सं० रुचि+टाप्] १. सुप्रिया नामक छंद का एक नाम। २. एक प्रकार का वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में ज, भ, स, ज, ग, (।ऽ। ऽ।। ।।ऽ।ऽ। ऽ) होते हैं। ३. रामायण के अनुसार एक प्राचीन नदी। ४. केसर। ५. लौंग। ६. मूली। |
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रुचिराई :
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स्त्री०=रचिरता। |
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रुचि-वर्द्धक :
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वि० [सं० ष० त०] १. रुचि उत्पन्न करने या बढ़ानेवाला। २. भोजन की रुचि या भूख बढ़ानेवाला। (वैद्यक) |
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रुचिष्य :
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पुं० [सं०√रुच् (प्रीति)+किष्यन्] खाने का मधुर खाद्य पदार्थ। वि० जिसके प्रति रुचि हो अथवा हो सकती हो। रुकनेवाला। |
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रुची :
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स्त्री० [सं० रुचि+ङीष्]=रुचि |
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रुच्छ :
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वि० [सं० रुक्ष] १. रूखा। रूक्ष। २. अप्रसन्न। नाराज। पुं० =रूख (वृक्ष)। |
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रुच्य :
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वि० [सं०√रुच्+क्यप्] १. रुचिकर। २. मनोहर। सुन्दर। पुं० १. सेंधा नमक। २. जड़हन धान। ३. पति। स्वामी। |
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