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ललित  : वि० [सं०√लल् (इच्छा)+क्त] [स्त्री० ललिता] १. मनोहर। सुन्दर। २. कोमल। ३. अभिलषित ४. प्रिय। प्यारा। ५. चलता या हिलता हुआ। पुं० १. श्रृंगार रस का एक कायिक हाव। २. साहित्य में एक प्रकार का अलंकार जिसमें किसी प्रस्तुत कार्य का प्रत्यक्ष रूप से वर्णन न करके उल्लेख होता है कि प्रस्तुत कार्य पर ठीक बैठ जाय। ३. एक प्रकार का विषम वर्णवृत्त जिसके पहले चरण में सगण, जगण, सगण, लघु दूसरे चरण में नगण, सगण, जगण, गुरु, तीसरे में नगण, नगण, सगण, सगण और चौथे में सगण, जगण, सगण, जगण होता है। ४. षाडव जाति का एक राग जो भैरव राग का पुत्र कहा गया है और जिसमें निषाद स्वर नहीं लगता तथा धैवत और गांधार के अतिरिक्त और सब स्वर कोमल लगते हैं।
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ललितई  : स्त्री०=ललिताई। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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ललित-कला  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] वह कला जिसके अभिवंयजन में सुकुमारता और सौंदर्य की अपेक्षा हो और जिसकी सृष्टि मुख्यतः मनोविनोद के लिए हो। (फाइन आर्टस) जैसे—चित्र कला, संगीत आदि।
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ललित-कांता  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] दुर्गा।
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ललित-गौरी  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] संगीत में एक प्रकार की रागिनी।
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ललित-पद  : वि० [सं० ब० स०] (कथन या रचना) जिसमें सु्न्दर पद या शब्द हों। पुं० ‘सार’ नामक छंद का दूसरा नाम।
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ललित-पुराण  : पुं० [सं० मध्य० स०] =ललित विस्तर (बौद्ध ग्रन्थ)।
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ललित-विस्तर  : पुं० [सं० ब० स०] एक प्रसिद्ध बौद्ध ग्रन्थ जिसमें गौतम बुद्ध का चरित्र वर्णित है।
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ललित-व्यूह  : पुं० [सं० ब० स०] १. बौद्ध शास्त्र के अनुसार एक प्रकार की समाधि। २. एक बोधिसत्व का नाम।
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ललित-साहित्य  : पुं० [सं० कर्म० स०] ऐसा साहित्य जो उपयोगी या ज्ञानवर्द्धक होने की अपेक्षा भाव-प्रवण अधिक होता है। मनोरंजक साहित्य।
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ललिता  : स्त्री० [सं० ललित+टाप्] १. पार्वती का एक नाम। २. एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में तगण, जगण और रगण होते हैं। ३. संगीत में एक प्रकार की रागिनी जो दामोदर और हनुमत के मत से मेघराग की और सोमेश्वर के मत से वसंत राग की पत्नी है। ४. राधिका की मुख्य सखियों में से एक। ५. कस्तूरी।
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ललिताई  : स्त्री० =लालित्य। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ललिता-पंचमी  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] आश्विन् महीने की शुक्ला पंचमी जिसमें ललिता देवी (पार्वती) की पूजा होती है।
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ललितार्थ  : वि० [सं० ललित-अर्थ, ब० स०] श्रृंगार रस प्रधान (रचना)।
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ललिता-षष्ठी  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] भाद्र कृष्ण षष्ठी जिस दिन स्त्रियाँ पुत्र की कामना से या पुत्र के हितार्थ ललिता देवी (पार्वती) का पूजन और वृत करती हैं।
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ललिता-सप्तमी  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] भादों सुदी सप्तमी। भाद्रशुक्ल सप्तमी।
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ललितोपमा  : स्त्री० [सं० ललिता-उपमा, कर्म० स०] साहित्य में एक प्रकार का अर्थालंकार जिसमें उपमेय और उपमान की समता दिखलाने के लिए सम, समान, तुल्य, लौ, इव आदि के वाचक पद न रखकर ऐसे पद लाये जाते हैं, जिनसे बराबरी, मुकाबला, मित्रता, निरादर, ईर्ष्या आदि के भाव प्रकट होते हैं।
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