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लास  : पुं० [सं०√लस् (शोभित होना)+घञ्] १. एक प्रकार का नाच। २. थिरकने या मटकने की क्रिया या भाव। ३. जूस। रस। शोरबा। पुं० [हिं० लसना] १. लसने अर्थात् सुन्दर जान पड़ने की अवस्था या भाव २. छवि। शोभा। ३. चमक। दीप्ति। पुं० [?] उस छड़ के दोनों कोने जो पाल बाँधने के लिए मस्तूल में लटाकाया जाता है (लश०) मुहावरा—लास करना=चलती हुई नाव को रोकने के लिए डाँड़ों को बहते पानी में बेड़े बल में ठहराना। (लश०) स्त्री०=लाश। (शव) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लासक  : पुं० [सं०√लस् (क्रीड़ा+ण्वुल—अक] १. लास्य अर्थात् कोमल अंग-भंगी से युक्त नृत्य करनेवाला नर्तक। २. मयूर। मोर। ३. शिव। ४. घड़ा। मटका। ५. एक रोग जिसमें शरीर का कोई अंग बराबर हिलता-डुलता रहता है। वि० १. नाचनेवाला। २. हिलता-डुलता रहनेवाला। ३. खेलवाड़ी। ४. क्रीड़ा रस।
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लासकी  : स्त्री० [सं० लासक+ङीष्] नर्तकी।
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लासकीय  : वि० [सं० लासक+छ—ईय] १. लासक संबंधी। २. लासक रोग से ग्रस्त या पीड़ित।
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लासन  : पुं० [अं० लौशिग] जहाज बाँधने का मोटा रस्सा। लहासी। पुं० [सं०] नाचने की क्रिया या भाव।
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लासा  : पुं० [हिं० लास] १. कोई लसवाला या लसीला पदार्थ। विशेषतः ऐसा पदार्थ जिसके द्वारा दो चीजें परस्पर चिपकाई जाती हैं। २. वह लसीला पदार्थ जिससे बहेलिये चिड़ियाँ फँसाते हैं। चेंप। लोपन। मुहावरा—लासा लगाना=किसी को फँसाने की युक्ति रचना। लासा होना=सदा साथ लगे रहना। ३. वह साधन जिससे किसी को फँसाया जाय।
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लासि  : पुं० =लास्य।
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लासिक  : वि० [सं० लास+ठन्—इक] [स्त्री० लासिका] नाचनेवाला।
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लासिका  : स्त्री० [सं० लासिक+टाप्] १. नर्तकी। २. वेश्या। ३. उपरूपक का एक भेद।
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लासी  : स्त्री० [देश०] गेहूँ, सरसों आदि की फसल में लगनेवाला एक तरह का काला छोटा कीड़ा।
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लासु  : स्त्री० =लाश।
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लास्य  : पुं० [सं०√वस् (क्रीड़ा)+ण्यत्] १. नृत्य। नाच। २. दो प्रकार के नृत्यों में से एक। (दूसरा प्रकार तांडव कहलाता है) विशेष—लास्य वह नृत्य कहलाता है, जिसमें कोमल अंग-भंगियों के द्वारा मधुर भावों का प्रदर्शन होता है, और जो श्रृंगार आदि कोमल रसों को उद्दीप्त करनेवाला होता है। इसमें गायन तथा वादन दोनों का योग रहता है। वि० कोमल तथा मधुर। जैसे—स्वरों में र की ध्वनि लास्य है।
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