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लेखा  : पुं० [सं० लेख, हिं० लिखना] १. वह लेख जो आय-व्यय की धन-राशि आदि से संबंध रखनेवाले अंकों या संख्याओं से युक्त होता है। हिसाब (एकाउन्ट) २. इस बात का विचार कि कुल चीजें कितनी और किस अनुपात में हैं। जैसे—कितनी चीजें आई है, उन सब का लेखा तैयार करो। क्रि० प्र०—लगाना।—लिखना। मुहावरा—(किसी का) लेखा चुकाना=हिसाब करने पर जो बाकी निकलता हो, वह देकर चुकता करना। लेखा डालना=बही आदि में कोई नया खाता खोलना या बढ़ाना। नया खाता डालना। लेखा डेवढ़ करना= (क) हिसाब-चुकता करना। देन चुकाना। (ख) जमा या खर्च की मदें बराबर करके हिसाब पूरा करना। (ग) चौपट या नष्ट करना। (व्यंग्य) ३. राशियों, संख्याओं आदि के संबंध में किया जानेवाला अनुमान। कूत। ४. किसी के महत्त्व मान योग्यता आदि के संबंध में मन में किया जानेवाला विचार। मुहावरा—(किसी के) लेखे=किसी के ध्यान, विचार या समक्ष के अनुसार। जैसे—हमारे लेख उसका आना और न आना दोनों बराबर है। किसी लेखे=किसी ढंग, प्रकार या साधन से। किसी तरह। उदाहरण—सब कर मरनु बना एहि लेखे।—तुलसी। ५. जीवन-निर्वाह व्यवहार आदि के संबंध रखनेवाली दशा या स्थिति। जैसे—ऊँचे पर चढ़ देखा घर घर एकहि लेखा (कहा०)। स्त्री० [सं०√लिख् (लिखना)+अ+टाप्] १. लिपि। लिखावट। २. रेखा। जैसे—चन्द्र लेखा।
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लेखा-कर्म  : पुं० [सं० ष० त०] आय, व्यय आदि का हिसाब लिखने या रखने का काम (एकाउन्टेसी)।
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लेखाकार  : पुं० [सं०] वह जो किसी महाजनी, कोठी संस्था आदि के आय-व्यय या लेन-देन का लेखा लिखता हो। (एकाउन्टेन्ट)
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लेखागार  : पुं० [सं० लेखा-आगार] वह स्थान विशेषतः किसी राज्य या सरकार का वह स्थान जहाँ शासन तथा सार्वजनिक हित से संबंध रखनेवाले सब प्रकार के लेख्य इसलिए सुरक्षित रखे जाते हैं कि आवश्यकता पड़ने पर प्रमाण या साक्ष्य के रूप में उपस्थित किये जा सकें। (आकिव्ज)
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लेखा-चित्र  : पुं० [सं० मध्य० स०] अनेक रेखाओंवाला वह बड़ा चौकोर अंकन जो किसी घटना या व्यापार में होते रहनेवाले उतार-चढ़ाव या परिवर्तन अथवा कुछ तथ्यों के पारस्परिक संबंध का सूचक होता है। (ग्राफ) जैसे—जन्म-मरण, तेजी-मंदी, आयात-निर्यात आदि का लेखा चित्र।
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लेखाध्यक्ष  : पुं० [सं० लेखा-अध्यक्ष, ष० त०] लेखाकार।
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लेखा-परीक्षक  : पुं० [सं० ष० त०] वह जो किसी विषय व्यक्ति संस्था आदि के लेख या हिसाब-किताब को जाँचता हो (आडीटर)।
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लेखा-परीक्षण  : पुं० [सं०] किसी प्रकार के कार-बार लेन-देन या आय-व्यय आदि की जाँच करने की क्रिया या भाव। (आंडिटिंग)
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लेखापाल  : पुं० [सं० लेखा√पाल् (रखना)+णिच्+अण्] वह जो आय-व्यय आदि लिखने का काम करता हो। बही-खाते आदि लिखनेवाला कर्मचारी। (एकाउन्टेन्ट)
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लेखा-पुस्तिका  : स्त्री० [सं०] वह पुस्तिका जो बैंक की ओर से उन लोगो को मिलती है जिनके रुपए बैंक में जमा होते हैं और जिसमें उनके खाते के लेन-देन की सब रकमें लिखी रहती हैं। (पासबुक) २. दे० ‘लेखा-बही’।
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लेखा-बही  : स्त्री० [हिं० लेखा+बही] वह बही जिसमें रोकड़ के लेन-देन का ब्यौरा लिखा रहता है। (एकाउन्ट बुक)
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लेखा-शास्त्र  : पुं० [सं० ष० त०] वह विद्या या शास्त्र जिसमें, इस बात का विवेचन होता है कि सब तरह के लेखे या हिसाब किस तरह से रखे या लिखे जाते हैं (एकाउन्टेन्सी)।
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