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विष्टि  : स्त्री० [सं०√विष् (प्याप्त रहना आदि)+क्तिन्] १. ऐसा परिश्रम जिसका पुरस्कार न दिया जाता हो। २. व्यवसाय। पेशा। ३. प्राप्ति। ४. वेतन। ५. फलित ज्योतिष के ग्यारह करणों में से सातवाँ करण जिसे विष्टिभद्रा भी कहते हैं। ६. एक प्रकार का पौराणिक व्रत।
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विष्टिकर  : पुं० [सं० विष्टि+कृ (करना)+अप्, ष० त०] १. प्राचीन काल के राज्य का वह बड़ा सैनिक कर्मचारी जिसे अपनी सेना रखने के लिए राज्य की ओर से जागीर मिला करती थी। २. अत्याचारी। जालिम।
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विष्टि-भार  : पुं० [सं० ष० त०] बेगारी का भार। उदाहरण—बोले ऋषि भुगतेंगे हम सह विष्ट भार।—मैथिलीशरण गुप्त।
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