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व्यभिचार  : पुं० [सं०] १. बहुत ही निकृष्ट आचरण। २. ऐसी स्थिति जिसमें हर जगह चोरी, छिनारी, घूस, पक्षपात आदि का बोलबाला हो। ३. स्त्री का पर-पुरुष से अथवा पुरुष का पर-स्त्री से होनेवाला अनुचित संबंध। छिनाला। जिना (एडल्टरी)। ४. नियमों का अपवाद। ५. एक तर्क छोड़कर दूसरे तर्क का सहारा लेना। ६ न्याय में ऐसा हेतु जिसका साध्य न हो।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
व्यभिचारी  : वि० [सं० वि-अभि√चर् (चलना)+णिनि] १. व्यभिचार संबंधी। २. व्यभिचार करनेवाला। ३. (शब्द) जिसके अनेक अर्थ हों। ४. अस्थिर। पुं० साहित्य में संचारी भाव। (दे०)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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