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शुक  : पुं० [√शुक् (गमनादि)+क] १. तोता। सुग्गा। २. शुक्रदेव मुनि। ३. कपड़ा। वस्त्र। ४. पहने हुए कपडे का आँचल। ५. पगड़ी। साफा। ६. सिरिस का पेड़। ७. लोध। ८. सोनापाठा। ९. भड़-भाँड़। १॰. तालीश पत्र। ११. एक प्रकार की गठिवन।
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शुक-कीट  : पुं० [सं० उपमि० स०] हरे रंग का एक प्रकार का फतिंगा जो प्रायः खेतों में उड़ता फिरता है।
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शुक-कूट  : पुं० [सं० ष० त० स०] दो खंभों के बीच में शोभा के लिए लटकाई हुई माला।
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शुकच्छद  : पुं० [सं० ष० त० स०] १. तोते का पर। २. गठिवन। ३. तेजपत्ता।
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शुकतरु  : पुं० [सं० मध्य० स०] शिरीष (वृक्ष)।
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शुकतुंड  : पुं० [सं० ष० त० स०] १. तोते की चोंच। २. हाथ की एक मुद्रा जो तांत्रिक पूजन के समय बनाई जाती है।
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शुकतुंडी  : स्त्री० [सं० शुक-तुंड—ङीप्] सूआठोंठी नामक पौधा।
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शुकदेव  : पुं० [सं० मध्यम० स०] कृष्ण द्वैपायन व्यास के पुत्र जो पुराणों के बहुत बड़े वक्ता और ज्ञानी थे।
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शुकद्रुम  : पुं० [सं० मध्य० स०] शिरीष वृक्ष।
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शुकनलिकान्याय  : पुं० [सं० ष० त० मध्य० स०] एक प्रकार का न्याय। जिस प्रकार तोता फँसाने की नली में लोभ के कारण फँस जाता है, वैसे ही फँसने की क्रिया या भाव।
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शुकनाम  : पुं० [सं० ब० स०] १. केवाँच। कौंछ। २. गंभारी। ३. नलिका नामक गंध द्रव्य। ४. श्योनाक। सोना-पाढ़ा। ५. अगस्त का पेड़।
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शुकपुष्प  : पुं० [सं० ब० स०] १. थुनेर। २. सिरिस का पेड़। ३. गन्धक। ४. अगस्त का पेड़।
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शुकप्रिय  : वि० [सं० ष० त०] तोते को प्रिय लगनेवाला। पुं० १. सिरिस का पेड़। २. कमरख।
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शुकप्रिया  : स्त्री० [सं० शुकप्रिय—टाप्] १. नीम। २. जामुन।
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शुक-फल  : पुं० [सं० ब० स०] १. आक। मदार। २. सेमल।
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शुक-वाहन  : वि० [सं० ब० स०] जिसका वाहन शक हो। पुं० कामदेव।
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शुकशिंबा, शुकशिंबि  : स्त्री० [सं० उपमि० स०] कपिकच्छु। केवाँच। कौंछ।
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शुकशीर्षा  : स्त्री० [सं० ब० स०] १. धुनेर। २. तालीश पत्र। ३. तेजपत्ता।
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शुकादन  : पुं० [सं० शुक√अद् (खाना)+ल्युट—अन] अनार। दाड़िम।
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शुकायन  : पुं० [सं० ब० स०] १. गौतम बुद्ध। २. अर्हत।
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शुकी  : स्त्री० [सं० शुक-ङीप्] १. तोते की मादा। तोती। सुग्गी। २. कश्यप मुनि की पत्नी का नाम।
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शुकेष्ट  : पुं० [सं० ष० त० स०] शिरीष वृक्ष।
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शुकोदर  : पुं० [सं० ब० स०] तालीश पत्र।
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शुकोह  : पुं० [फा०] दे० ‘शिकोह’।
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शुक्त  : भू० कृ० [सं०√शुच् (शोक करना)+क्त] [भाव० शुक्ति] १. स्वच्छ। निर्मल। २. खट्टा। अम्लीय। ३. कड़ा। ४. खुरदरा। ५. अप्रिय। ६. उजाड़। ७. निर्जन। ८. मिला हुआ। मिश्रित। ९. श्लिष्ट। पुं० १. अम्लता। खटाई। २. सड़ाकर खट्टी की हुई चीज। खमीर। ३. काँजी। ४. सिरका। ५. चुक नाम की खटाई। ६. गोश्त। मांस। ७. अप्रिय और कठोर बात।
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शुक्ता  : स्त्री० [सं० शुक्त-टाप्] १. चुक का पौधा। २. काँजी।
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शुक्ति  : स्त्री० [सं०√शुच् (शोकादि)+क्तिन्] १. सीप। सीपी। २. सतुही। ३. शंख। ४. बेर। ५. नखी नामक गन्ध द्रव्य। ६. अर्श या बवाशीर नामक रोग। ७. कापालिकों के हाथ में रहनेवाला कपाल। ८. अस्थि। हड्डी। ९. दो कर्ष या चार तोले की एकतौल। १॰. आँख का एक रोग जिसमें मांस की एक बिंदी सी निकल आती है। ११. घोड़े के गरदन की एक भौंरी।
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शुक्तिक  : पुं० [सं० शुक्ति+कन्] १. एक प्रकार का नेत्र रोग। २. गन्धक।
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शुक्तिका  : स्त्री० [सं० शुक्तिक-टाप्] १. सीप। २. चुक नामक साग। ३. आँख का शुक्ति नामक रोग।
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शुक्तिज  : पुं० [सं० शुक्ति√जन् (उत्पन्न करना)+ड] मोती। वि० शुक्ति अर्थात् सीप से उत्पन्न।
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शुक्तिपुट  : पुं० [सं० ष० त० स०] १. सीप का खोल। २. शंख। ३. सुतुही नामक जल-जन्तु तथा उसका खोल।
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शुक्तिबीज  : पुं० [सं० ष० त० स०] मोती।
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शुक्तिमणि  : पुं० [ष० त० स०] मोती।
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शुक्तिमती  : स्त्री० [सं० शुक्ति+मतुप्-ङीष्] १. एक प्राचीन नदी। २. चेदि राज्य की राज्यधानी।
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शुक्ति-वधू  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] १. सीप। सीपी। २. सीपी में रहनेवाला कीड़ा।
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शुक्र  : वि० [सं० शुच्+रक्] १. चमकीला। देदीप्यमान। २. साफ। पुं० १. अग्नि। आग। ३. हमारे सौर ग्रह का एक प्रमुख तथा बहुत चमकीला ग्रह जो कभी-कभी दिन के प्रकाश में भी दिखाई देता है। तथा जो पुराणानुसार दैत्यों का गुरु कहा जाता है। विशेष—यह सूर्य से ६७,०००,००० मील दूर है। यह सूर्य का पूरा चक्कर प्रायः २०० से कुछ अधिक दिनों में लगाता है। ३. शुद्ध और स्वच्छ सोम। ४. सोना। स्वर्ण। ५. धन-संपत्ति। दौलत। ६. सार भाग। सत्त। ७.पुरुष का वीर्य। ८.पौरुष। ९.पुतली या चीता नामक वृक्ष। १॰. एरंड। रेंड। ११. आँख की पुतली का फूली नामक रोग। १२. दे० ‘शुक्रवार’। पुं० [अ०] किसी उपकार या लाभ के लिए किया जानेवाला कृतज्ञता का प्रकाश। जैसे—शुक्र है आप आ तो गये।
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शुक्र-कर  : वि० [सं० शुक्र√कृ (करना)+अच्] वीर्य बनानेवाला। पुं० मज्जा, जिससे शुक्र या वीर्य का बनना कहा गया है। (वैद्यक)
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शुक्र-कृच्छ्र  : पुं० [सं० ब० स०] मूत्रकृच्छ रोग। सूजाक।
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शुक्रगुजार  : वि० [अ० शुक्र+फा० गुज़ार] [भाव० शुक्रगुजारी] १. किसी का शुक्र अर्थात् आभार माननेवाला। २. आभार प्रकट या प्रदर्शित करनेवाला।
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शुक्रगुज़ारी  : स्त्री० [अ+फा०] शुक्रगुजार होने की अवस्था या भाव। आभार प्रकट या प्रदर्शित करना।
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शुक्रज  : पुं० [सं० शुक्र√जन् (उत्पन्न करना)+ड] १. पुत्र बेटा। २. जैन देवताओं का एक वर्ग। वि० शुक्र से उत्पन्न।
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शुक्र-ज्योति  : स्त्री० [सं० ब० स०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी।
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शुक्र-दोष  : पुं० [सं० ब० स०] नपुंसकता।
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शुक्र-पुष्प  : पुं० [सं० ब० स०] १. कटसरैया। २. सफेद अपराजिता।
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शुक्र-प्रमेह  : पुं० [सं० ब० स०] वीर्य के क्षय होने का एक रोग। धातु का गिरना।
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शुक्रभुज्  : पुं० [सं० शुक्र√भुज् (खाना)+क्विप्] मोर। मयूर।
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शुक्रभू  : पुं० [सं० शुक्र√भू (होना)+क्विप्] भज्जा।
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शुक्रमेह  : पुं० [सं०] वीर्य के क्षय होने का एक रोग।
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शुक्रल  : वि० [सं० शुक्र√ला (लेना)+क०] १. जिसमें शुक्र या वीर्य हो। १. शुक्र या वीर्य उत्पन्न करने या बढ़ानेवाला।
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शुक्रवार  : पुं० [सं० ष० त० ब० स० मध्यम० स० वा] सप्ताह का छठा दिन। बृहस्पतिवार के बाद का शनिवार से पहले का दिन। जुमेरात।
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शुक्र-वासर  : पुं० [ष० त० स०] शुक्रवार।
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शुक्र-शिष्य  : पुं० [सं०] १. शुक्राचार्य। २. असुर।
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शुक्र-स्तंभ  : पुं० [सं० ब० स०] काम का वेग रोकने के फलस्वरूप होनेवाली नपुंसकता।
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शुक्रांग  : पुं० [सं० ब० स०] मयूर। मोर।
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शुक्राचार्य  : पुं० [सं० कर्म० स०] १. असुरों के देवता जो महर्षि भृगु के पुत्र थे और युद्ध में मरे हुए असुरों को मंत्र-बल से फिर से जिला देते थे। पुराणों के अनुसार वामन रूप धारण करके विष्णु ने इन्हें काना कर दिया था। २. काना या एकाक्ष व्यक्ति। (व्यंग्य)
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शुक्राणु  : पुं० [सं० ष० त०] नर या पुरुष के वीर्य का वह अणु जो मादा या स्त्री के अंड अथवा गर्भ में प्रविष्ट होकर संतान उत्पत्ति का कारण होता है (स्पर्म)।
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शुक्राना  : पुं० [फा० शुक्रानः] वह धन जो किसी को शुक्रिया अदा करते समय दिया जाता है। जैसे—वकील या डाक्टर को दिया जानेवाला शुक्राना।
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शुक्रिम  : वि० [सं० शुक्र+इमनिच्]=शुक्रल।
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शुक्रिंय  : वि० [सं० शुक्र+घ—इय] १. शुक्र संबंधी। शुक्र का। २. जिसमें शुद्ध रस हो। ३. शुक्र बढ़ानेवाला।
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शुक्रिया  : पुं० [फा० शुक्रियः] किसी के उपकार या अनुग्रह के बदले में कृतज्ञता प्रकट करते समय कहा जानेवाला शब्द। धन्यवाद। क्रि० प्र०—अदा करना।
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शुक्ल  : वि० [सं०√शुच् (पवित्र करना आदि)+लच्, कुत्व] १. सफेद। स्वेत। २. सात्विक। ३. यशस्कर। ४. चमकीला। पुं० १. सरयूपारी आदि ब्राह्मणों के एक वर्ग का अल्ल या कुल नाम। २. चान्द्रमास का शुक्ल पक्ष। ३. सफेद रेंड का पेड़। ४. आँखों का एक प्रकार का रोग जो उसके सफेद तल या डेले पर होता है। ५. कुन्द का पौधा और फूल। ६. सफेद लोध। ७. मक्खन। ८. चाँदी। ९. धव। धौ। १॰. योग।
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शुक्ल-कंद  : पुं० [सं० ब० स०] १. भैंसाकंद। २. शंखालु साँख। ३. अतीस।
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शुक्ल-कंदा  : स्त्री० [सं० कर्म० स० टाप्] १. सफेद अतीस। २. बिदारी कंद।
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शुक्लक  : पुं० [सं० शुक्ल+कन्] १. शुक्ल पक्ष। २. खिरनी का पेड़। वि०=शुक्ल।
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शुक्ल-कुष्ठ  : पुं० [सं० कर्म० स०] सफेद कोढ़।
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शुक्ल-क्षेत्र  : पुं० [सं० कर्म० स०] १. पवित्र स्थान। २. तीर्थ स्थान।
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शुक्लता  : स्त्री० [सं० शुक्ल+तल्-टाप्] शुक्ल होने की अवस्था धर्म या भाव।
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शुक्लत्व  : पुं० [सं० शुक्ल+त्व]=शुक्लता।
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शुक्ल-पक्ष  : पुं० [सं० कर्म० स०] चांद्रमांस में कृष्ण पक्ष से भिन्न दूसरा पक्ष। चाँदना पक्ष।
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शुक्ल-पुष्प  : पुं० [सं० ब० स०] १. क्षत्रक पक्ष। २. कुंद का पौधा और फूल। ३. मरुआ पौधा। ४. सफेद ताल मखाना। ५. पिंडार। ६. मैन-फल।
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शुक्लपुष्पा  : स्त्री० [सं० शुक्ल पुष्प-टाप्] १. हाथी शुंडी नामक क्षुप। २. शीत कुंभी। ३. कुंद नाम का पौधा और फूल।
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शुक्लपुष्पी  : स्त्री० [सं० शुक्ल पुष्प-ङीप्] १. नागदती। २. कुंद का पौधा और फूल।
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शुक्लफेन  : पुं० [सं० ब० स०] समुद्र फेन।
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शुक्ल-बल  : पुं० [सं० ब० स०] जैनों के अनुसार एक जिन देव का नाम।
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शुक्ल-मंडल  : पुं० [सं० ब० स०] आँखों का सफेद भाग जो पुतली से भिन्न होता है।
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शुक्ल-मेह  : पुं० [सं०] चरक के अनुसार एक प्रकार का प्रमेह रोग।
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शुक्ल-शाल  : पुं० [सं० ब० स०] १. गिरि निंब। २. सफेद शाल का वृक्ष।
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शुक्लांग  : वि० [सं० ब० स०] श्वेत अंगोंवाला।
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शुक्लांगा  : स्त्री० [सं० शुक्लांग-टाप्] शेफालिका।
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शुक्लांबर  : पुं० [सं० कर्म० स०] सेफेद कपड़ा। वि० जो श्वेत वस्त्र पहने हो।
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शुक्ला  : स्त्री० [सं० शुक्ल+अच्-टाप्] १. सरस्वती। २. चीनी। ३. काकोली। ४. शेफालिका। ५. बिदारी कन्द। ६. शूकर कन्द।
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शुक्लाभिसारिका  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] साहित्य में वह परकीया नायिका जो शुक्ल पक्ष या चाँदनी रात में अपने प्रेमी से मिलने के लिए सजधर कर संकेत स्थल पर जाती है।
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शुक्लिमा (मन्)  : स्त्री० [सं० शुक्ल+इमनिच्] सफेदी। श्वेतता।
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शुक्लोदन  : पुं० [सं० ब० स०] ललित बिस्तर के अनुसार महाराज शुद्धोधन के भाई का नाम।
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शुक्लोपला  : स्त्री० [सं० कर्म० ब० स० अच्, टाप्] चीनी। शर्करा।
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शुक्लौदन  : पुं० [सं० कर्म० स०] अरवा चावल।
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शुकर-क्षेत्र  : पुं० [सं० ब० स०] वितस्ता नदी के किनारे का एक पर्वत।
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