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श्रेष्ठ  : वि० [सं०√श्रि+इष्ठन्, श्रादेश] १. गुण, मान आदि के विचार से बढ़कर० जैसे—श्रेष्ठ विचार। २. (व्यक्ति) जो उच्च मानवीय गुणों से सम्पन्न हो। पुं० १. ब्राह्मण। २. राजा। ३. विष्णु। ४. कुबेर।
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श्रेष्ठाश्रम  : पुं० [ सं० कर्म० स०] गृहस्थाश्रम जिससे शेष तीनों आश्रमों का पालन होता है।
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श्रेष्ठि-चत्वर  : पुं० [सं० ष० त० स०] प्राचीन भारत में वह चबूतरा जिसपर बैठकर सेठ-साहूकार आपस का लेन-देन करते थे।
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