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शब्द का अर्थ

संकेत  : वि०=संकरा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=संकेत।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
संकेत  : पुं० [सं० सम्√ कित् (बहाना)+घञ्] १. चिन्ह। निशा। २. वह चीज जो किसी को किसी प्रकार की निशानी या पहचान के लिए दी जाय (टोकन)। ३. ऐसी शारीरिक चेष्टा जिससे किसी पर अपना उद्देश्य, भाव या विचार प्रकट किया जाय। इंगित। इशारा। जैसा—आँख या हाथ से किया जानेवाला संकेत। ४. कोई ऐसी बात या क्रिया जो किसी विशेष और बँधी हुई बात या कार्य की सूचक हो। ५. किसी घटना, प्रसंग आदि पर प्रकाश डालनेवाली कोई बात। प्रतीक। ६. संकेत स्थल (दे०)।
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संकेतकी  : स्त्री० [सं० संकेत] आपस में व्यवहार में संक्षेप और गोपन के लिए स्थिर की हुई वह वार्ता-प्रणाली जिसमें साधारण शब्दों और पदों के लिए छोटे-छोटे सांकेतिक सब्द बना लिये जाते हैं। व्यापारिक और राजनीतिक क्षेत्रों में प्रायः तार द्वारा समाचार और आदेश भेजने के लिए इसका उपयोग होता है। सांकेतिक भाषा (कोड)।
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संकेत-ग्रह  : पुं० [सं० ब० स०] साहित्य में शब्द की अभिधा शक्ति से ग्रहण किया जाने अथवा निकलनेवाला अर्थ। बिंबग्रहण से भिन्न।
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संकेत-चित्र  : पुं० न ऐसा चित्र जिसमें प्रतीक के सहारे कोई बात दिखाई गई हो।
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संकेत-चिन्ह  : पुं० [सं०] १. वह चिन्ह जो शब्द के संक्षिप्त रूप के आगे लगाया जाता है। जैसा—पुं० में का—०। २. शब्द का संक्षिप्त रूप। जैसा—मध्य प्रदेश का संकेत चिन्ह है।—म० प्र०।
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संकेतन  : पुं० [सं० सम्√कित् (बहाना)+ल्युट-अन] १. संकेत करने की क्रिया या भाव। २. ठहराव। निश्चय। ३. संकेत स्थल।
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संकेतना  : अ० [सं० संकेत+हिं० ना (प्रत्यय)] संकेत या इशारा करना। स० [सं० संकीर्ण] संकट में डालना।
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संकेत-स्थल  : पुं० [सं० ष० त०] १. साहित्य में वह स्थल जहाँ पर प्रेमी और प्रेमिका मिलते हों। २. वह स्थान जो औरों से छिपाकर कुछ लोगों ने किसी विशेष कार्य के लिए नियत या स्थिर किया हो।
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संकेताक्षर  : पुं० [सं० ब० स०] ऐसी लिपि-प्रणाली जिसमें वर्ण-माला के अक्षर अपने शुद्ध रूप में नही बल्कि निश्चित संकेत रूप में लिखे जाते हैं (साइफ़र)।
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संकेतित  : भू० कृ० [सं० सम्√ कित् (बहाना)+क्त, अथवा संकेत+इतच्] १. संकेत के रूप में लाया हुआ। जिसके संबंध में संकेत हुआ हो। २. ठहराया हुआ। निश्चित। ३. आमंत्रित।
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संकेतितार्थ  : पुं० [सं० संकेतित+अर्थ] शब्द या पद का संकेत रूप से निकलनेवाला अर्थ (साधारण शब्दार्थ से भिन्न)।
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